हिमाचल चुनाव: ऐसे ही परेशान नजर नहीं आ रही बीजेपी

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हिमाचल चुनाव: ऐसे ही परेशान नजर नहीं आ रही बीजेपी। भारतीय जनता पार्टी को अंदाजा है कि कथित डबल इंजन सरकार के बावजूद हिमाचल प्रदेश में सत्ता दोबारा हासिल करने के लिए राजनीतिक पहाड़ियां चढ़ना उसके लिए कितना मुश्किल है। वैसे, यहां सत्ता में वापसी उसके लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि नाम के लिए ही सही, उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा इसी प्रदेश के हैं और अगर पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा, तो देश भर में नकारात्मक संदेश जाएगा।

वैसे भी, यहां 34 सीटें ऐसी हैं जहां 2017 चुनावों में विजय का अंतर 5,000 वोटों से कम का रहा है।

इसीलिए गुजरात की ही तरह हिमाचल प्रदेश में भी पार्टी ने सभी घोड़े खोल रखे हैं। अभी 21 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब उत्तराखंड के केदारनाथ में पूजा-अर्चना करने गए, तो उन्होंने जो सफेद कपड़े पहन रखे थे, वह हिमाचल की गद्दी जनजाति का पारंपरिक परिधान है। इसे चोला-डोरा कहते हैं। चोला लंबे कोट को कहते हैं और यह आम तौर पर भेड़ों के ऊन से बना होता है। इसमें कमर पर बेल्ट-जैसा बंधा होता है। इस बेल्ट को डोरा कहते हैं। मोदी ने जो कपड़ा पहना था, उसमें आगे स्वस्तिक और पीछे मोर पंख की कढ़ाई की हुई थी। मोदी हाल में जब चंबा आए थे, तब महिलाओं ने यह कपड़ा उन्हें भेंट किया था।

अब, आपको भले ही हंसी आ जाए, पर प्रधानमंत्री मोदी के हिमाचल दौरे से पहले नड्डा की एक पार्टी मीटिंग में कही कुछ बातें याद दिलाना जरूरी है। नड्डा 2 अक्टूबर को हमीरपुर में जिलास्तरीय कार्यकर्ताओं की बैठक को संबोधित करने आए, तो उन्होंने वहीं खादी भंडार से कुछ कपड़े खरीदे। उनके साथ रहे सभी नेताओं-कार्यकर्ताओं ने खादी के कम-से-कम 5 मीटर कपड़े खरीदे। नड्डा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कार्यकर्ताओं से स्वदेशी अपनाने और खादी पहनने का आग्रह किया। इस राजनीतिक अदा पर इसलिए लोगों को आश्चर्य ही हुआ कि मोदी शासन में खादी ग्रामोद्योग का देश भर में जो हाल हुआ है, वह जगजाहिर है।

दरअसल, हिमाचल में भी बीजेपी को पैरों से जमीन खिसकती नजर आ रही है। युवा मतदाता कर्णजीत सिंह इसकी वजह भी बताते हैं, ‘यहां चुनाव में हर बार सत्ता बदल जाती है। जो पार्टी सत्ता में रहती है, उसे हार का मुंह देखना पड़ता है। बीजेपी ‘मिशन रिपीट’ की बात कह तो रही है, पर इस बार भी सरकार के खिलाफ युवाओं, कर्मचारियों, पेंशनरों और अन्य लगभग सभी वर्गों में जो कड़ा रोष है, उससे बीजेपी का परेशान होना स्वाभाविक है।’ पार्टी ने इसी वजह से 11 सिटिंग विधायकों के टिकट बदले हैं। इनमें एक दमदार मंत्री हैं जबकि दो मंत्रियों के चुनाव क्षेत्र बदले गए हैं।

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार संदीप उपाध्याय कहते हैं कि ‘इससे ही साफ है कि ज्यादातर मंत्री-विधायक अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाए और वे केवल अपने निजी हितों में जुटे रहे।’ वैसे, इससे स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ी ही है क्योंकि 12 सीटों पर बागियों ने आजाद प्रत्याशियों के तौर पर नामांकन तक कर दिया है और उन्हें मनाने में नेताओं का समय जाया हो रहा है।

