0 0 lang="en-US"> हिमाचल प्रदेश के युवा चिकित्सकों को रोजगार नहीं और रिटायर होने वाले चिकित्सक को सेवा विस्तार दे रही सुक्खू सरकार,एनपीए का मामला भी सुलझा नहीं - ग्रेटवे न्यूज नेटवर्क
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हिमाचल प्रदेश के युवा चिकित्सकों को रोजगार नहीं और रिटायर होने वाले चिकित्सक को सेवा विस्तार दे रही सुक्खू सरकार,एनपीए का मामला भी सुलझा नहीं

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स्वास्थ विभाग में चिकित्सा अधिकारियों के संकड़ों पद रिक्त चल रहे हैं लेकिन प्रदेश के युवा चिकित्सकों को जो की एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण कर चुके हैं और रोजगार की तलाश में हैं उन्हें भी प्रदेश की जनता की सेवा करने का मौका नहीं दिया जा रहा है। माननीय मुख्यमंत्री महोदय के गृह जिला की बात करें तो यहां पर भी इन रिक्त स्थानों में डेपुटेशन के माध्यम से ही जुगाड़ करके स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा रही है। हमीरपुर जिला में तो चिकित्सकों की कमी का यह आलम है कि एक स्वस्थ खंड से दूसरे स्वास्थ्य खंड में भी चिकित्सक अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। ऐसा करने से विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों की स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं और जनता को प्रतिदिन स्थाई सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों की वर्षों से पदोन्नति नहीं हुई है। चिकित्सकों की पदोन्नति के बहुत ही कम स्वीकृत पद हैं। इसके बाबजूद भी 50% से अधिक पदों पर पदोन्नति नहीं हो पाई है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है की विभाग उन चिकित्सा अधिकारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) खोज रहा है जो कि अपनी पदोन्नति का इंतजार करते हुए स्वर्ग सिधार चुके हैं, बात यहीं तक सीमित नहीं है, जिन चिकित्सा अधिकारियों ने प्रमोशन ना होने के चलते त्यागपत्र दे दिया है या मेडिकल एजुकेशन विभाग ज्वाइन कर लिया है और आज की डेट में विभाग मैं कार्यरत नहीं है उनकी भी एसीआर आज तक विभाग खोज रहा है। पदोन्नति का इंतजार कर रहे चिकित्सकों को विभाग की तरफ से यही उत्तर मिलता है कि अभी तक सबकी एसीआर नहीं आई। कई चिकित्सकों ने यह भी लिख कर दे दिया है कि वो पदोन्नति नहीं चाहते हैं तो उनकी एसीआर भी बार-बार मांगी जा रही है। इस तरह चिकित्सकों को पदोन्नति का इंतजार करते हुए वर्षों बीत गए हैं और उनकी पदोन्नति नहीं हो पा रही है। अपनी असफलता को छुपाने के लिए विभाग ने कुछ मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को सेवा विस्तार भी प्रदान किया है क्योंकि विभाग पदोन्नति करने में पूरी तरह से असफल पाया गया है। संघ की मांग हमेशा ही रही है कि किसी व्यक्ति विशेष को सेवा विस्तार देकर किसी और का हक छीना जाना भी न्याय संगत नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की धीमी गति का प्रमाण यह भी है कि 2016 के बाद विभाग चिकित्सकों की वीरायता सूची बनाने में असफल रहा है इस संदर्भ में 2023 में एक कमेटी गठित की गई थी पर अभी तक कोई भी कदम धरातल पर नहीं उठाया गया है। माननीय उच्चतम न्यायालय एवं माननीय उच्च नन्यायालय के निर्देशानुसार चिकित्सकों की वीरता सूची उनके डेट ऑफ जॉइनिंग से बनाई जाने के लिए संघ ने कई बार पत्राचार भी किया पर अब तक संघ को इस संदर्भ में भी निराशा ही हाथ आई है क्योंकि स्वास्थ विभाग को पूरी तरह पाता ही नही है की कौन कौन चिकित्सा अधिकारी विभाग में कार्यरत हैं। हिमाचल के प्रत्येक ग्रामीण एवं दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा अधिकारी भयंकर ठंड और गर्मी में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उन्हें केंद्रीय सरकार की तर्ज पर डायनेमिक करियर प्रोग्रेशन स्कीम लागू की जाए। इक्वल वर्क इक्वल पे एवं वन नेशन वन सैलरी के तहत भी हिमाचल की चिकित्सकों की काम वेतन देकर प्रताड़ना की जा रही है और उन्हें सेंट्रल हेल्थ सर्विसेज के तहत मानदेय प्रदान किया जाए जो की देश के बिहार एवं मध्य प्रदेश से राज्यों में भी प्रदान किया जा रहा है। चिकित्सकों के काम पदोनती के पद होने के चलते उन्हें केंद्र सरकार की तर्ज पर डायनेमिक करियर प्रिग्रेसन स्कीम शीघ्र प्रदान की जाए।
देशभर में बेहतरीन सुविधाएं परिवहन करने के बाद भी हिमाचल प्रदेश में अनुबंध पर विशेष चिकित्सकों को 33660 के देयमान पर रखा जा रहा है देश भर में सबसे कम है। इनमें से अधिकांश विशेषज्ञ चिकित्सकों को बॉन्ड पीरियड के तहत रखा था, नेशनल मेडिकल कमिशन की अधिसूचना लागू होते ही यह चिकित्सा अन्य राज्यों की तरफ रुख करने को बाध्य हैं और हिमाचल की जनता को विशेषज्ञों की चिकित्सा सेवाओं के अभाव का सामना करना पड़ेगा।
