Old Pension Scheme पर क्या है विवाद, जानिए नयी और पुरानी पेंशन योजना में अंतर। पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है कि क्या यह फिर से लागू होगी या नहीं? हालांकि, राज्य स्तर पर कई राजनीतिक पार्टियां ने इसे अपने चुनावों का मुद्दा बनाकर पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने का वादा किया है और कई राज्यों में इसे लागू भी कर दिया गया है।
क्या है पुरानी पेंशन योजना
पुरानी पेंशन योजना के तहत साल 2004 से पहले कर्मचारियों के रिटायरमेंट पर वेतन की आधी राशि पेंशन के तौर पर दी जाती थी। रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने के बाद उसके परिवार को भी पेंशन की राशि दी जाती थी। साथ ही इस योजना में 20 लाख रुपये तक ग्रेच्युटी की रकम मिलती थी और इसके अलावा हर 6 महीने बाद बढ़ने वाले DA का भी प्रावधान था।
क्या है नयी पेंशन योजना
केंद्र सरकार ने साल 2004 में नयी पेंशन योजना (New Pension Scheme) लागू की। इस योजना के तहत कर्मचारियों को पेंशन उनके योगदान के आधार पर ही मिलेगी, यानि इस योजना के तहत कर्मचारी का बेसिक वेतन और महंगाई भत्ते यानी डीए का 10 फीसदी हिस्सा काट कर पेंशन फंड में निवेश कर दिया जाता है। यह व्यवस्था शेयर मार्केट के उतार चढ़ाव पर आधारित है, इसलिए इसे सुरक्षित नहीं माना जाता है। दरअसल, नयी पेंशन योजना के तहत पेंशन प्राप्त करने के लिए नई पेंशन योजना का 40 फीसदी निवेश करना होता है। इस योजना में 6 महीने बाद मिलने वाले डीए का कोई प्रावधान नहीं है।
NPS पर क्यों हैं विवाद
चूँकि नयी पेंशन योजना शेयर मार्केट पर आधारित है, इसलिए कर्मचारियों का कहना है कि अगर पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न अच्छा रहा तो प्रोविडेंट फंड (Provident Fund) और पेंशन (Pension) की पुरानी स्कीम की तुलना में नए कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय भविष्य में अच्छी धनराशि भी मिल सकती है लेकिन पेंशन फंड के निवेश का रिटर्न बेहतर ही होगा, यह कैसे संभव है? यह एक मुख्य वजह है जिसकी वजह से सभी कर्मचारी 7th Pay Commission के तहत पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
प्वाईंटस में समझें दोनों के बीच अंतर
● OPS के तहत पेंशन के लिए वेतन से कोई कटौती नहीं की जाती थी। जबकि NPS में कर्मचारी के वेतन से बेसिक सैलरी+DA का 10 प्रतिशत हिस्सा कटता है।
● OPS सुरक्षित पेंशन योजना मानी जाती थी और इसका भुगतान सरकार की ट्रेजरी के जरिए किया जाता था। जबकि NPS शेयर बाजार आधारित है। इसलिए बाजार के उतार-चढाव के आधार पर ही उसका भुगतान होता है।
● OPS में रिटायरमेंट के समय अंतिम बेसिक सैलरी के 50 प्रतिशत तक निश्चित पेंशन मिलती थी। जबकि NPS में रिटायरमेंट के समय निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। इस अंतर ऐसे समझते हैं कि अगर अभी 80 हजार रुपये सैलरी पाने वाला कोई टीचर रिटायर होता है तो OPS के हिसाब से करीब 30 से 40 हजार रुपये की पेंशन बनती थी। वहीं अगर NPS के हिसाब से देखें तो उस शिक्षक को पेंशन फंड में किए गए अंशदान का शेयर मार्केट में कितना मूल्य है, उसके आधार पर मासिक पेंशन तय होगी।
● OPS में 6 महीने के बाद मिलने वाला महंगाई भत्ता (DA) लागू होता है। जबकि NPS में 6 महीने के बाद मिलने वाला महंगाई भत्ता लागू नहीं होता है।
● OPS में सर्विस के दौरान मौत होने पर परिवार को पेंशन मिलती है। जबकि NPS में सर्विस के दौरान मौत होने पर परिवार को पेंशन मिलेगी लेकिन योजना में जमा पैसा पेंशन फंड में रहता है।
● OPS में रिटायरमेंट पर GPF (General Provident Fund) के ब्याज पर किसी तरह का इनकम टैक्स नहीं लगता था लेकिन NPS पर शेयर बाजार के आधार पर जो लाभ मिलता है, उस पर आय अनुसार टैक्स देना पड़ता है।
● OPS में रिटायरमेंट के वक्त पेंशन प्राप्ति के लिए GPF से कोई निवेश नहीं करना पड़ता था। जबकि NPS पर पेंशन प्राप्ति के लिए फंड से 40 प्रतिशत पैसा इंवेस्ट करना पड़ता है।
