तो बाइडेन थे विलेन! क्रायोजेनिक के लिए 24 साल इंतजार, PM मोदी ने याद किया वो पल। आपसे बात करते हुए मुझे वो पुराना समय भी याद आ रहा है, जब भारत को क्रायोजेनिक रॉकेट टेक्नोलॉजी देने से मना कर दिया. लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने ना सिर्फ स्वदेशी तकनीकि विकसित की बल्कि आज इसकी मदद से एक साथ दर्जनों सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेज रहा है.।
इस लॉन्चिंग के साथ भारत ग्लोबल कॉमर्शियल मार्केट में एक मजबूत प्लेयर बनकर उभरा है. इससे अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के लिए अवसरों के नए द्वार भी खुले हैं…पीएम मोदी ने आज अपने मन की बात कार्यक्रम में इतिहास की एक पुरानी घटना का जिक्र किया. दरअसल, ये वो घटना है जिसने करोड़ो भारतीयों की उम्मीदों को तोड़ दिया था. एक रिपोर्ट की मानें तो उस वक्त ये रोक वर्तमान अमेरिकी प्रेसिडेंट और तल्कालीन सीनेटर जो बाइडेन ने लगाई थी.
1990 के दशक में भारत अंतरिक्ष में एक कदम आगे बढ़ाने जा रहा था. रूस और भारत के बीच क्रायोजेनिक इंजन के लिए एक डील बिल्कुल फाइनल हो गई थी. करार के तहत भारत रूस से 25 करोड़ डॉलर में इसे खरीदने वाला था. रूस की आर्थिक स्थिति डगमगाई हुई थी और अमेरिका ने रूस को आर्थिक मदद देने का वादा किया था. भारत को इंजन की जरुरत थी खासकर PSLV और GSLV से आगे बढ़ने के लिए. ये इंजन फ्यूल और ऑक्सीडायजर से चलते हैं.
1992 में छपी थी रिपोर्ट
1992 में लॉस एंजेल्स टाइम्स के एक लेख इस पूरे प्रकरण को डिटेल में बताया गया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक सीनेट के फॉरेन रिलेशंस कमिटी ने रूस से कहा कि वो भारत के साथ 250 मिलियन डॉलर के करार पर आगे बढ़ा तो उसे 24 बिलियन डॉलर की अमेरिका की आर्थिक सहायता नहीं मिलेगी. उस वक्त सीनेटर जो बाइडेन ने इसे खतरनाक बताया था. हालांकि तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को इससे आपत्ति नहीं थी मगर आज अमेरिकी प्रेसिडेंज बाइडेन को इससे दिक्कत थी. पिछले महीने सितंबर आखिरी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बेंगलुरु में द आर्ट इंटीग्रेटेड क्रायोजेनिक इंजन मैन्युफैक्चरिंग फैसेलिटी (ICMF) का उद्घाटन भी किया था.
2014 में पहली बार इस इंजन का हुआ इस्तेमाल
कुछ दिन पहले रॉकेट्री एक फिल्म आई थी. जिसकी काफी चर्चा हुई. ये फिल्म इसी पर आधारित थी. 90 के दशक में इसरो के पूर्व वैज्ञानिक, नम्बी नारायण इसी क्रायोजेनिक इंजन विंग के प्रमुख थे जिन्हें साजिश के तहत फंसाकर जेल भेज दिया गया था. इसरो ने साल 2014 में जीएसएलवी-डी 5 सैटेलाइट के लॉन्च के दौरान पहली बार स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया था. 2017 में communication satellite, GSAT-19 की सफल लॉन्चिंग ने बता दिया था कि भारत अंतरिक्ष में भी ताकतवर मुल्कों के बराबर ही खड़ा रहेगा. इस मिशन को मंगलयान और चंद्रयान मिशन से भी बड़ा माना जा रहा था.
क्यों इतना जरूरी होता है क्रायोजेनिक इंजन?
अब आपके जेहन में ये सवाल जरूर आ रहा होगा कि आखिरकार ये क्रायोजेनिक इंजन होता क्या है ? जिसके लिए अमेरिकी ने टांग अड़ा दी है. क्रायो का शाब्दिक अर्थ होता है निम्न ताप. क्रायोजेनिक इंजन किसी सामान्य इंजन की तरह ही होता है. अंतर सिर्फ इतना है कि ईंधन के रूप में द्रव हाइड्रोजन द्रव ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है. ये दोनों अत्याधिक निम्न ताप -183 और -256 डिग्री सेंटीग्रेट पर द्रवित होते हैं. अंतरिक्ष में जब सैटेलाइट भेजते हैं तो उसमें इसी इंजन का प्रयोग किया जाता है. इसके सफल होने के चांस बढ़ जाते हैं. क्रायोजेनिक इंजन में हाइड्रोजन मुख्य ईंधन और ऑक्सीजन ऑक्सीकारक ईंधन को जलाने का कार्य करता है.
जब दुनिया ने मानी भारत की ताकत
एक हफ्ते पहले इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) का सबसे भारी रॉकेट LVM3 को श्रीहरिकोटा स्थित स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया, जिसके जरिए 36 ब्रॉडबैंड कम्युनिकेशन सैटेलाइट्स को निचली कक्षा में स्थापित किया गया. सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से रात 12 बजकर 7 मिनट पर लॉन्च किया गया. इस रॉकेट की क्षमता 8000 किलोग्राम तक के सैटेलाइट को स्पेस में ले जाने की है. यह मिशन इसलिए जरूरी था क्योंकि ये एलवीएम3 का पहला कमर्शियल मिशन है और लॉन्चिंग रॉकेट के साथ एनएसआईएल का भी पहला अभियान है. इसरो के अनुसार, मिशन में वनवेब के 5796 किलोग्राम वजन के 36 सैटेलाइट्स के साथ अंतरिक्ष में जाने वाला यह पहला भारतीय रॉकेट बन गया है.
http://dhunt.in/EpzMQ?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “TV9 Bharatvarsh”
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