बीजेपी में जिस तरह टिकट वितरण हुआ है, उससे विपक्ष को उसे आईना दिखाने का मौका भी मिल गया है। प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष सुरेंद्र चौहान ने तो कहा भी कि ‘बीजेपी परिवारवाद का शोर करती रही है लेकिन उसने दो पूर्व मंत्रियों के पुत्रों और दो पूर्व विधायकों की पत्नियों को चुनाव में उतारा है।’

राज्य के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग मुद्दों का जोर है। मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर और कांगड़ा-जैसे लोअर हिमाचल वाले जिलों में ज्यादा जनसंख्या है और यहां बेरोजगारी भी अधिक है। इन जिलों में न तो औद्योगिक इकाइयां हैं और न बागवानी ही होती है। वैसे, इनमें ही सबसे अधिक कर्मचारी सरकारी सेवा में हैं। इनके लिए ओल्ड पेंशन स्कीम और अन्य वित्तीय लाभ मायने रखते हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च, 2022 में हिमाचल की बेरोजगारी दर 12.1 प्रतिशत थी जबकि यह देश में 7.6 प्रतिशत है। इस तरह हिमाचल अधिक बेरोजगारी वाले देश के टॉप 6 प्रदेशों में है। धर्मपुर क्षेत्र के युवा नीरज ठाकुर कहते हैं कि वह लंबे समय तक सरकारी नौकरियों की तैयारी में जुटे रहे लेकिन ज्यादातर भर्तियां समय पर हो ही नहीं पाई। कुछेक पद के लिए परीक्षा हुई, तो उनके परिणाम बहुत देरी से आए और उसके बाद भी कोर्ट में मामले लंबित पड़े रहे। इससे युवाओं को नौकरियों के लिए बाहरी राज्यों में जाना पड़ा है।

सरकार ने बड़े-बड़े विज्ञापन दिए हैं कि शिक्षा क्षेत्र में हिमाचल बेहतर कर रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के दस हजार से भी अधिक पद रिक्त हैं। सैकड़ों ऐसे स्कूल ऐसे हैं जो एक शिक्षक के सहारे चल रहे हैं। वहीं शिक्षकों की भर्तियों में बेतहाशा देरी प्रशिक्षित युवा शिक्षक बेरोजगार की बाट जोह रहे हैं। मंडी जिला के बीएड डिग्री धारक विकी कुमार का कहना है कि ‘भर्तियों में देरी का खामियाजा छात्रों के साथ प्रशिक्षित प्रशिक्षुओं को भी उठाना पड़ रहा है।’ ये मुद्दे भाजपा को भारी पड़ सकते हैं।

यही हाल शिमला, किन्नौर और सोलन के अपर हिमाचल वाले जिलों में है। यहां सेब बागवानी और बेमौसमी सब्जियों की खेती होती है और लाखों लोग इससे जुड़े हुए हैं। सेब बागानों में गौतम अडानी-जैसे बड़े पूजीपतियों के प्रवेश ने बागवानों के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बागवान अब उचित कीमत के लिए तो परेशान हैं ही, पैकेजिंग मैटेरियल और ट्रांसपोर्ट के दिनों दिन बढ़ते खर्च से भी नाराज हैं। कांग्रेस ने जिस तरह बागवानों को सेब के दाम खुद तय करने की गारंटी दी है, वह बीजेपी नेताओं के लिए परेशानी का सबब है।

हिमाचल में बागवानी क्षेत्र प्रदेश की जीडीपी में 7 फीसदी से अधिक का योगदान करता है और अकेली सेब बागवानी प्रदेश की आर्थिकी में 5 हजार करोड़ का योगदान देती है। शिमला के युवा सेब बागवान प्रशांत सेहटा कहते हैं कि पिछले चुनावों में बीजेपी ने सेब आयात में 100 फीसदी आयात शुल्क बढ़ाने और सेब का उचित मूल्य दिलवाने का वादा किया था लेकिन पिछले 30 सालों में पहली बार हिमाचल के हजारों बागवानों को एक नहीं, कई बार सड़कों पर उतरना पड़ा, फिर भी कोई राहत नहीं मिली है।