किन-किन राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना को किया लागू
OPS को लागू करने वाले राज्यों में कांग्रेस शासित राजस्थान और छत्तीसगढ़ शामिल हैं। वहीं आम आदमी पार्टी शासित पंजाब; और झारखंड मुक्ति मोर्चा शासित झारखंड में भी OPS की वापसी हो गई है। जबकि अभी हाल ही हिमाचल प्रदेश के चुनाव में जीत हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी ने यहां भी OPS लागू करने का वादा किया है।
नयी पेंशन स्कीम में जमा पैसों का क्या होगा
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने कहा था कि राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार ने अपने सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन व्यवस्था शुरू की हैं। इसके साथ ही पेंशन रेगुलेटरी के पास नयी पेंशन योजना के सब्सक्राइबर्स के पैसों को वापस करने के लिए एक प्रस्ताव भेजा है। पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी (PFRDA) को इन राज्य सरकारों ने चिट्ठी लिखकर कहा है कि वह सभी नयी पेंशन योजना सब्सक्राइबर्स के पैसों को वापस कर दें। तब इस मामले पर PFRDA ने जवाब दिया है कि PFRDA Act, 2013 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके जरिए नई पेंशन योजना में जमा पैसों को राज्य सरकारों को दिया जाए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ और कितना बढ़ेगा बोझ
केंद्रीय वित्त आयोग के चेयरमैन एनके सिंह ने पुरानी पेंशन योजना को देश की अर्थव्यवस्था के लिए अन्यायपूर्ण बताया है। साथ ही सभी राज्य सरकारों को कड़ी आपत्तियों के साथ चेतावनी पत्र भी भेजा है। जबकि नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने भी कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना (OPS) को दोबारा शुरू करने पर चिंता जताई थी।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि पुरानी पेंशन योजना आने वाले समय में अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी 3 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। झारखंड के मामले में यह बजट का 217 प्रतिशत, राजस्थान में 190 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 207 प्रतिशत हैं। पहले से ही कर्ज में डूबे इन राज्यों के लिए यह योजना मुसीबत ला सकती हैं। इससे भविष्य में आने वाली सरकारों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा।
कांग्रेस ने नयी पेंशन योजना की दी थी स्वीकृति
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर नयी पेंशन योजना को स्वीकृति मिली थी। तब की यूपीए सरकार ने कहा था कि प्रतिवर्ष 5 लाख 76 हजार करोड़ रुपये केवल पेंशन के रूप में राज्यों और केंद्र को भुगतान करना पड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश अपने कुल राजस्व का 80 प्रतिशत, बिहार 60 प्रतिशत और पंजाब 34 प्रतिशत केवल पेंशन पर खर्च करता है। अगर राज्य के खर्च और कर्ज के ब्याज को जोड़ दिया जाए तो राज्यों के पास क्या बचेगा? सरकारी कर्मचारियों को भारी पेंशन अन्य देशवासियों के भविष्य पर भारी पड़ेगी।
केंद्र की भाजपा सरकार का क्या है रूख
संसद में कुछ दिनों पहले ही एक सवाल के जवाब में वित्त राज्यमंत्री भागवत कराड ने साफ करते हुए कहा था कि पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने का कोई भी प्रस्ताव केंद्र सरकार के विचाराधीन नहीं है। जबकि कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना लागू किए जाने को लेकर भाजपा के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने कहा है कि आज उन राज्यों को दिक्कत नहीं होगी लेकिन साल 2034 में हालात श्रीलंका जैसे हो जायेंगे और राज्य सरकारों के पास अपना खर्च चलाने और कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी धन नहीं होगा।
Source : “OneIndia”