डिजिटल रुपये से उम्मीदे। देश में डिजिटल रुपये में भी आधिकारिक खुदरा लेन-देन की शुरुआत हो जाएगी। डिजिटल रुपये का रिटेल ट्रायल फिलहाल देश के चार शहरों- मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और भुवनेश्वर में शुरू हो रहा है। वैसे अभी बहुप्रतीक्षित डिजिटल रुपये की शुरुआत प्रयोग के तौर पर एक निश्चित समूह के अंदर हो रही है। अगर यह प्रयोग सफल रहा, तो इसका विस्तार अहमदाबाद, गंगटोक, गुवाहाटी, हैदराबाद, इंदौर, कोच्चि, लखनऊ, पटना और शिमला तक किया जाएगा।
वास्तव में, रुपये का यह बदलता रूप पिछले वर्ष अगस्त से ही ज्यादा चर्चा में है। अनाधिकारिक तौर पर अनेक तरह के डिजिटल रुपये बाजार में चल रहे हैं, जिनकी गारंटी भारतीय रिजर्व बैंक नहीं लेता है, लेकिन इस डिजिटल रुपये के लिए रिजर्व बैंक जिम्मेदार होगा।
इससे सुविधा यह होगी कि लोगों को आने वाले दिनों में किसी भी तरह की खरीदारी के लिए नकदी या चेक या ड्राफ्ट की जरूरत नहीं रह जाएगी। रुपये या मुद्रा की दुनिया में हो रहे इस बदलाव पर लोगों की कड़ी नजर है और वे यह देखना चाहते हैं कि इससे उनकी सुविधा कैसे बढ़ेगी?
कुछ बातें स्पष्ट रूप से समझ लेने की जरूरत है। हम उस दौर में जा रहे हैं, जहां नकदी रखने की जरूरत खत्म हो जाएगी। सरकार को मुद्रा की छपाई कम से कम या नहीं के बराबर करनी पड़ेगी। अगर ऐसा भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए किया जा रहा है, तो प्रशंसनीय है, लेकिन क्या इसमें कामयाबी मिलेगी? ऑनलाइन लेन-देन से भ्रष्टाचार कितना कम हुआ है, यह अपने आप में शोध का विषय है। रिजर्व बैंक का मानना रहा है कि अभी भी बाजार में कई बार नकली नोट आ जाते हैं, लेकिन डिजिटल रुपये के नकली होने की आशंका नहीं बराबर होगी।
नोट खोने, भीगने आदि का डर नहीं रहेगा। सरकार भी यह ठीक से जान पाएगी कि कितना पैसा वास्तव में किसके पास है। वैसे लेन-देन में सुविधा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की ओर यह लंबा रास्ता है, इसमें डिजिटल साक्षरता भी आड़े आएगी। बेशक, सरकार को इस दिशा में कारगर कदम उठाने पड़ेंगे, यह जरूरी है कि तंत्र के स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को वह जल्द से जल्द रोके। अगर सरकारी और कॉरपोरेट लेन-देन भी पूरी तरह से डिजिटल हो जाए, तो यह बड़ी सफलता होगी।
आम आदमी या खुदरा लेन-देन पर नजर रखने से खास कुछ हासिल नहीं होगा। बड़े लेन-देन में डिजिटल रुपये को बढ़ावा देना सबसे जरूरी है। अभी जो अनाधिकारिक डिजिटल मुद्राएं हैं, उनकी पहंुच या विस्तार सीमित है। आम लोगों जब जानेंगे कि डिजिटल रुपये के जरिये लेन-देन में ज्यादा सुविधा व फायदा है, तो निश्चित ही इसका प्रयोग बढ़ाएंगे। ध्यान रहे, भीम, पेटीएम, गूगलपे इत्यादि का इस्तेमाल आम लोगों के बीच तेजी से बढ़ा है, लेकिन यहां ज्यादातर लेन-देन खाते से खाते में होता है।
आज से जो प्रयोग शुरू हो रहा है, अगर उसका उपयोग ई-वॉलेट के जरिये ही होना है, तो क्या इसके लिए अलग से शुल्क लगेगा? कहीं ऐसा न हो कि ई-वॉलेट का व्यवसाय बैंकों से अलग मजबूती से खड़ा हो जाए और इस सेवा के लिए लोगों की जेबें हल्की की जाएं। लोग अपने धन की सुरक्षा चाहते हैं और इसके लिए वित्तीय सेवाओं में चौकसी बढ़नी चाहिए। कोई व्यक्ति सब्जी बाजार से शेयर बाजार तक डिजिटल रुपये से लेन-देन तभी बढ़ाएगा, जब उसे इसमें अतिरिक्त लाभ दिखेगा। मुद्रा कोई भी चले, पर आम आदमी का हित सबसे ऊपर रहना चाहिए।
Source : “Neha Sanwariya”