0 0 lang="en-US"> हिमाचल विधान सभा चुनाव में हर व्यक्ति अपना मताधिकार का प्रयोग करे। ग्रेटवे न्यूज नेटवर्क की तरफ से आपको चुनावी महापर्व की बधाई। - ग्रेटवे न्यूज नेटवर्क
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हिमाचल विधान सभा चुनाव में हर व्यक्ति अपना मताधिकार का प्रयोग करे। ग्रेटवे न्यूज नेटवर्क की तरफ से आपको चुनावी महापर्व की बधाई।

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लेख लंबा जरूर है पर इसे पढ़े जरूर।देशहित और अपने स्थानीय हितो के लिए सही उम्मीदवार का चुनाव करे।अपना कीमती वोट जरूर करे।
     
आचार्य चाणक्य के अनुसार ” अविनीतस्वामिलाभात् अस्वामिलाभः श्रेयान् ” अर्थात् विनयविहीन (अनुशासन या मर्यादा में न रहने के स्वभाव वाले ) राजा की प्राप्ति की अपेक्षा राजा का न होना ही श्रेयस्कर है । ” आज के जनतांत्रिक भारत में राजा के स्थान पर राजनेता पढ़ना अनुचित नहीं कहा जा सकता है ।

एडमण्ड बर्क ने कहा था ” जनता के लिए सबसे अधिक शोर मचाने वालों को उसके कल्याण के लिए सबसे उत्सुक मान लेना सबसे बड़ी त्रुटि है । इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्तमान में हमारी मान्यता यही हो गई है कि संसद या विधान सभा में जो जनप्रतिनिधि अधिक शोर मचाये वही मुखर सांसद या विधायक मान लिया जाता है । जबकि , यहाँ मुखर का अर्थ ऐसे सांसद या विधायक से होना चाहिए जो अपने क्षेत्र की समस्याओं को प्रमुखता से उठाने के साथ -साथ देश-हित का भी ध्यान रखे , उसके शब्दों में संतुलन होना चाहिए कि उसकी मांग यदि मानी भी जाये तो किसी सम्प्रदाय , वर्ग या जाति कि भावनाओं के प्रतिकूल न हो और उसका प्रभाव राष्ट्रिय अस्मिता , एकता और अखंडता पर भी न पड़ता हो ।

परन्तु , आज कि हालत यह है कि संसद अथवा विधान सभाओं में हंगामा अधिक और काम कम । हाँ , एक बात अवश्य है कि नेता अपने हित के कामों को एक स्वर में शांतिपूर्वक इस पटल पर कर लेते हैं । मसलन , अपने वेतन भत्तों को बढ़ाना , पार्टियों के चंदे को हर बुरी नजर जैसे कि आय कर आदि से बचाना । आज लाल बहादुर शास्त्री , सरदार वल्लवभाई पटेल , भीमराव आंबेडकर ,चंद्रशेखर ,अटल बिहारी बाजपेई आदि जैसे नेता अब बिरले हीं दिखते हैं।

सी राजगोपालाचारी ने कहा था कि ” निसंदेह सशक्त सरकार और राजभक्त जनता से उत्कृष्ट राज्य का निर्माण होता है । परन्तु , बहरी सरकार और गूंगे लोगों से वास्तविक लोकतंत्र का निर्माण नहीं होता । ” जब मतदाता को प्रोपेगंडा और झूठे वादों से दिग्भ्रमित किया जा सकता हो तो समझना चाहिए कि लोकतंत्र कि मशीनरी में जंग लग चुका है । देशभक्त जनता को इसे छुड़ाने का प्रयास प्रारम्भ कर देना चाहिए ।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का कथन कि ” राजनीतिज्ञों को नेशन फर्स्ट , पार्टी नेक्स्ट और सेल्फ लास्ट ” कि सोच से प्रेरित होना चाहिए । जबकि, आज अधिकतर नेताओं की सोच इसके बिलकुल विपरीत है । संसद में एक मिनट कि कार्यवाही पर लगभग 2.5 लाख रुपये खर्च होते हैं । संसद तथा विधान सभाओं में कुछ क्या, अधिकतर नेताओं की गलत हरकतों के कारण कुल कितने घंटे बर्बाद होते हैं, इनके बारे में पाठकगण स्वयं निर्णय ले सकते हैं । देश की सर्वोच्च लोकतान्त्रिक संस्था का प्रतिदिन संचालन बहुत ही महंगा है । इस संचालन में प्रतिदिन लगभग साढ़े सात करोड़ खर्च होते हैं । इसके अतिरिक्त इनके दिल्ली आना-जाना , रहना -खाना , भत्ते , सुरक्षा- गॉर्ड , टेलीफोन , इंटरनेट आदि सब खर्चें आम नागरिकों से हीं विभिन्न कर के रूप में वसूले जाते हैं । अगर इन सबों का सदुपयोग हमारे ये भाग्य विधाता करते तो भारत की स्थिति आज कुछ और ही होती ।

