Delhi: पुराने किले में चल रही खोदाई, मिला कुषाण काल का साक्ष्य; ढूंढी जा रही पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ।। पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ ढूंढने के लिए पुराना किला में चल रही खोदाई में कुषाण काल का एक और साक्ष्य मिला है। खोदाई में कुषाण काल के मिल चुके चबूतरे के बाद अब मिट्टी के बर्तन पकाने की एक भट्टी मिली है।
इसके साथ काफी राख मिली है। पुरातात्विक अध्ययन में यह भट्टी उत्तर कुषाण काल की बताई गई है। यानी की कुषाण काल के शुरुआती समय की है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने खोदाई आगे जारी रखने का फैसला लिया है। मानसून शुरू होने से पहले तक खोदाई जारी रहेगी।
आजादी के बाद से पांचवी बार पुराना किला में खोदाई हो रही है और यह पहला मौका है जब कुंती मंदिर के पास खोदाई हो रही है। खोदाई को विस्तार दिया गया है और एएसआइ इस उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहा है कि इंद्रप्रस्थ को लेकर शायद इस बार किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके। इस स्मारक में 1955 के बाद 1969 से 1972 तक इंद्रप्रस्थ ढूंढने के लिए खोदाई हुई है। इसके बाद 2013-14 और 2017-18 में भी खोदाई हुई है। पूर्व की दो खोदाई वरिष्ठ पुरातत्वविद प्रो बी बी लाल के नेतृत्व में हुई थीं और बाद की दो खोदाई पुरातत्वविद वसंत स्वर्णकार के नेतृत्व में हुई हैं। अभी जो खोदाई चल रही है इसका नेतृत्व भी स्वर्णकार कर रहे हैं।
1955 के बाद यह पहला मौका है, जब खोदाई को लेकर एएसआइ आरपार की लड़ाई के मूड में है, एएसआइ चाहता है कि इस बार किसी निष्कर्ष पहुंचा जाना चाहिए। दरअसल यहां वे चित्रित मृदभांड मिले हैं, जिन्हें महाभारत काल का माना जाता है। यही चित्रित मृदभांड हस्तिनापुर और लाक्षागृह आदि के आसपास हुई खोदाई में भी मिले हैं। खोदाई का नेतृत्व कर रहे एएसआइ के निदेशक वसंत स्वर्णकार कहते हैं कि कि खोदाई में जो भट्टी निकली है, उसकी निर्माण शैली से इसे प्रारंभिक कुषाण काल यानी कुषाण काल के शुरुआती समय का आंका गया है। भट्टी के साथ ही काफी राख भी मिली है।
इससे साफ है कि यह मिट्टी के बर्तन पकाने वाली भट्टी है। भट्टी के स्थान को छोड़कर खोदाई का काम आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया है। उन्होंने बताया कि इसी खोदाई स्थल पर कुछ समय पहले पक्की ईंटों का एक प्लेटफार्म भी मिला है। उन्होंने कहा कि किसी भी निष्कर्ष पर आगे बढ़ने के लिए हम लोग खोदाई को जारी रखे हुए हैं। बता दें कि कुषाण काल को आज से 2000 साल पहले का माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि कुषाण राजवंश का संस्थापक कुजुल कडफीसेस था। इस वंश की स्थापना 15 ईसवी में हुई। कुषाण वंश का कार्यकाल 151 ईसवी तक माना जाता है।
कनिष्क कुषाण साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली शासक था। उसके साम्राज्य की राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी। उसके शासन के दौरान कुषाण साम्राज्य उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान से लेकर मथुरा व कश्मीर तक फैला था।
By जागरण