हिमाचल में ‘आप’ को तीसरा विकल्प बनने की आस, लेकिन ऐसा है पहाड़ पर थर्ड फ्रंट का इतिहास। हीमाचल में आम आदमी पार्टी सरकार बनाने का दावा कर रही है लेकिन हिमाचल में तीसरे विकल्प का इतिहास केजरीवाल के दावे को आइना दिखा रहा है. क्या आप हिमाचल में तीसरा विकल्प बन पाएगी ?
हिमाचल में थर्ड फ्रंट का इतिहास और आम आदमी पार्टी किस आधार पर कर रही है जीत का दावा. जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर…
हिमाचल प्रदेश में 12 नवंबर को मतदान होना है. इस बीच चुनावी रण में उतरे उम्मीदवार प्रचार में जुटे हुए हैं. वैसे हिमाचल की सियासत बीजेपी और कांग्रेस के इर्द गिर्द ही घूमती है. एक मौके को छोड़ दें तो यहां तीसरे विकल्प के लिए कोई खास स्पेस नहीं रहा है. इस बार के विधानसभा चुनाव में ये कोशिश अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी कर रही है. सवाल है कि क्या हिमाचल के पहाड़ चढ़कर ‘आप’ तीसरा विकल्प दे पाएगी.
हिमाचल में तीसरा विकल्प- हिमाचल प्रदेश में तीसरे विकल्प के रूप में सीपीएम से लेकर बसपा, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी तक ने कोशिश की लेकिन कामयाब ना हुए. बीजेपी के पूर्व प्रदेश और 3 बार लोकसभा सांसद रहे हिमाचल के कद्दावर नेता महेश्वर सिंह ने साल 2012 में पार्टी से अलग होकर हिमाचल लोकहित पार्टी का गठन किया लेकिन 2012 चुनाव में वो अपनी पार्टी के इकलौते विधायक के रूप में जीतकर विधानसभा पहुंचे और 2017 में बीजेपी में पार्टी का विलय कर दिया. इस मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे पंडित सुखराम में हिमाचल विकास कांग्रेस बनकार थोड़ी हलचल जरूर पैदा की थी. कांग्रेस से टूटकर आए नेताओं से बनी पार्टी ने साल 1998 के चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल की और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. हालांकि तीसरे विकल्प के खांचे में हिमाचल विकास कांग्रेस भी कभी फिट नहीं बैठी.
‘आप’ ने सभी 68 सीटों पर उतारे उम्मीदवार- आम आदमी पार्टी ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वो इस बार हिमाचल में विधानसभा चुनाव लड़ेगी. ‘आप’ ने हिमाचल की सभी 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, पहली बार में हिमाचल में पार्टी के लिए ये बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है. हालांकि इस सूची में हिमाचल की राजनीति का कोई बड़ा नाम तो नहीं है लेकिन ये कई बार आप की रणनीति का हिस्सा भी रहा है. हालांकि हिमाचल में पार्टी बीजेपी या कांग्रेस के नाराज नेताओं पर नजरें गढ़ाए बैठी थी लेकिन इक्का दुक्का कांग्रेस नेताओं को छोड़ उसके हाथ कुछ नहीं लगा. इस दौरान आम आदमी पार्टी के भी कई नेता दूसरे दलों में चले गए.
