हालांकि यह नियम नया नहीं है। बिना प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र के दिल्ली में वाहन चलाना दंडनीय अपराध है, मगर इसे दिल्ली सरकार ने सख्ती से लागू किया है। देखना है, इस सख्ती का कितना लाभ मिल पाता है।
सर्दी में दिल्ली में वायु प्रदूषण चिंताजनक स्तर तक बढ़ जाता है। इससे पार पाने के लिए दिल्ली सरकार कई उपाय आजमा चुकी है। कुछ साल पहले सम-विषम योजना लागू की गई थी, ताकि सड़कों पर वाहनों की संख्या कम की जा सके। फिर कुछ इलाकों में धूल-धुआं यानी स्माग सोखने वाले संयंत्र लगाए गए। लगातार लोगों से अपील की जाती है कि वे अगर दफ्तर आने-जाने के लिए साझा यात्रा करें तो प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है। वायु प्रदूषण कम करने में नागरिकों से अपना योगदान देने की गुजारिश की जाती है।
इस मामले में बहुत सारे लोग अपने नागरिकबोध का परिचय भी देते हैं। मगर इन सबके बावजूद वायु प्रदूषण पर काबू पाना कठिन बना हुआ है। इसीलिए सरकार को एक और कड़ा कदम उठाना पड़ा है। मगर इससे वायु प्रदूषण में कितनी कमी आएगी, इसका कोई ठीक-ठीक दावा नहीं किया जा सकता। प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र तो पहले भी लोग लेते ही रहे हैं, अंतर बस इतना आएगा कि जो लोग थोड़े लापरवाह थे, वे सतर्क हो जाएंगे। बाहर से आने वाले वाहनों पर भी सख्ती बरती जाएगी, लेकिन उनमें से भी बहुत सारे वाहन जो रोज या अक्सर दिल्ली आते हैं, वे यह प्रमाणपत्र लेते ही हैं।
वायु प्रदूषण से पार पाने के लिए बाहर से आने वाले भारी वाहनों का दिल्ली में प्रवेश पहले ही बंद था, कुछ दिनों पहले दिल्ली सरकार ने सर्दी भर पूरी तरह बंद कर दिया, जिसे लेकर दिल्ली के व्यापारियों ने एतराज भी जताया था। यह सही है कि दिल्ली की आबोहवा खराब करने में वाहनों की प्रमुख भूमिका है, मगर उन्हें नियंत्रित करने के लिए कोई व्यावहारिक उपाय सोचने की जरूरत है।
वायु प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान दुपहिया वाहनों का है, उन पर कैसे अंकुश लगे, इस पर विचार करने की जरूरत है। तदर्थ उपायों से लोगों की परेशानी ही बढ़ेगी। कुछ दिनों के लिए प्रदूषण प्रमाणपत्र देने वाले केंद्रों पर अफरातफरी का माहौल बनेगा, पेट्रोल पंपों पर प्रमाणपत्र जांचने आदि के झंझट पैदा होगी। इससे हवा की गुणवत्ता सुधारने में शायद ही उल्लेखनीय मदद मिले।
http://dhunt.in/Ds5cM?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “Neha Sanwariya”