चंगेज़ ख़ान अपने साथ कीड़े लेकर क्यों चलते थे? वो क्या चीज़ है जो एक दौर में दुनिया के बड़े हिस्से पर राज करने वाले मंगोल शासक चंगेज़ ख़ान, अमेरिकी गृह युद्ध और ब्रितानी स्वास्थ्य विभाग में कॉमन है?
आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि इस सवाल का जवाब ‘कीड़े’ हैं.
जी हां, आपने बिलकुल ठीक पढ़ा है.
ज़्यादातर कीड़े पैदा होने से लेकर व्यस्क होने की प्रक्रिया में कई बार रूप बदलते हैं. पहले वे अंडे से लार्वा में बदलते हैं और फिर प्यूपल जैसे चरणों से होते हुए बड़े होते हैं.
कई प्रजातियों में कीट-पतंगे जब लार्वा होने के चरण से गुज़र रहे होते हैं तो वे मैगट जैसे आकार में होते हैं. इस चरण पर इनके शरीर में अंग नहीं होते हैं.
इनका मुख्य उद्देश्य जितना संभव हो, उतनी ऊर्जा हासिल कर अपने आकार की तुलना में 100 गुना वृद्धि करना होता है.
हरे – नीले रंग की मक्खियां
अब हम जिन ख़ास कीड़ों के बारे में बात कर रहे हैं, वे केलिफरेड प्रजाति से आती हैं. ये नीली और हरे रंग की मक्खियां होती हैं.
हमनें अब तक इन मक्खियों को सड़ते मांस या मल पर भिनभिनाते देखा होगा, लेकिन इनमें से कई प्रजातियों को मेडिकल साइंस की दुनिया में एक आश्चर्य की नज़र से देखा जाता है.
घावों पर रेंगते कीड़े देखना शायद आपकी आंखों को अच्छा न लगे.
लेकिन मेडिकल साइंस की दुनिया में एक लंबे समय से डिब्रेडमेंट थेरेपी के नाम से कीड़ों का इस्तेमाल होता रहा है.
कहा जाता है कि चंगेज़ ख़ान एक जगह से दूसरी जगह जाते हुए अपने काफ़िले में कीड़े लेकर जाते थे ताकि घायल सैनिकों का इलाज किया जा सके.
मंगोल सेना के घाव और कीड़े
इस पद्धति के तहत जख़्मी व्यक्ति के घावों को कीड़ों से भर दिया जाता था जो मृत और ख़त्म होती संक्रमित कोशिकाओं को खाते थे.
माना जाता है कि चंगेज़ ख़ान और उसकी सेनाओं को ये जानकारी थी कि ये कीड़े ख़राब कोशिकाओं को ही नहीं खाते थे, बल्कि संक्रमित कोशिकाओं को खाकर घाव भी साफ़ करते थे.
यही नहीं, ऐसे सबूत मिलते हैं कि मंगोल सेना के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में प्राचीन गियाम्पा आदिवासी समुदाय, उत्तरी म्यांमार के पर्वतीय इलाके में रहने वाले लोग और केंद्रीय अमेरिका की माया सभ्यता में भी कीड़ों का इस्तेमाल किया जाता था.
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि ये पद्धति मेडिकल की मुख्यधारा तक नहीं पहुंच सकी. यही नहीं, अमेरिकी गृहयुद्ध तक इलाज की ये पद्धति चिकित्सा की मुख्यधारा में शामिल नहीं हुई.
अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान डेनविले के एक अस्पताल में काम करने वाले सर्जन जॉन फोर्नी जकारियास ने इस दिशा में काम करना शुरू किया.
क्यों फायदेमंद होते हैं ये कीड़े
आधुनिक दुनिया में जॉन फोर्नी ज़कारियास संभवत: पहले शख़्स थे जिन्होंने मृत कोशिकाओं को साफ़ करने के लिए मैगट्स यानी कीड़ों का इस्तेमाल किया है.
उन्होंने बताया कि ये कीड़े बैक्टीरिया के घावों को भी साफ़ करते हैं
हालांकि, रॉबर्ट कोच और लुई पास्चर जैसे लोगों की वजह से इस दिशा में होती प्रगति जल्द रुक गयी. इन्होंने साफ-सफ़ाई की पहल की जो कीड़ों के इस्तेमाल से इतर दिख रही थी.
अलेक्जेंडर फ़्लेमिंग और पेनिसिलिन के आगमन के साथ ही ये प्रथा इतिहास हो गई, क्योंकि जब एक गोली घाव साफ़ कर सकती है तो लोग कीड़ों का सहारा क्यों लेंगे.
लेकिन 1980 के दशक में एंटीबायोटिक्स एक नए तरह का सुपरबग यानी वायरस एमआरएसए के सामने जंग हारते दिख रहे थे और इस स्थिति में सामने आए वही कीड़े जो ऐतिहासिक रूप से जख़्म ठीक करने में इस्तेमाल किया जाते थे.
ये कीड़े इस लिहाज़ से अहम थे क्योंकि ये न सिर्फ़ मृत कोशिकाओं को साफ़ कर रहे थे, बल्कि एमआरएसए जैसे सुपर बग को भी ख़त्म कर रहे थे. इस वजह से ब्रिटेन जैसे देशों में ये कीड़े एनएचएस जैसी सेवाओं के ज़रिए सभी के लिए उपलब्ध हैं.
Source : “BBC News हिंदी”
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