ऐसा ही कुछ चंबा, सिरमौर, कुल्लू और लाहौल-स्पीति जिलों का हाल है जहां कठिन भौगोलिक परिस्थितियां हैं और मूलभूत सुविधाओं की कमी और आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के मुद्दे हावी हैं। दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों को जिला अस्पतालों या प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी पर निर्भर होना पड़ता है। भरमौर की सुमन शर्मा कहती भी हैं कि ‘सरकार हेली एंबुलेंस और टेली मेडिसिन की बात करती तो है लेकिन इसकी पहुंच गांव स्तर तक नहीं है। हमें अल्ट्रासांउड और एक्सरे तक के लिए सैकडों किलोमिटर दूर बड़े अस्पताल जाना पड़ता है।’

चुनावों की घोषणा से ऐन पहले सरकार ने अखबारों में विज्ञापन देकर दावा किया कि उसने 100 प्रतिशत गांवों तक बिजली पहुंचा दी है। हिमाचल को बिजली राज्य कहा भी जाता है। लेकिन किन्नौर, लाहौल-स्पीति, चंबा, मंडी, कुल्लू और कांगडा जिलों के बर्फबारी वाले गांवों में लोगों को सर्दियों के दिनों में कई-कई हफ्तों तक बिना बिजली गुजारा करना पड़ता है। वैसे भी, प्रदेश में 24,567 मेगावाट विद्युत क्षमता है लेकिन अब भी आधी क्षमता- 11,138 मेगावाट तक ही बिजली उत्पादित की जा रही है।

मुफ्त सुविधाओं की घोषणाओं पर दूसरी पार्टियों की ओर उंगली उठाना दूसरी बात है, सरकार ने इसी साल राज्य में 125 यूनिट बिजली मुफ्त देने की योजना शुरू की है। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के बिलों से भी उपभोक्ताओं को राहत दी गई है।

यह तब है जबकि हिमाचल पर लगभग 67,200 करोड़ रुपये का कर्ज है। पिछले वित्त वर्ष की समाप्ति के समय कुल कर्ज 62,200 करोड़ रुपये था। प्रदेश सरकार ने इस वित्त वर्ष में ही तीन बार कर्ज लिया है- जुलाई में 1,000 करोड़, अगस्त में 1,500 करोड़ और सितंबर में 2,500 करोड़ रुपये। पिछले पांच साल के दौरान लभगभ साढ़े 19 हजार करोड़ रुपये का कर्ज सरकार को लेना पड़ा है। कांग्रेस महासचिव एडवोकेट सुशांत कपरेट इसी ओर ध्यान दिलाते हुए आरोप लगाते हैं कि भाजपा सरकार अपने आर्थिक संसाधनों को बढ़ाने की बजाय उधार के पैसे लेकर जनता को घी पिला रही है। वैसे, आरटीआई एक्टिविस्ट बृजलाल शर्मा इस किस्म की बदहाली की बड़ी वजह सरकारी कामकाज में भारी-भरकम भ्रष्टाचार को मानते हैं।

यह बात सच भी लगती है क्योंकि विभिन्न योजनाओं में अनियमितताओं के लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और एनजीटी से कई बार लताड़ लगी है। कोरोना काल के दौरान दिसंबर, 2020 में हाईकोर्ट ने कई बार सरकार को लताड़ लगाई और कई जरूरी निर्देश दिए। इसके अलावा अवैध खनन को लेकर 2 अगस्त, 2021 को एनजीटी की ओर से सरकार को फटकार लगाई गई। अभी 17 अक्तूबर, 2022 को भी एनजीटी ने शिमला शहर की विकास योजना को रद्द करने के आदेश जारी किए। शिमला शहर में पानी की कमी को लेकर भी हाईकोर्ट ने कई बार सरकार को लताड़ लगाई है।

http://dhunt.in/ElUfy?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “नवजीवन”

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