10 प्वाइंट में समझें क्या है OPS.. हिमाचल में कांग्रेस मचा रही शोर, BJP संकल्प पत्र में कर सकती है शामिल।हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस OPS यानी ओल्ड पेंशन स्कीम पर अपना रुख पहले ही स्पष्ट कर चुकी है। कांग्रेस ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो पहली ही कैबिनेट मीटिंग में ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल कर दिया जाएगा।
माना जा रहा है कि हिमाचल चुनाव में कांग्रेस इसे तुरुप के पत्ते के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है। भाजपा भी संभवत: यह मान रही है कि वोटर्स इस पर मान गए, तो रिवाज बना रह सकता है और पांच साल बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी करेगी।
शायद यही वजह है कि भाजपा ने शुक्रवार 4 नवंबर को अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया और इसे अचानक 6 नवंबर तक के लिए टाल दिया। वहीं, कांग्रेस कल यानी 5 नवंबर को अपना घोषणा पत्र जारी करने वाली है। कांग्रेस के रूख के बाद भाजपा भी ओल्ड पेंशन स्कीम पर कर्मचारियों के बढ़ते दबाव को देखते हुए इसे अपने संकल्प पत्र में शामिल कर सकती है। आइए प्वाइंटर्स में समझते हैं कि ओपीएस क्यों राजनीतिक दलों के लिए खास मुद्दा बना हुआ है।
ओपीएस से कर्मचारियों को सीधे फायदा होना है और यह एक बड़ा मतदाता वर्ग है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल इसे मुद्दा बनाए हुए हैं और कर्मचारियों को अपने पक्ष में करने के लिए इस वापस लागू करने के वादे कर रहे हैं।
कांग्रेस, सपा, राजद और कुछ अन्य क्षेत्रीय दल इसमें सबसे आगे दिख रही है। बता दें कि ओल्ड पेंशन स्कीम यानी ओपीएस को अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में 1 अप्रैल 2004 से बंद कर दिया गया था और इसे राष्ट्रीय पेंशन स्कीम यानी एनपीएस मे तब्दील कर दिया गया था।
बहुत से कर्मचारी संगठन ओपीएस को लागू कराने के लिए आंदोलन चला रहा है। जिसमें नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम यानी एनएमओपीएस भी शामिल है। राज्यों में कर्मचारी संगठनों की ओर से समय-समय पर ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग की जा रही है।
कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ओपीएस को मुद्दा बनाया और सरकार बनने के बाद इसे लागू भी किया। कांग्रेस अब यह दांव दूसरे राज्यों में चलना चाहती है। पार्टी मान रही है कि ओपीएस चुनाव में उसे जीत दिला सकता है।
ओल्ड पेंशन स्कीम में कर्मचारी की अंतिम सैलरी का 50 प्रतिशत पेंशन रकम होती थी। इस रकम का भुगतान सरकार करती थी। दूसरी ओर एनपीएस के तहत वे कर्मचारी जिन्होंने 1 अप्रैल 2004 के बाद नियुक्ति पाई है, वे अपनी सैलरी से 10 प्रतिशत रकम पेंशन के लिए देते हैं।
वहीं, सरकार इसमें 14 प्रतिशत का योगदान देती है। पेंशन का पूरा 24 प्रतिशत हिस्सा पेंशन रेगुलरेटर यानी पीएफआरडीए के पास जमा किया जाता है। वो इसे सही जगह निवेश करता है, जिससे रकम बढ़ती है।
लगभग सभी राज्यों में ओपीएस पर कर्मचारी संगठन आंदोलन कर रहे हैं। कर्मचारियों के अलग-अलग संगठन हैं, मगर ओल्ड पेंशन स्कीम मामले में सभी एक बैनर तले आ रहे हैं और यही खासकर भाजपा की चिंता का सबब बना हुआ है।
दरअसल, कर्मचारी संगठनों का मानना है कि ओपीएस की जगह एनपीएस में बहुत कम फायदे मिलते हैं। इसमें कर्मचारी और उनके परिवार भविष्य सुरक्षित नहीं है। यही नहीं रिटायरमेंट के बाद जो पैसा मिलता भी है, उस पर टैक्स लगता है।
एनपीएस में सरकारी कर्मचारियों को इन्वेस्टमेंट की मंजूरी दी जाती है। वे पूरे कार्यकाल में पेंशन अकाउंट में रेगुलर योगदान कर पैसे को इन्वेस्टमेंट का अप्रुवल दे सकते हैं। रिटायर होने पर पूरी पेंशन रकम का एक हिस्सा एक बार में निकाल सकते हैं।
कर्मचारी बची हुई रकम के लिए एन्युटी प्लान खरीद सकते हैं। इसे मासिक, तिमाही या वार्षिक स्तर पर निकाल भी सकते हैं। रिटायर हो चुके संबंधित कर्मचारी को उसके निधन तक यह रम रकम मिलती रहती है। इसके बाद पूरी रकम एकमुश्त वो जिसे नॉमिनी बनाया होता है, उसे मिल जाती है।
589 प्रत्याशी इस बार मैदान में
बता दें कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में नामांकन और नाम वापसी का दौर पूरा हो चुका है। यहां 68 विधानसभा सीटों के लिए कुल 786 उम्मीदवार ने पर्चा भरा था। मगर 589 प्रत्याशियों का पर्चा स्वीकृत हुआ, जबकि 84 के पर्चे रिजेक्ट हो गए। वहीं 113 ने उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया था। इस बार एक चरण में वोटिंग होगी। चुनाव प्रचार अभियान 10 नवंबर को शाम पांच बजे खत्म हो जाएगा। इसके बाद मतदान 12 नवंबर को है, जबकि मतगणना 8 दिसंबर को होगी। इसमें भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ इस बार आम आदमी पार्टी ने भी सभी 68 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं।
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