दिल्ली और पंजाब के बाद हिमाचल की बारी- दरअसल इस साल की शुरुआत में हुए 5 राज्यों के चुनावों में ‘आप’ ने पंजाब में भारी बहुमत से सरकार बनाई. जिसके बाद से आम आदमी पार्टी की बांछे खिली हुई हैं. पार्टी के नेता दिल्ली और पंजाब के बाद हिमाचल और गुजरात में जीत का परचम लहराने का दावा कर रहे हैं. सियासी जानकार मानते हैं कि हिमाचल के पड़ोसी राज्य पंजाब में सरकार बनने से आम आदमी पार्टी को फायदा हो सकता है खासकर पंजाब से लगती विधानसभा सीटों पर पार्टी की नजर होगी. अरविंद केजरीवाल से लेकर भगवंत मान और मनीष सिसौदिया हिमाचल के कई दौरे कर चुके हैं. रैली से लेकर रोड शो और जनता से सीधा संवाद किया गया है. हालांकि चुनाव की नजदीकियों के साथ-साथ ये दौरे कम होते गए हैं. आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल का ज्यादा फोकस भी हिमाचल से ज्यादा गुजरात पर लग रहा है. ।
उत्तराखंड के पहाड़ पर शून्य पर ‘आप’- आम आदमी पार्टी को पंजाब के साथ उत्तराखंड, यूपी और गोवा के चुनाव नतीजों को भी ध्यान में रखना होगा. जहां पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी. खासकर हिमाचल के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में जहां आम आदमी पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा तक तय कर दिया था. हिमाचल और उत्तराखंड की भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियां मेल खाती है. साल 2020 में राज्य गठन के बाद से उत्तराखंड में इस साल पहली बार सरकार रिपीट हुई है. और हिमाचल में 1985 के बाद से ऐसा नहीं हो पाया है. बीजेपी ने उत्तराखंड में इस साल सरकारी रिपीट की तो हिमाचल में भी यही दावा किया जा रहा है.
आम आदमी पार्टी के वादे- हिमाचल में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली मॉडल की तर्ज पर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने का वादा किया है. लेकिन कांग्रेस की तरह हिमाचल में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने सरकार बनते ही पुरानी पेंशन स्कीम (OPS) लागू करने का ऐलान किया है. बेरोजगार युवाओं के लिए 3000 मासिक बेरोजगारी भत्ता और 18 से 60 साल तक की महिलाओं को 1000 रुपये भत्ता देने का वादा भी किया गया है. इसके अलावा बिजली, पानी, किसान-बागवानों को उचित समर्थन मूल्य देने की गारंटी भी दी गई है. हिमाचल में किए गए इन वादों को पार्टी ने केजरीवाल की गारंटी नाम दिया है. ।
क्या कहते हैं विरोधी- आम आदमी पार्टी भले हिमाचल में सरकार बनाने का दावा कर रही हो लेकिन कांग्रेस और बीजेपी इस दावे को सिरे से खारिज कर रहे हैं. दोनों पार्टियों के मुताबिक हिमाचल की जनता ने कभी भी तीसरे विकल्प को तवज्जो नहीं दी है और इस बार अरविंद केजरीवाल को भी मुंह की खानी पड़ेगी.
आम आदमी पार्टी की मुश्किल- हिमाचल में आम आदमी पार्टी के सामने मुश्किलों का पहाड़ है. संगठन के साथ-साथ बड़े चेहरे की कमी पार्टी को सबसे ज्यादा भारी पड़ सकती है. वरिष्ठ पत्रकार बलदेव शर्मा के मुताबिक आप ने जिन सत्येंद्र जैन को हिमाचल का प्रभारी बनाया था उनपर ईडी का शिकंजा कसा हुआ है. पार्टी के बड़े चेहरे बीजेपी में जा चुके हैं. चुनावी साल में भी लंबा अरसा हिमाचल में पार्टी का संगठन नहीं था. पार्टी पर टिकट बेचने से लेकर रैलियों में दिल्ली और पंजाब से भीड़ लाने के आरोप तक लग चुके हैं. ऐसे में हिमाचल में तीसरे विकल्प के तौर पर आम आदमी पार्टी को देखना बहुत जल्दबाजी होगी.
दरअसल आम आदमी पार्टी पंजाब का उदाहरण दे रही है लेकिन भूलन नहीं चाहिए कि पार्टी का दिल्ली के बाद सबसे बड़ा संगठन पंजाब में ही था. 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के चारों सांसद पंजाब से थे और 2019 में इकलौता सांसद भी, इसके अलावा पंजाब में आम आदमी पार्टी मुख्य विपक्षी दल के रूप में स्थापित हो चुकी थी. कुल मिलाकर पंजाब में आप की सरकार करीब एक दशक की मेहनत के बनी है.
http://dhunt.in/EjowC?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “ETV Bharat हिंदी”
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