नाम बड़े दर्शन छोटे! यही हाल हैं हिमाचल के सबसे बड़े अस्पताल IGMC के, दर-दर की ठोकरें खाते हैं मरीज। आईजीएमसी में कैजुअल्टी में मरीजों को समय से इलाज नहीं मिल रहा है. ऐसे में स्वास्थ्य सेवा लिए मरीज परेशान हैं. आपातकालीन वार्ड में कंसलटेंट डॉक्टर ड्यूटी देने से कतरा रहे हैं. रेडियोलॉजी विभाग रामभरोसे चल रहा है।
आईजीएमसी के प्रिंसिपल डॉ. सीता ठाकुर के मुताबिक अस्पताल में व्यवस्था की जा रही है. कंसलटेंट सीमित हैं, उन्हें जरूरत के हिसाब से लगाया जाता है. (Health Services in IGMC)
शिमला: प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में कैजुअल्टी विभाग में मरीजों को भटकने को मजबूर होना पड़ रहा है. यहां पर समय पर ना तो डॉक्टर मिलते हैं और ना ही समय पर इलाज मिलता है. जिले भर से गंभीर मरीज आईजीएमसी में आते हैं, लेकिन आपातकाल विभाग में उन्हें ठोकरें खानी पड़ती हैं. आईजीएमसी के आपातकालीन वार्ड में कंसलटेंट डॉक्टर ड्यूटी देने से कतरा रहे हैं. ऐसे में अल्ट्रासाउंट व एक्सरे करवाने में जूनियर छात्रों की ही ड्यूटी लगाई जा रही है. (IGMC Shimla) (Health Services in IGMC)
कंसलटेंट डॉक्टर एक बार भी अल्ट्रासाउंट व एक्सरे करते नजर नहीं आता है, जबकि अल्ट्रासाउंड व एक्सरे करने में सीनियर डॉक्टर का होना बहुत जरूरी है, क्योंकि अगर रिपोर्ट गलत आई तो मरीज को गलत दवाइयां भी जा सकती हैं. यहां पर स्थिति ऐसी बन चुकी है कि मरीज को तो सीनियर डॉक्टर देख लेते हैं, लेकिन एक्सरे व अल्ट्रासाउंड में छात्रों को लगाया गया है. कई रिपोर्टस गलत आ चुकी हैं. सीनियर डॉक्टर आपाताकालीन वाली रिपोर्टस रद्द कर चुके हैं, फिर दोबारा से मरीजों को एक्सरे व अल्ट्रासाउंड करने पड़ते हैं. यहां पर मरीजों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. (Principal Dr Sita Thakur)
हद तो यह है कि रेडियोलॉजी विभाग के अधिकारी भी इस स्थिति को नहीं सुधार रहे हैं. रेडियोलॉजी विभाग रामभरोसे चला हुआ है. इस विभाग को देखना चाहिए कि अगर कंसलटेंट की ड्यूटी जरूरी है, तो उसे तुरंत प्रभाव से ड्यूटी पर लगाना चाहिए. अगर मरीज की रिपोर्टस गलत आई तो सीनियर डॉक्टर भी कुछ भी नहीं कर सकता है. आपाताकालीन वार्ड में पूरे प्रदेश भर से गंभीर मरीज ही आते है. ऐसे में कई मरीजों की आपाताकलीन में जान तक चली जाती है. प्रशासन को यह देखना चाहिए की यहां पर टेस्ट करवाने के लिए तो सीनियर की ड्यूटी लगाई जाए.
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मरीजों के साथ सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा है. रात हो चाहे दिन यहां पर सीनियर की ड्यूटी लगाना जरूरी है. खासकर रेडियोलॉजी वालों को सुधार लाने की जरूरत है. अधिकारियों को आपातकालीन वार्ड मरीजों के साथ हो रहे खिलवाड़ को लेकर जांच करनी चाहिए, क्या यहां पर रिपोटर्स ठीक आती है या नहीं इसकी भी जांच करनी चाहिए. कई मरीजों के आरोप लग चुके है कि यहां पर कंसलटेंट ना होने की वजह से रिपोर्टस गलत आती हैय
सीएमओ की कितने घंटे ड्यूटी, यह भी तय नहीं: आईजीएमसी में कौन सीएमओ कितने घंटे ड्यूटी दे रहा है. यह भी अभी तक तय नहीं हो पा रहा है. चिकित्सक सुत्रों से पता चला है कि जो कुछ सीएमओ बखूबी से अपनी ड्यूटी दे रहे हैं और कहियों की ड्यूटी का समय कम होता है. आधे दिन कुछ गायब ही रहते है. प्रशासनिक अधिकारियों को देखना चाहिए की जब सीएमओ को इतना वेतन दिया जा रहा है, तो उनसे उस हिसाब से काम भी लेना चाहिए. इनका ड्यूटी रोस्टर विल्कुर क्लीयर होना चाहिए और यह भी चेकिंग करनी चाहिए की कौन कितने समय ड्यूटी दे रहा है.
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रात को समय से नहीं मिलता उपचार: आपातकालीन वार्ड में रात को समय से उपचार नहीं मिलता है. जब भी कोई गंभीर मरीज आता है, तो उसके तीमारदारों को इधर से उधर ही दौडया जाता है. कई बार तीमारदार डॉक्टर पर आरोप लगा चुके है. रात के समय में तो मरीजों की हालत काफी गंभीर हो जाती है, जबकि सुविधा यह होनी चाहिए थी तुरंत मरीजों को उपचार मिले. आपाताकालीन वार्ड में मरीज दर दर की ठोकरे खाने को मजबूर हैं.
ईसीजी करवाने जगह जगह दौड़ाए जाते हैं तकनीशियन: आपातकालीन वार्ड में ईसीजी करने वाले तकनीशियन को कई बार रूम में बुलाकर करना पड़ता है, जब उसे पूछा जाता है कि ईजीसी करने यही पर क्यों नहीं बैठते है ? तो उनका कहना है कि उन्हें ईसीजी करने जगह जगह जाना पड़ता है.ऐसे में वह आपातकालीन वार्ड में ही ड्यूटी नहीं दे सकते हैं, जबकि आपातकालीन वार्ड में रेगुलर एक तकनीशियन ई.सी.जी करवाने होना चाहिए.
आईजीएमसी के प्रिंसिपल डॉ. सीता ठाकुर ने बताया कि अस्पताल में व्यवस्था की जा रही है सीमित कंसलटेंट है, उन्हें जरूरत के हिसाब से लगाया जाता है. मरीज को परेशानी ना हो इसके लिए भी स्टाफ तैनात किया गया है.
Source : “ETV Bharat हिंदी”