यदि आम नागरिक अपने नेता का चुनाव ठीक प्रकार से सोच -विचार कर करेंगे तभी हमारे देश का वास्तविक विकास संभव है । जैसे कि —

अपने मताधिकार का प्रयोग अवश्य करें अर्थात वोट डालने अवश्य जाएँ । सरकार की आलोचना करने से पहले सरकार चुनने में भागीदारी निभाना भी हमारा कर्त्तव्य है । लोकतंत्र में मताधिकार ही सबसे बड़ा अधिकार होता है । वर्ष 2014 में 16 वीं लोकसभा के आम चुनाव में पूरे देश में सिर्फ 40 % लोगों ने अपने मताधिकार का सदुपयोग किया था । इनमें सबसे कम प्रतिशत बिहार का था , जो सिर्फ 56.28 % ही था ।
जातिगत और धर्मगत समीकरण को दूर रखते हुए समाज में स्वच्छ एवं सम्मानजनक छवि वाले व्यक्ति को चुनना । अगर आपकी नजर में ऐसा कोई नहीं हो तो सभी प्रत्याशियों में जो सबसे उत्तम हो उसे चुने अथवा आपके पास नोटा का भी विकल्प है । कभी भी यह न समझें कि नोटा से आपका वोट बेकार हो जाएगा । इससे पार्टियों पर दबाब बढ़ेगा कि वे अच्छे उम्मीदवार ही मैदान में उतारें । परिणामस्वरूप अच्छे लोग राजनीति में आ सकेंगे । नोटा से निर्वाचक को लड़ रहे प्रत्याशियों के खिलाफ अपना विरोध/अस्वीकृति दर्शाने का मौका मिलेगा जो लोकतंत्र के हित में है तथा कुछ हद तक बोगस वोटिंग भी रूकेगी ।
हम लोगों के बीच बहुतायत से ऐसे लोग भी मिलेंगे जो अंतिम समय में अपना मत ऐसे उम्मीदवार को दे देते हैं , जिसके बारे में उन्हें लगता है कि वही जीतेगा। पूछने पर उनका कहना होता है कि मैं अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहता , इसलिए बिना सोचे -समझे उनकी नजर में जो विनिंग कैंडिडेट होता है , उसके पक्ष में वोट डाल देते हैं । इसी मानसिकता का फायदा ये नेता उठाते हैं तथा अंतिम समय में भीड़ जुटा कर रैली निकलना, तरह-तरह के झूठे प्रलोभन देना, जाति और धर्म कि राजनीति करने का काम कर लेते हैं ।

पिछले पांच वर्षों के कार्य का ऑडिट जनता के सामने रखे । अच्छा होता यदि प्रत्येक वर्ष के उपरान्त अपने कार्य का ऑडिट जनता के सामने रखे । पिछले चुनाव के समय में जारी घोषणा-पत्रों में जो वायदे किये गए थे , उन पर कितना कार्य हुआ उसका लेखा – जोखा भी जनता के सामने रखा जाना चाहिए । जो पार्टी अथवा नेता ऐसा नहीं करता है , उनसे यह प्रश्न जनता करे । ऐसा करने से अच्छे जन-प्रतिनिधि चुनने में आसानी होगी ।
मतदाताओं को प्रायः इस दुविधा का सामना करना पड़ता है कि –

–क्या मैं अपने पसंद की पार्टी को वोट दूँ चाहे उम्मीदवार कोई भी हो I परन्तु , इसमें होने वाले प्रधान-मंत्री अथवा मुख्य-मंत्री का चेहरा बहुत अधिक कार्य करता है  I दिल्ली विधान-सभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी में तो अरविंद केजरीवाल का चेहरा है परन्तु , भारतीय जनता पार्टी  एवं कांग्रेस ने चुनाव के समय तक चेहरा स्पष्ट नहीं किया है  I

