उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज ज्ञान और शिक्षा के केंद्र के रूप में भारत की ऐतिहासिक श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए कहा कि देश अपने पिछले गौरव को फिर से हासिल करने के मार्ग पर दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है। नालंदा और तक्षशिला जैसे संस्थानों की शानदार विरासत का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने समकालीन समय में भारत के शैक्षिक परिदृश्य में आदर्श बदलाव और पुनरुत्थान के बारे में प्रकाश डाला।
दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) के 62वें स्थापना दिवस समारोह में उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कामकाजी पेशेवरों, गृहिणियों और छात्रों सहित जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से विविध शिक्षार्थियों के लिए एक परिवर्तनकारी मंच प्रदान करने के लिए एसओएल की सराहना की।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एसओएल ने उन लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं जो पहले विभिन्न परिस्थितियों से मजबूर होकर शिक्षा से वंचित रह गए थे, वे अब अपनी दिनचर्या को बाधित किए बिना शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। श्री धनखड़ ने ऐसे लोगों को दूसरा मौका देने के लिए एसओएल की सराहना की, जो पहले औपचारिक शिक्षा से चूक गए थे। एसओएल ने ज्ञान और कौशल के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सशक्त बनाया, जिससे वास्तविक समावेशिता का माहौल तैयार होने में मदद मिली। श्री धनखड़ ने शैक्षणिक संस्थानों के सार और गुणवत्ता को आकार प्रदान करने में बुनियादी ढांचे की तुलना में संकाय की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया।
परिवर्तन के लिए शिक्षा का सबसे प्रभावशाली और परिवर्तनकारी तंत्र के रूप में उल्लेख करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने का साधन ही नहीं है; बल्कि, यह प्रगति, सशक्तिकरण और सामाजिक बदलाव की आधारशिला भी है। शिक्षा उस ताले की वह कुंजी है जो प्रगति, समृद्धि और सशक्तिकरण के द्वार खोलती है। शिक्षा सबसे बड़ा अधिकार और दान है। उन्होंने कहा कि शिक्षा से बड़ा कोई मौलिक अधिकार नहीं हो सकता और शिक्षा से बड़ा कोई दान नहीं हो सकता।
चंद्रयान की यात्रा से प्रेरणा लेते हुए जहां शुरुआती असफलताओं के बाद इसने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर आसानी से लैंडिंग की, श्री धनखड़ ने छात्रों से असफलता को सफलता की कुंजी मानने का आग्रह किया। उन्होंने आधुनिक विश्व की जटिलताओं से निपटने के लिए एक लचीली मानसिकता की आवश्यकता पर जोर दिया।
भारतीय शैक्षिक परिदृश्य में नई शिक्षा नीति (एनईपी) की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि एनईपी एक परिवर्तनकारी बदलाव की शुरुआत करती है और समग्र शिक्षार्थी विकास के लिए एक रोडमैप तैयार करने के साथ-साथ 21वीं सदी की चुनौतियों के लिए सुसज्जित ज्ञानवान समाज का निर्माण भी करती है। उन्होंने लचीले शिक्षण मार्गों, प्रौद्योगिकी एकीकरण, विविध आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को मान्यता देने के बारे में एनईपी के योगदान पर जोर दिया।
उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग जैसे संस्थान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करने और लंबे समय से चली आ रही खामियों को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, जिसकी एनईपी द्वारा कल्पना की गई है।
इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह, कैंपस ऑफ ओपन लर्निंग, दिल्ली विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर पायल मागो, संकाय सदस्य, छात्र और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।