हिमाचल प्रदेश के लगभग सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केदो में एवं अनेकों नागरिक स्वास्थ्य केदो में चिकित्सकों के स्वीकृत पद इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के अनुरूप नहीं है। इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड की तहत लगभग 10 चिकित्सकों की पोस्ट एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में होनी चाहिए वहां पर कई जगह पर मात्र 2 चिकित्सक ही अपनी दिन रात सेवाएं देकर प्रदेश की जनता के लिए समर्पित है। संघ की मांग है कि में स्वास्थ्य संस्थानों में ना केवल चिकित्सा अधिकारियों बल्कि अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों की भारती भी की जाए। ऐसे में चिकित्सकों की प्रताड़ना बेहद दुखद विषय भी है।
स्वास्थ्य विभाग में अन्य विभागों से नियुक्तियां कर दी जा रही है जिसे हमेशा ही संघ ने विरोध किया है। अभी हाल ही में राज्य के कुछ जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अधीनस्थ दंत चिकित्सकों की पोस्टिंग कर दी गई है, जहां की इन चिकित्सकों के पद स्वीकृत भी नहीं है अतः मेडिकल ऑफिसर के पदों पर अपने विभाग के लोगों को रखना सीधा-सीधा प्रदेश के स्वास्थ्य कार्यक्रम के स्तर को नीचे गिराना है। आज हिमाचल हेल्थ इंडिकेटर्स में देश में सर्वोच्च स्थान पर है और यदि अन्य विभागों में इस तरह की नियुक्तियां प्रदान करता रहा तो यह स्तर हर हाल में गिरता चला जाएगा। प्रदेश की जनता बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाओं से जान बूझकर वंचित कर दी जाएगी। नागरिक अस्पतालों में भी एमबीबीएस मेडिकल ऑफिसर की पोस्ट के अगेंस्ट डेंटल डॉक्टर रखे जा रहे हैं जिससे कि उन स्थानों पर कार्य करने वाले चिकित्सकों का कार्यभार बढ़ रहा है और प्रदेश की जनता को कतर में लगकर लंबी देर तक अपने उपचार के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। राज्य में विभिन्न परिवारजन एवं बेरोजगार चिकित्सा जहां रोजगार का इंतजार कर रहे हैं वही इस तरफ की नियुक्तियां एमबीबीएस पोस्टों पर कर देने से उनका भी मनोबल टूट रहा है और युवा चिकित्सकों को मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ रहा है। संघ की यह भी मांग है कि प्रदेश की एड्स कंट्रोल सोसायटी के प्रोजेक्ट डायरेक्टर का चार्ज भी एमबीबीएस चिकित्सकों को ही दिया जाए क्योंकि उन्होंने ही इस संदर्भ में वर्षों गहन अध्ययन किया होता है। अतः संघ का अनुरोध है की एमबीबीएस पोस्ट से अन्य विभाग के लोगों को हटाया जाए और उनके अपने विभागों में पद स्वीकृत किये जाए। राज्य के विभिन्न जिलों में भी अन्य विभागों से प्रोग्राम ऑफिसर्स की नियुक्तियां कर दी जा रही है जिसके चलते एमबीबीएस चिकित्सकों के पदों में भारी गिरावल ही रही है। संघ के सभी सदस्यों का कहना है की हमर कोई भी प्रोग्राम ऑफिसर की नयुंतम योग्यता एमबीबीएस ही हो। जिस स्वास्थ अधिकाई की पढ़ाई का का स्तर यदि एमबीबीएस से कम है तो उनके अधीनस्थ कार्य करना सभी एमबीबीएस चिकित्सकों के आत्मसमान एवं स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रहा है।
हिमाचल प्रदेश में अनुबंध पर नियुक्त सभी कर्मचारियों अधिकारियों को ग्रेड पे का 150% मानदेय दिया गया वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग में नियुक्त अनुबंध पर कार्यरत चिकित्सा अधिकारियों मेरे से भी लगभग 20% चिकित्सा अधिकारियों को इस मंडे से वंचित रखा गया है। एक ही जिला में एक ही साथ अनुबंध पर नियुक्त चिकित्सकों को अलग-अलग वेतन मान दिया गया। इस त्रुटि को विभाग के साथ पत्राचार एवं समाचार पत्रों के माध्यम से भी उजागर किया गया लेकिन आज तक विभाग इस त्रुटि को ठीक करने में असफल रहा है।
माननीय मुख्यमंत्री महोदय प्रदेश के जनता हितेषी हैं और संघ ने हमेशा ही उनसे अनुरोध किया है और बताया है कि देश के जिन-जिन राज्यों में एनपीए नहीं दिया जाता है उन राज्यों की सरकारी चिकित्सा का स्तर एवं हेल्थ इंडिकेटर्स हिमाचल से काफी नीचे है। संघ यह भी बताना चाहता है कि चिकित्सकों की एनपीए की कटौती को आपदा से ना जोड़ा जाए क्योंकि इसे रोकने की अधिसूचना प्रदेश में आपदा आने से काफी समय पहले से ही आ चुकी है। चिकित्सकों से हो रही प्रताड़ना के चलते चिकित्सा अधिकारी काले बिल्ले लगाने को बाध्य हुए हैं। प्रदेश में आई आपदा के समय में भी संघ ने दिन-रात प्रदेश की जनता दिन रात सेवाएं प्रदान की और माननीय मुख्यमंत्री महोदय से वार्ताओं को 7 महीने बीत जाने के बाद और उनके आश्वासनों का धरातल पर पालन न होने से समस्त चिकित्सा अधिकारियों में रोष है।
आज चिकित्सकों को काले बिल्ले लगाते हुए 13 दिन हो चुके हैं लेकिन सरकार ने चिकित्सकों को मांगों को अभी तक गंभीरता से नहीं लिया है अन्यथा संघ को और ठोस कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ेगा।

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