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चिंतन: शिक्षा और जागरूकता से ही समाज की समस्याओं से समाधान संभव।इक्कीसवीं सदी के इस दौर में शिक्षा और विज्ञान के बदौलत नित अविष्कार हो रहे हैं। मानव चांद पर घर बनाने की तरकीब में जुटा है‚ लेकिन भारत में अंधविश्वास के साये में पल रही डायन प्रथा हमारी शिक्षा और जागरूकता पर अट्टाहास करती नजर आ रही है। यहां प्रति वर्ष डायन के नाम पर हजारों महिलाएं प्रताडि़त की जाती हैं‚ और सैकड़ों महिलाएं क्रूर हत्या की शिकार हो जाती हैं।
डायन शब्द का सामान्य अर्थ जोग–टोना वाली क्रूर स्वभाव की स्त्री से लगाया जाता है। कुतर्क दिया जाता है कि किसी मृत स्त्री की आत्मा का वैकल्पिक रूप‚ जो मुक्ति या मोक्ष के अभाव में उसे प्राप्त होता है‚ में प्रायः कष्टदायक और अमंगल कार्य करती है।डायन को तांत्रिक शक्तियों से नन्हे शिशु या जानवर को मार देने या किसी को बीमार कर देने का आरोप लगाकर निर्दयतापूर्वक प्रताडि़त किया जाता है।
विशेषकर ग्रामीण इलाकों में विधवा या कमजोर महिलाओं को उसकी संपत्ति हड़पने या गांव से निष्कासित कराने की नीयत से डायन का आरोप लगाकर प्रताडि़त किया जाता है‚ जिसकी पुष्टि ओझा (पुरु ष) या गुनिया (महिला) कही जाने वाली औरत से कराई जाती है। इसके बाद शुरू हो जाता है महिला पर अत्याचार का सिलसिला।
अक्सर सामाजिक रूप से सार्वजनिक स्थानों पर ही डायन बताकर महिलाओं को निर्वस्त्र करने‚ बाल काटने यहां तक कि पीट–पीट कर क्रूर हत्या की वारदात को अंजाम देने के मामले भी सामने आते हैं। डायन शब्द वर्तमान दौर का अभिशाप है। मनोवैज्ञानिकों का दावा है कि यह बाइपोलर डिसऑर्डर है‚ जिसमें प्रभावित इंसान में दो तरह की छवि नजर आती है।
गरीब और विधवा महिलाएं आर्थिक तंगी‚ मानसिक दबाव एवं सामाजिक कारणों से शारीरिक सौंदर्य खो देती हैं। उनके चेहरे अपेक्षाकृत खुश्क और प्रतिवादी प्रतीत होने लगते हैं। ऐसे में उनके आस–पास के लोग या धनलोलुप उन्हें डायन करार देकर प्रताड़ना देना शुरू कर देते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं में कमी के कारण घरेलू उपचार के साथ ओझा–गुणी की मान्यता गांवों में ज्यादा मिलती है। ग्रामीण समझते हैं कि ओझा के पास किसी भी सामान्य या असाध्य रोग से मुक्ति मिल सकती है। लोग ओझा–गुणी की बातों पर भरोसा करके ड़ायन करार दी गई महिला का शोषण करते हैं। मल–मूत्र पिलाने तक की घटनाओं को अंजाम दे दिया जाता है।
निर्वस्त्र कर सामूहिक दुष्कर्म तक की अमानीय कार्य किए जाते हैं। सर मुड़वाकर गांव में घुमाया जाता है। डायन के नाम पर महिला प्रताड़ना में झारखंड राज्य सबसे ऊपर है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से 2014 के बीच 464 महिलाओं की हत्या कर दी गई जिनमें ज्यादातर आदिवासी महिलाएं थीं। डायन के नाम पर होने वाली घटनाओं की संख्या इससे काफी अधिक हैं।
डायन–ब्रांडिंग के कारण महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन के मामलों को उजागर करने और इस क्रूर प्रथा के लिए अग्रणी कारकों की पहचान के लिए ओडिशा राज्य महिला आयोग के साथ एक्शनएड एसोसिएशन ने एक अध्ययन किया। ‘ओडिशा में विच–हंटिंग’– 2020 अध्ययन रिपोर्ट में 102 केस स्टडीज का व्यापक दस्तावेज प्रस्तुत किया गया‚ जो अधिकतम डायन–शिकार की घटनाओं की रिपोर्ट करते हैं।
यह प्रथा भारत के 12 राज्यों असम‚ झारखंड‚ बिहार‚ छत्तीसगढ़‚ गुजरात‚ हरियाणा‚ मध्य प्रदेश‚ महाराष्ट्र‚ ओडिशा‚ राजस्थान‚ उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में प्रचलित है। एनसीआरबी से पता चलता है कि 2000 और 2016 के बीच जादू टोना के आरोप में देश भर में 2500 से अधिक लोग‚ मुख्य रूप से महिलाएं‚ मारे गए। पाया गया है कि डायन–ब्रांडिंग के 27 प्रतिशत मामले बच्चों के स्वास्थ्य के मुद्दों के कारण‚ 43.5 प्रतिशत वयस्क परिवार के सदस्य के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों‚ 24.5 प्रतिशत दुर्भाग्य या भूमि हथियाने और ५ प्रतिशत फसल खराब होने के कारण हुए।
डायन परंपरा की शुरु आत असम के मोरीगांव से हुई बताई जाती है‚ पर इसके कालखंड की जानकारी नहीं है। १६वीं सदी में राजस्थान की राजपूत रियासतों ने कानून बनाकर इस प्रथा पर रोक लगाई। 1553 में मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह के कार्यकाल में इसे गैरकानूनी घोषित किया गया। 1735 में ब्रिटिश की संसद में एक अधिनियम आया‚ जिसमें किसी व्यक्ति के लिए यह दावा करना अपराध बना दिया गया कि किसी भी इंसान के पास जादुई शक्तियां हैं‚ या वह जादू–टोना करने का दोषी है।
भारत में भी 2016 में संसद में प्रिवेंशन ऑफ विच–हंटिंग बिल पारित कर प्रभावित को निःशुल्क कानूनी सेवा और पूनर्वासा तक की व्यवस्था की गई है। विभिन्न जिलों में पदस्थापित रह चुके पुलिस अधिकारी संजय कुमार सिंह का कहना है कि शिक्षा का प्रसार होने और विकास में तेजी के साथ डायन के नाम पर महिलाओं को प्रताडि़त करने के मामले कम हो रहे हैं। समाज में शिक्षा के साथ जागरूकता बढ़ानी होगी।