0 0 lang="en-US"> Papankusha Ekadashi Vrat 2022: सारे पापों का प्रायश्चित के लिए रखें पापांकुशा एकादशी व्रत? जानें तिथि, मुहूर्त और विष्णु पूजन का महत्व! - ग्रेटवे न्यूज नेटवर्क
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Papankusha Ekadashi Vrat 2022: सारे पापों का प्रायश्चित के लिए रखें पापांकुशा एकादशी व्रत? जानें तिथि, मुहूर्त और विष्णु पूजन का महत्व!

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Papankusha Ekadashi Vrat 2022: सारे पापों का प्रायश्चित के लिए रखें पापांकुशा एकादशी व्रत? जानें तिथि, मुहूर्त और विष्णु पूजन का महत्व!प्रत्येक वर्ष आश्विन मास शुक्लपक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से मनाया जाता है. सर्व विदित है कि एकादशी तिथि श्रीहरि (विष्णुजी) को समर्पित होती है।साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं, लेकिन पापांकुशा एकादशी का महत्व सबसे खास होता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत के साथ श्री हरि की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और जातक को धन-धान्य से परिपूर्ण करते हैं, और उसकी नकारात्मक शक्तियों से रक्षा करते हैं, जिससे वह ताउम्र खुशहाल रहता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पापाकुशां व्रत एवं श्रीहरि की विधि विधान से पूजा करने से सारे पापों का प्रायश्चिच होता है, और मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करता है. आइये जानें कब है पापांकुशा एकादशी व्रत और क्या है, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व?

पापांकुशा एकादशी व्रत/पूजा का महात्म्य!

सनातन धर्म के अनुसार इस व्रत को सच्ची आस्था, एवं निष्ठा से करने से मानव जीवन में सद्बुद्धि आती है. जाने-अंजाने हुए पापों से मुक्ति एवं जीवन के सारे सुख भोगने के मोक्ष प्राप्त होता है. एकादशी का कोई भी व्रत दशमी की शाम से द्वादशी की सुबह पारण होने तक रखना चाहिए. तभी पूर्ण पुण्य-फल प्राप्त होते हैं.

पापांकुशा एकादशी तिथि एवं शुभ मुहूर्त!

विजयादशमी (दशहरा) के अगले दिन पापांकुशा एकादशी का व्रत रखने का विधान है.

* पापाकुंशा एकादशी प्रारंभ: 12.00 P.M. (05 अक्तूबर 2022) से

* पापाकुंशा एकादशी समाप्त: 09.40 A.M. (06 अक्तूबर 2022) तक

उदयातिथि अनुसार, पापांकुशा एकादशी व्रत 06 अक्टूबर 2022, को रखा जाएगा.

पापांकुशा एकादशी व्रत एवं पूजा के नियम!

दशमी को सूर्यास्त के बाद से ही एकादशी व्रत की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. एकादशी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर स्नान-दान करके श्रीहरि का ध्यान करते हुए व्रत-पूजा का संकल्प लें. एक छोटी चौकी को इशान कोण में रखकर उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर श्रीहरि की प्रतिमा रखकर गंगाजल छिड़क कर स्नान कराने के पश्चात धूप-दीप प्रज्वालित हुए निम्न मंत्र पढ़ें.

ओम नारायणाय विद्महे। वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

श्रीहरि को फूलों का हार पहनाते हुए रोली, पान, सुपारी, तुलसी-दल, फल, एवं दूध से बनी मिठाई अर्पित करें. अब विष्णु सहष्त्र नाम का जाप करें. अंत में विष्णुजी की आरती उतारें, और सबको प्रसाद का वितरण करें. अगले दिन प्रातः उठकर स्नान कर ब्राह्मण को भोजन करवा कर व्रत का पारण करें.

http://dhunt.in/CFLjy?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “लेटेस्ट ली”

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