–क्या मैं उस उम्मीदवार को वोट दूँ जो मेरी पसंद का है  Iइस मामले में आज के समय उम्मीदवार अपने बायोडाटा को जनता के साथ सार्वजनिक ही नहीं करते हैं I

–क्या स्थानीय उम्मीदवार को वोट दूँ ? ऐसे मामले में ये परेशानी होती है कि एक से अधिक उम्मीदवार प्रायः स्थानीय होते हैं  I

–क्या अपनी जाति या धर्म के उम्मीदवार को वोट दूँ ? अगर ऐसा होता है तो यह स्वस्थ लोकतंत्र के विरूद्ध होगा  I स्वार्थी नेता जनता के इसी कमजोर नस को पकड़ते हैं  I दिल्ली विधान-सभा चुनाव 2020 में  कुछ पार्टियां तो धर्म के नाम पर हीं वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयास कर रही है I

–या उसे वोट दूँ जिसने सरकार में क्षेत्र के विकास एवं लोगों की मदद की हो  I इस चुनाव में तो “फ्री ” की राजनीति भी चर्चा का विषय हो गया है I दिल्ली की आप सरकार ने बिजली , पानी , महिलाओं का मेट्रो और बस में फ्री यात्रा , फ्री वाई-फाई तथा विद्यार्थियों के लिए भी कई तरह की छूट दे रही है तथा कह रही है कि कुछ भी फ्री नहीं है , यह सब जनता द्वारा चुकाए गए टैक्स के पैसे से किया जा रहा है , उसके बाबजूद भी वे प्रॉफिट में हैं  I उन्होंने  भ्रष्टाचार ख़त्म कर यह पैसा बचाया है  I अगर यह सच है तो मेरे विचार से बड़ी ही अच्छी बात है  I दुनिया के समृद्ध देश अमेरिका तथा क़तर में भी कुछ बुनियादी आवश्यकताएं फ्री दी जा रही है  I       अन्य पार्टियाँ भी मतदाताओं को लुभाने के लिए कई चीजें फ्री देने का प्रलोभन दे रही है  I  इसके जबाब में आम आदमी का कहना है कि जिस राज्य में उनकी सरकार है , वहां तो दे नहीं रहे हैं  I

इस तरह के अनेक प्रश्न मतदाताओं के मन-मष्तिष्क में आते हैं  I

लोकहित के अहम् मुद्दे यानि शिक्षा , स्वास्थ्य , रोजगार , राष्ट्रीय सुरक्षा , सामाजिक न्याय , महिला सुरक्षा , आतंकवाद जैसे मूलभूत प्रश्नों की जगह फर्जी राष्ट्र-वाद , जातीय और धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर जनता का ध्यान भटकाने का प्रयास किया जा रहा है I यह बड़ी ही अच्छी बात है कि पहली बार यह देखने में आया है कि एक राजनितिक दल (आम आदमी पार्टी ) अपने चुनाव प्रकार में यह कह रही है कि अगर उसने अपने कार्य-काल में जनता के हित में कार्य किया है तो उन्हें वोट दें I

अब्राहम लिंकन कि एक प्रसिद्ध उक्ति ” जनता द्वारा , जनता के लिए , जनता का शासन हीं लोकतंत्र है  I ” यदि लोकतंत्र में तंत्र द्वारा जनता की ही उपेक्षा हो तो जनता की सरकार का अर्थ ही क्या रह जाता है  I

एम आई टी के अर्थशास्त्री श्री अभिजीत बनर्जी ने अपने रिसर्च पेपर में यह कहा है कि अभी भी मतदाता अपना वोट किसे देंगे , यह तय करने में मूलभूत समस्याओं की कोई खास भूमिका नहीं होती है I चुनाव में अब भी जाति और धर्म ही तय करता है , वोटरों का मूड I

ऐसी हीं सोच का फायदा उठाते हुए कई स्वार्थी राजनेता हुए चुनाव के समय जनता की मूल-भूत समस्याओं से ध्यान भटका कर धर्म और जाति की ओर जनता का ध्यान ले जाने का प्रयास करते हैं I मेरे विचार से अब समय आ गया है कि इन अनर्गल बातों को दरकिनार कर सही नेता को चुने I  चुनाव के समय जनता जातिवाद और धार्मिक भावनाओं में बहकर ऐसे नेताओं को चुन लेती है जिसका नतीजा उन्हें बाद के पांच वर्षों तक भुगतना पड़ता है I

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
लेखक
डी. पी. खरेडी. पी. खरे
एक सेवानिवृत रेलवे अधिकारी।

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