नेपाल में कुछ ही महीनों पहले चीन समर्थक सरकार आई है। इस सरकार ने आते ही भारत के खिलाफ काम शुरू कर दिया। चीन ने पता नहीं ऐसी कौन सी घुट्टी नेपाल को पिलाई की नई सरकार ने आते ही भारत को अपनी ताकत और अकड़ दिखानी शुरू कर दी।
लेकिन नेपाल की वामपंथी सरकार की अक्ल और सारी ताकत भी निकल गई। दरअसल, कुछ ऐसा हुआ है जिससे नेपाल की अक्ल ठिकाने आने के संकेत मिलने लगे हैं। आपको याद होगा कि 2020 में नेपाल ने भारत के कुल इलाकों पर दावा करना शुरू कर दिया था। ये इलाके भारत के उत्तराखंड राज्य में हैं और नेपाल की सीमा से लगते हैं। लेकिन अब अचानक नेपाल ने अपने पैर पीछे खींच लिए हैं।
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नेपाल की हाल ही में जारी अंतिम जनगणना रिपोर्ट में कालापानी क्षेत्र का डेटा नहीं है। नेपाल का यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि उसने जनवरी 2022 में जारी प्रारंभिक जनगणना रिपोर्ट में इसे शामिल किया था। डेटा कालापानी के कुटी, गुंजी और नबी गांवों से संबंधित है, जो भारतीय क्षेत्र में स्थित है। लेकिन नेपाल अपना होने का दावा करता रहा है। शुक्रवार को जारी फाइनल रिपोर्ट में 3 कालापानी गांवों का डेटा गायब है। सीमा पार के सूत्रों ने कहा कि प्रारंभिक रिपोर्ट 2011 की भारतीय जनगणना के आंकड़ों से लिए गए अनुमान पर आधारित थी, लेकिन वास्तविक गिनती नहीं की जा सकी क्योंकि जनगणना अधिकारी भारतीय क्षेत्र में स्थित इन गांवों में शारीरिक रूप से नहीं जा सके।
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नेपाल के उप मुख्य सांख्यिकी अधिकारी नबीन श्रेष्ठ ने नेपाली मीडिया आउटलेट्स में कहा कि भारतीय अधिकारियों के असहयोग के कारण हम इन क्षेत्रों तक नहीं पहुंच सके। लेकिन हमने आकलन किया है कि इन क्षेत्रों में लोगों की कुल संख्या है 500 से कम। हमने अंतिम रिपोर्ट में इस क्षेत्र की जनसंख्या को शामिल नहीं किया क्योंकि सत्यापन कठिन था। वहीं अपनी जनगणना में कालापानी गांवों के डेटा को शामिल करने के नेपाल के प्रयासों पर प्रतिक्रिया देते हुए, कुटी के निवासी कुंवर सिंह ने टीओआई को बताया कि कुटी, गुंजी और नबी भारतीय गांव हैं और रहेंगे। नेपाली जनगणना का हमसे क्या लेना-देना है?
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