हिमाचल प्रदेश ने नहीं छोड़ी अपनी रवायत. कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार की 5 बड़ी वजहें। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया कह गए हैं, “रोटी उलटती-पलटती रहे तो ठीक पकती है. एक ही तरफ से सिक रही रोटी जल जाती है. वैसे ही सत्ता परिवर्तन भी जरूरती है, ताकि जनमानस का भला हो सके. “ लोहिया की यह बात हिमाचल प्रदेश में दशकों से लागू है.
यहां सरकार बदलने की रवायत रही है. एक टर्म बीजेपी, दूसरे टर्म कांग्रेस और फिर से वही क्रम. इस बार भी वही हुआ, जिसकी संभावना थी.
बीजेपी इस बार यह दावा करती आ रही थी कि हिमाचल में सरकार बदलने वाली परंपरा टूटेगी और फिर से बीजेपी की सरकार बनेगी. ऐसा हुआ नहीं. हिमाचल ने अपनी परंपरा नहीं छोड़ी. कांग्रेस की जीत और बीजेपी की हार के पीछे कई सारे समीकरण रहे. आइए हम कुछ प्रमुख कारणों को समझने की कोशिश करते हैं.
1). महंगाई-बेरोजगारी बड़ा मुद्दा
महंगाई वैसे तो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने इसे स्थानीय मुद्दे के रूप में भुनाया. राज्य और केंद्र, दोनों सरकार पर निशाना साधा. यहां आय का मुख्य स्रोत पर्यटन रहा है, जो कोरोना काल में सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. लोगों के पास खाने का संकट आ गया. CMIE डेटा के अनुसार, प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ गई. लोगों में नाराजगी दिखी. दूसरी ओर कांग्रेस ने पहली कैबिनेट में ही एक लाख रोजगार का वादा किया. वहीं स्वरोजगार के लिए 680 करोड़ के स्टार्टअप फंड से बिना ब्याज के लोन देने की बात कही.
2). ओपीएस और अग्निपथ पर कांग्रेस ने घेरा
भारतीय सेना में हिमाचल प्रदेश का बड़ा योगदान रहा है. यहां के चार भर्ती केंद्रों से हर साल 2800 युवा सेना में भर्ती होते हैं. देश के पहले परमबीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा यहीं से हुए. 4 परमबीर चक्र, महाबीर चक्र, कीर्ति चक्र समेत सैकड़ों सेना मेडल हिमाचल के नाम हैं. इसे भावनात्मक तौर पर यूज करते हुए कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला किया. अग्निपथ और ओपीएस को बड़ा मुद्दा बनाया.
कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम की गारंटी दी. राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तरह ओपीएस लागू करने का वादा किया और लोगों का भरोसा जीता. अग्निपथ स्कीम को लेकर भी प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी को घेरा. बेरोजगारी से जूझ रहे प्रदेश के युवाओं पर इसका असर पड़ा.
3). पार्टी में बगावत
हिमाचल प्रदेश में प्रत्याशियों के एलान के बाद हर तरफ बगावत दिखी, लेकिन बीजेपी से सबसे ज्यादा नेता पार्टी छोड़ गए. बीजेपी के 21बागियों ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में ताल ठोक दी, जबकि कुछ कांग्रेस में गए तो एकाध आम आदमी पार्टी में भी. ऐसे में बीजेपी के वोट में सेंधमारी हुई और जाहिर है कि इसका फायदा कांग्रेस को मिला.
4). लोकलुभावन वादों का असर
कांग्रेस अपने लोकलुभावन वादों के जरिये हिमाचल की जनता का भरोसा जीतने में सफल रही. महिलाओं पर फोकस करते हुए कांग्रेस ने हर घर लक्ष्मी, घर-घर समृद्धि योजना के तहत महिलाओं को 1500 रुपये देने का वादा किया. किसानों, बागवानों और पशुपालकों के हित में भी कांग्रेस ने लोकलुभावन वादे किए. 300 यूनिट बिजली फ्री देने का वादा किया. महंगाई और बेरोजगारी के बीच कांग्रेस को इन लोकलुभावन वादों का फायदा मिला.
5). पब्लिक और सोशल मीडिया कैंपेनिंग
चुनाव चाहे कोई भी हो, पब्लिक और सोशल मीडिया कैंपेनिंग का असर हर चुनाव में पड़ता है. कांग्रेस इस मायने में कहीं न कहीं बीस साबित हुई. पीएम मोदी की पहली रैली कैंसिंल होने के बाद कांग्रेस ने इसे बीजेपी का डर बताया. हालांकि बाद की रैलियों में पीएम आए और भीड़ भी खूब जुटी. दूसरी ओर प्रियंका गांधी कांग्रेस की रैलियां कर रही थीं.
कांग्रेस के लिए सोशल मीडिया कैंपेनिंग संभाल रही कंपनी डीजी पीपल के निदेशक अमित कुमार ने बताया कि बीजेपी सरकार की कैबिनेट में मंत्री रहे लगभग हर मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं. इसे खूब प्रचारित किया गया. बीजेपी चूंकि सरकार में थी तो एंटी इन्कम्बेंसी को भी सोशल मीडिया पर खूब भुनाया गया. एंटी-बीजेपी फैक्ट्स को फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया पर खूब फैलाया गया, जिनका असर दिखा.
Source : “TV9 Bharatvarsh”