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शिमला 29 सितंबर : हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला द्वारा आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा राज्य स्तरीय जयंती समारोह का संस्कृत महाविद्यालय फागली शिमला में भव्य आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर सेमिनार तथा बहुभाषी कवि सम्मेलन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ कृष्ण मोहन पांडेय ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में वेद, वैदिक साहित्य, उपनिषद ,रामायण ,महाभारत, गीता, पुराण और धर्म शास्त्रों का विशेष महत्व है, जो ज्ञान, विज्ञान, कर्म और उपासना एवं अध्यात्म तथा योग आदि समस्त विषयों का मूल स्रोत है। भारतीय ज्ञान परंपरा वैज्ञानिक और व्यावहारिक चिंतन पर आधारित है जो विश्व बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत है तथा विश्व के समस्त समुदायों एवं प्राणीमात्र के कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत है इसलिए आज भी प्रासंगिक है। महाभारत एवं पुराण कॉल तक वैदिक धर्म दर्शन संस्कृति की धारा का निरंतर प्रवाह होता रहा। कालांतर में विदेशियों केआक्रमण के दौरान जहां भारत की धन संपत्ति को लूटा गया वहां भारतीय ज्ञान परंपरा को अपनाते हुए संस्कृत के ग्रंथों का अपनी-अपनी भाषा में अनुवाद करके भरपूर उपयोग किया।
बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले हजारों विद्यार्थियों, संस्कृतज्ञ आचार्यों तथा गुरुकुलों को नष्ट कर दिया। तक्षशिला की स्थापना श्री राम के भाई भरत ने की और अपने पुत्र तक्ष को वहां बसाया। आक्रांताओं ने तक्षशिला को नष्ट कर दिया और पुस्तकालयों को जला दिया जिनमें संस्कृत के असंख्य ग्रंथ जल गए इसके बाद शिक्षाविद आचार्य ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की कालांतर में नालंदा को भी विदेशी लोगों ने नष्ट कर दिया। इन विश्व विद्यालयों में भारतीय ज्ञान परंपरा वेद संस्कृत साहित्य वैज्ञानिक विधि के अनुसार अध्ययन करवाया जाता था और यह विश्वविद्यालय योग आयुर्वेद विज्ञान की प्रयोगशाला तथा केंद्र के रूप में स्थापित किए गए थे। आचार्य दिवाकर दत्त का योगदान इस विषय पर डॉक्टर कृष्ण मोहन पांडे ने अपने उद्बोधन में यह भी कहा कि भारत ने विश्व को सदैव अध्यात्म विश्वबंधुत्व, योग और आयुर्वेद का ज्ञान दिया है जिसका आज भी विश्व समुदाय द्वारा अनुकरण किया जा रहा है।
हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी शिमला द्वारा संस्कृत महाविद्यालय फागली शिमला में आयोजित आचार्य दिवाकर दत्त राज्यस्तरीय जयंती समारोह के अवसर पर भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया जिसमें लगभग 20 शोध छात्रों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए तथा अन्य उपस्थित विद्वानों ने परिचर्चा में भाग लिया। शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में विद्यालय संस्कृत महाविद्यालय तथा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के आचार्य एवं शोध छात्र उपस्थित रहे जिनमें डॉक्टर केवल शर्मा, अर्चना शर्मा, राजेश कुमार, अनु देवी शिवानी देवी रविंद्र कुमार नरेंद्र कुमार पांडेय प्रमुख थे।
कार्यक्रम के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम और काव्य पाठ भी आयोजित किया गया जिसमें वरिष्ठ संस्कृत विद्वानों के साथ युवा कवियों और लेखकों ने भी भाग लिया कवियों में दीप्ति सारस्वत ओंकार तथा ओजस्वी शामिल रहे। समारोह के दौरान आचार्य दिवाकर दत्त के पारिवारिक जनों का भी सम्मान किया गया।
समारोह के आयोजक डॉ कर्म सिंह सचिव हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी ने कहा कि वर्तमान सरकार द्वारा द्वितीय राजभाषा संस्कृत के प्रचार प्रसार और क्रियान्वयन के लिए भाषा संस्कृति विभाग में विभिन्न वर्गों के 14 पद सृजित किए गए हैं जिनके लिए भर्ती और पदोन्नति नियमों को बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। उन्होंने यह भी बताया कि हिमाचल प्रदेश में अनेकों ऐसे विद्वान हुए हैं जिन्होंने संस्कृत और संस्कृति की उन्नति प्रोत्साहन और प्रचार मैं भरपूर योगदान रहा है इनमें आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा का स्मरण बड़े आदर भाव से किया जाता है जिनका ज्योतिष कर्मकांड भागवत कथा संस्कृत अध्ययन अध्यापन और संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
उन्होंने बताया कि हाल ही में सरकार द्वारा चंबा रामपुर और मनाली में 3 संस्कृत महाविद्यालय खोलने की घोषणा की गई है और पदों का भी सृजन को स्वीकृति प्रदान की गई है।
कार्यक्रम के दौरान संस्कृत भारती के उत्तर क्षेत्रीय संगठन मंत्री श्री नरेंद्र कुमार ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में संस्कृत के द्वितीय राजभाषा के रूप में घोषित किया जाना और उसके क्रियान्वयन के लिए सार्थक एवं सफल प्रयास करना वर्तमान सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसे संस्कृत इतिहास में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
आचार्य मस्तराम शर्मा की आचार्य दिवाकर दत्त शर्मा का हिमालय क्षेत्र में संस्कृत भाषा और साहित्य के लिए अभूतपूर्व योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है उनके अनेक शिष्य आज भी प्रदेश और देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। संस्कृत महाविद्यालय शिमला के प्राचार्य एवं समारोह के संयोजक डॉ मुकेश शर्मा ने कहा कि संस्कृत भाषा और साहित्य के संरक्षण तथा प्रचार प्रसार में जिन विद्वानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उनको याद किया जाना और उनके बताए गए मार्ग का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ना समय की मांग है और आज का युवा विद्यार्थी संस्कृत भाषा का आधुनिक भाषाओं के साथ अध्ययन करता हुआ निरंतर आगे बढ़ रहा है।
समारोह के सायं कालीन सत्र में बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया गया जिसमें संस्कृत एवं हिंदी भाषाओं में रचनाकारों ने अपनी कविताओं का पाठ किया इस अवसर पर संस्कृत महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भी भव्य प्रस्तुति दी गई।
कार्यक्रम के अंत में सेमिनार में प्रतिभागी एवं शोध पत्र वाचन के लिए विद्वानों को प्रमाण पत्र द्वारा सम्मानित किया गया।