कितने साल जिया था रावण? उसे कौन-कौन से वर मिले, रावण संहिता से जानिए अनसुनी बातें।रावण के बारे में रामायण में आपने भी पढ़ा होगा. मगर, क्या कभी रामचरितमानस, रावण संहिता या स्कंद पुराण में उसके बारे में पढ़ा? ये वो पौराणिक पुस्तकें हैं, जिनमें रावण से जुड़े अनसुने या अज्ञात प्रश्नों का जवाब मिलता है।कुछ लोग अक्सर पूछते हैं कि रावण को ब्रह्माजी से उसे कौन-कौन से वरदान मिले थे, वह कितने साल जिया या उसका वध कितनी आयु में हुआ?
श्री राम कथा सुनाने वाले श्री भगवान सिंह दास जी कहते हैं कि यह तो सबको मालूम ही होगा कि रावण के 10 शीश थे और त्रेतायुग के अंतिम चरण के आरम्भ में उसका जन्म हुआ था. रावण संहिता में ही यह उल्लेख है कि रावण ने अपने भाइयों (कुम्भकर्ण और विभीषण) के साथ ब्रह्माजी की 10 हजार वर्षों तक तपस्या की.
हर 1,000वें वर्ष में उसने अपने 1 शीश की आहुति दी, इसी तरह जब वह अपना 10वां शीश चढ़ाने लगा तो ब्रह्माजी प्रकट हुए. रावण ने उनसे वर मांगा कि देव, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व, नाग, किन्नर, यक्ष इत्यादि कोई न मार पाए. तब ब्रह्माजी ने कहा- “तथास्तु! लेकिन नर-वानर से खतरा हो सकता है याद रखना.” तब रावण बोला- “भगवन् इनका मुझे भय नहीं है, ये तो हमारा आहार हैं.” तत्पश्चात् रावण ने कुबेर से लंका छीन ली और वर्षों तक स्वर्ग के देवों से संघर्ष चला.
अनेक देव-दानवों, यक्ष-वीरों को पराजित करते हुए रावण जब भगवान शिव के पास पहुंचा, तो उसने कैलाश पर्वत को उठाने की चेष्टा की. वहां उसकी भुजाएं दब गईं. तब उसने 1000 वर्षों तक शिव-स्तुति की. शिवजी ने प्रसन्न होकर उसे वर दिया. इस प्रकार रावण अत्यंत बलशाली और मायावी हो गया.
वर मिलने तक उसे 11 हजार वर्षों से ज्यादा हो चुके थे. वह केवल 6 से हारा, अन्यत्र सबको जीत लिया. लंका में उसका शासनकाल 72 चौकड़ी का था. 1 चौकड़ी में कुल 400 वर्ष हुए, तो 72×400= 28800 वर्ष हो गए. 10000+1000+28800 मिलाएं तब करीब 40 हजार वर्ष होते हैं. 41,000वें वर्ष में उसका श्रीराम-सेना से सामना हुआ और वह मारा गया.
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