सरकार से नाराजगी, OPS भी बड़ा मुद्दा; फिर भी हिमाचल में क्या है कांग्रेस की राह में रोड़ा, भाजपा के लिए भी दिक्कत।हिमाचल प्रदेश में मतदाताओं ने 1985 के बाद से हर विधानसभा चुनाव में मौजूदा सरकार बदल दी है और इस बार सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस रिवाज को बदलने पर आश्वत है।
कांग्रेस को आशा है कि हिमाचल प्रदेश सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा उनकी जीत की राह को आसान करेगा।
भाजपा को एक ओर जहां दिग्गज नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार ने बुढ़ापे के कारण प्रचार नहीं किया तो दूसरी ओर, पीएम मोदी की चुनावी जनसभा से जोश भी मिला है। जबकि, कांग्रेस अपने जन नेता और छह बार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को याद कर रही थी, जिनकी 2021 में कोविड के कारण मृत्यु हो गई थी।
शिमला के लोअर बाजार में एक किताब की दुकान के मालिक नवीन सचदेवा का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी भी लोकप्रिय हैं और हम उन्हें पसंद करते हैं। उन्होंने दावा है कि उनकी अपील का सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। 68 सदस्यीय हिमाचल विधानसभा का चुनाव 12 नवंबर को होगा और परिणाम 8 दिसंबर को गुजरात के साथ घोषित किया जाएगा।
ओपीएस को लेकर सरकारी कर्मचारियों में गुस्सा
राजनीतिक विशेषज्ञ और नेता मानते हैं कि दो लाख सरकारी कर्मचारी आागामी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। कर्मचारियों का वोट प्रतिशत होने की वजह से चुनाव का रुख किसी भी पार्टी की ओर हो सकता है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के वादे के मुताबिक पुरानी पेंशन योजना-ओपीएस (OPS) की बहाली सरकारी कर्मचारियों को चुनाव में सोचने को जरूर मजबूर करेगी।
यही नहीं, भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी स्वीकार किया कि यह एक ‘ओपीएस’ एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है। उनका कहना है कि सरकार के लिए जीवन भर के लिए काम करने वाले कर्मचारियों को न्यूनतम पेंशन का आश्वासन होना चाहिए, ताकि रिटायरमेंट के बाद वे सम्मान साथ रह सकें।
ओपीएस बहाली से हिमाचल में 6,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जो पहले से ही 77,000 करोड़ रुपये के कर्ज में है। पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग को लेकर गठित कर्मचारी संघ के संयोजक प्रदीप ठाकुर ने कहा कि ओपीएस को लागू करने का कुल वित्तीय प्रभाव कई वर्षों में फैला होगा क्योंकि सभी सरकारी कर्मचारी एक या दो साल में सेवानिवृत्त नहीं होंगे।
उन्होंने कहा सरकार जो कॉरपोरेट क्षेत्र को टैक्स और अन्य लाभों के रूप में जो पैसा देती है, वह अभी भी बहुत कम होगा। जबकि, कांगड़ा के मुख्य बाजार में रमेश दीवान जैसे कुछ लोगों ने दावा किया कि सरकारी कर्मचारियों पर अत्यधिक ध्यान से राजनीतिक पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
सरकारी नौकरी चिंता का कारण
पिछले पांच वर्षों में पर्याप्त सरकारी नौकरियां चिंता का कारण हैं, खासकर हिमाचल के निचले जिलों हमीरपुर, मंडी, कांगड़ा और ऊना में। राज्य सरकार ने पिछले दो वर्षों में हिमाचल सड़क परिवहन निगम (एचआरटीसी) और पुलिस में रिक्त पदों को भरने की कोशिश की थी, लेकिन प्रश्न पत्र लीक होने के कारण परीक्षा रद्द कर दी गई। अगर पेपर लीक हो गया तो मेरी क्या गलती थी?
कांगड़ा जिले के ज्वालामुखी धार्मिक नगरी के डेरा गांव के 22 वर्षीय मुकेश राणा ने पूछा। राणा जल संसाधन विभाग में डाटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में काम करता है और प्रति माह 4,500 रुपये कमाता है। हिमाचल में निजी क्षेत्र की नौकरियों के अभाव में सरकारी नौकरी ही रोजगार का मुख्य स्रोत है। एक कारण यह है कि सरकारी नौकरियों में हिमाचल की जनसंख्या का अनुपात सबसे अधिक है।
सत्तारूढ़ बीजेपी के बागियों से विकास प्रभावित
हिमाचल प्रदेश सरकार में सत्तारूट बागियों की वजह से विकास के कार्य भी प्रभावित हुए हैं। भाजपा में लगातार उठ रहे बागियों के सुर से पार्टी अंदरूनी रूप से कमजोरी जरूर हुई है। बावजूद इसके, बीजेपी की ओर से कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया। माना जा रहा है कि ये बागी गुट भाजपा प्रत्याशी को आगामी चुनाव में नुकसान पहुंचा सकते हैं।
विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा से 22 बागियों ने नामांकन पर्चा भरा है। हालांकि, बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि भाजपा पूर्व विधायकों सहित छह दिग्गज बागी नेताओं को मनाने में कामयाब हो गई है। ऐसा नहीं है कि भाजपा में ही सिर्फ बागी नेता हैं, बल्कि कांग्रेस को बागियों से जूझना पड़ रहा है। 21 में से 14 बागियों को मनाने में कांग्रेस सफल हो गई है।
भाजपा-कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा कौन?
भाजपा और कांग्रेस ने अभी तक मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान नहीं किया है। हालांकि, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने इस बात के कई बार संकेत दिए हैं कि भाजपा हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में ही लड़ रही है, जबकि शीष नेतृत्व की ओर से इसपर कुछ भी बयान सामने नहीं आया है।
जबकि, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रतीभा सिंह का कहना है चुनाव के बाद विधायकों की राय लेने के बाद ही मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान किया जाएगा। कहा कि कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतने के बाद ही मुख्यमंत्री तय करती है। हाईकमान सभी विधायकों की राय लेगा।
http://dhunt.in/EY6KH?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “Live हिन्दुस्तान”