0 0 lang="en-US"> सत्ता में वापसी का लक्ष्य या साख का सवाल! BJP के लिए गुजरात-हिमाचल चुनाव जीतना क्यों जरूरी ? - ग्रेटवे न्यूज नेटवर्क
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सत्ता में वापसी का लक्ष्य या साख का सवाल! BJP के लिए गुजरात-हिमाचल चुनाव जीतना क्यों जरूरी ?

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सत्ता में वापसी का लक्ष्य या साख का सवाल! BJP के लिए गुजरात-हिमाचल चुनाव जीतना क्यों जरूरी ?।BJP ने साल 2022 की शुरुआत बंपर जीत के साथ की थी, 5 राज्यों में से 4 में सत्ता हथिया कर पार्टी ने ये साबित कर दिया था कि 2024 के लिए वह पूरी तरह तैयार है, बेशक उस चुनाव को सेमीफाइनल की संज्ञा दी गई, लेकिन वह तो चुनावी चक्र की महज एक शुरुआत थी।.2024 में होने वाले आम चुनाव तक भाजपा को ऐसी कई परीक्षाएं देनी हैं,

हिमाचल और गुजरात चुनाव इसका अगला चरण हैं. दोनों ही प्रदेशों में भाजपा की सरकार है, ऐसे में यहां जीत दर्ज करना पार्टी के लिए और महत्वपूर्ण हो जाता है, इसके अलावा पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने की वजह से दोनों नेताओं की साख भी दांव पर है. हिमाचल में चुनाव की तारीखों का औपचारिक ऐलान हो चुका है और गुजरात में घोषणा बाकी है, हालांकि चुनावी समर में उतरे सभी योद्धा अपने तरकश के तीरों का इस्तेमाल कर वार-पलटवार में जुटे हैं.

जीत की लय बरकरार रहेगी?

2024 में आम चुनाव होने हैं, उससे पहले बीजेपी के सामने जीत की लय बनाए रखना चुनौती है, 2022 की शुरुआत में से पांच में चार राज्यों में सरकार बना चुकी बीजेपी की हौंसले बुलंद हैं, हिमाचल और गुजरात में यदि पार्टी जीत जाती है तो उसे आगे आने वाले अन्य राज्यों के चुनाव में इसका फायदा मिलेगा. क्योंकि चुनावी मौसम की फिजा 2023 में भी जारी रहेगी. दरअसल मेघालय नागालैंड और त्रिपुरा में मार्च माह में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं. इसके दो माह बाद ही कर्नाटक में भी चुनाव होने हैं. जहां बीजेपी को एक बार फिर खुद को साबित करना होगा. अगले साल दिसंबर के वक्त तक छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भी चुनाव होने हैं, इनमें मध्य प्रदेश को छोड़ दें तो कहीं बीजेपी की सरकार नहीं है.

पीएम मोदी और अमित शाह की साख दांव पर

गुजरात पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह, दोनों का गृह राज्य है, ऐसे में यहां जीत या हार को सीधे-सीधे दोनों नेताओं से जोड़कर देखा जाएगा. राज्य में 1995 से बीजेपी सत्ता में है, खुद पीएम मोदी 13 साल तक राज्य के सीएम रहे हैं, केशुभाई पटेल के इस्तीफे के बाद 2001 में उन्होंने प्रदेश की सत्ता संभाली थी. हालांकि राजनीतिक विश्लेषक ऐसा मानते हैं कि मोदी के दिल्ली जाने के बाद भाजपा कुछ कमजोर हुई है, 2017 के चुनाव में इसके कुछ संकेत भी मिले थे, हालांकि उस समय बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन की वजह पाटीदार आंदोलन को माना गया था.

डबल इंजन की परीक्षा

बीजेपी अपने प्रचार अभियान में बड़ी दमदारी से कहती है कि डबल इंजन सरकार का लोगों को डबल फायदा मिल रहा है, आम चुनाव तक बीजेपी को कई बार डबल इंजन की परीक्षा से गुजरना होगा. यूपी-उत्तराखंड और गोवा में भाजपा अपनी डबल इंजन ताकत को सिद्ध कर चुकी है, हिमाचल और गुजरात में भी पार्टी डबल इंजन सरकार के फायदे गिना रही है, राज्य के साथ ही केंद्र सरकार के कामों का भी बताया जा रहा है, हाल ही में पीएम मोदी ने हिमाचल और गुजरात में रैलियों के दौरान हजारों करोड़ रुपये की योजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास कर जनता के सामने डबल इंजन सरकार की ताकत को दमदारी से रखा है.

जनता में जाएगा गलत संदेश

गुजरात और हिमाचल में भाजपा मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है, हर गली- मोहल्ले में पीएम मोदी के ही पोस्टर लगे हैं, खासकर गुजरात एक्सपो के दौरान के सड़कों पर पीएम मोदी के ही पोस्टर नजर आ रहे थे, ऐसे में उन राज्यों को गंवाना जहां पर बीजेपी पहले से सत्ता पर काबिज है, सीधे-सीधे पार्टी की कमजोरी का संदेश देगी, यदि किसी राज्य में बीजेपी सत्ता से बेदखल होती है तो लोकसभा चुनाव पर इसका गलत असर जाएगा. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक लोगों के बीच उस धारणा को भी बल मिलेगा कि मोदी के चेहरे पर लड़कर भी भाजपा हार सकती है.

सत्ता में वापसी का लक्ष्य

गुजरात में बीजेपी पिछले 27 साल से काबिज है, इसलिए यहां तो ज्यादा मुसीबत नहीं, लेकिन हिमाचल में सत्ता परिवर्तन का मिथक पार्टी के लिए मुश्किल बना हुआ है, पार्टी मिशन रिपीट के तहत किसी भी तरह से हिमाचल प्रदेश पर अपना कब्जा बरकरार रखना चाहती है, इसके अलावा गुजरात में भी लगातार छठवां चुनाव जीतकर सबसे लंबे समय तक किसी राज्य में सरकार चलाने का रिकॉर्ड बनाना चाहती है.

http://dhunt.in/E6awY?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “TV9 Bharatvarsh”

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