हिमाचल की इस सीट पर कोई भी जीते होगा भाजपाई ही, एक असंतुष्ट निर्दलीय तो दूसरा कांग्रेस से लड़ रहा चुनाव

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हिमाचल की इस सीट पर कोई भी जीते होगा भाजपाई ही, एक असंतुष्ट निर्दलीय तो दूसरा कांग्रेस से लड़ रहा चुनाव।राजनीति में सुशासन, शुचिता की बात अवश्य होती है, लेकिन इसका पालन कोई भी दल सही मायने में नहीं करता है। राजनीति में अनुशासन या सुशासन नहीं, प्यार व जंग की तरह साम, दाम, दंड, भेद जरूरी हो गया है।

ऐसे में टिकट के लिए आदर्श, सिद्धांत को मारना पड़ता है। ऐसी ही स्थिति हिमाचल के कुल्लू जिला के बंजार विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिल रही है। यहां भाजपा में रहे तीन नेता अलग-अलग चिह्न पर चुनाव लड़ रहे हैं। सुरेंद्र शौरी भाजपा प्रत्याशी हैं जबकि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे खीमी राम शर्मा कांग्रेस से मैदान में हैं। भाजपा टिकट के दावेदार हितेश्वर सिंह निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

छह उम्‍मीदवार हैं मैदान में

वैसे तो यहां चुनावी रण में छह उम्मीदवार हैं, लेकिन तीनों के बीच मुकाबला देखने को मिल रहा है। भाजपा से कांग्रेस में गए पूर्व मंत्री खीमी राम व तत्कालीन कुल्लू रियासत के युवराज हितेश्वर सिंह की प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी हुई है। धूमल सरकार में मंत्री के रहे खीमी राम 2012 का मुकाबला कांग्रेस के कर्ण सिंह से हुआ था। हार का मुंह देखना पड़ा था।

2017 में भाजपा के सुरेंद्र शौरी के हाथ लगी थी जीत

2017 के चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काट जिला परिषद सदस्य सुरेंद्र शौरी को दिया था। कांग्रेस ने पूर्व मंत्री कर्ण सिंह के निधन के बाद उनके बेटे आदित्य विक्रम सिंह को टिकट दिया था। सीधी टक्कर में बाजी भाजपा के सुरेंद्र शौरी के हाथ लगी थी।

हितेश्‍वर सिंह निर्दलीय मैदान में

पूर्व सांसद महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर सिंह ने भी पिछले चुनाव में टिकट की दावेदारी जताई थी। इस बार भी वह प्रबल दावेदार थे। खीमी राम भी टिकट की दौड़ में थे। भाजपा नेतृत्व की ओर से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो वह अप्रैल में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। अब वह कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। टिकट न मिलने से हितेश्वर सिंह निर्दलीय मैदान में हैं।

शौरी के वोट बैंक में लगा रहे सेंध

खीमी राम व हितेश्वर सिंह भाजपा के साथ पुराने संबंधों को भुना सुरेंद्र शौरी के वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। इससे यहां मुकाबला रोचक हो गया है। कार्यकर्ता भी पसोपेश में हैं। संभावित संकट को भांप भाजपा ने हितेश्वर सिंह को मनाने के कई प्रयास किए गए लेकिन बात सिरे नहीं चढ़ पाई। आठ दिसंबर को चुनाव परिणाम सामने आने पर ही पता चलेगा कि बाजी किसके हाथ लगती है।

http://dhunt.in/EuWn8?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “जागरण”

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