बिन समय अगर किसी घटना से सामान्य व्यवस्था पर असर पड़े तो उसे आपदा कहते हैं। आपदा का स्वरूप प्राकृतिक और मनुष्य निर्मित होता है।
यहां पर बात हम प्राकृतिक आपदा की करेंगे। आमतौर पर हर वर्ष हम सब देश के अलग अलग हिस्सों से बाढ़, सूखा की खबरें पढ़ते रहते हैं। लेकिन जिस खतरे का हम जिक्र करने जा रहे हैं उसका स्वरूर मनुष्य जनित अधिक है। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की सदानीरा रहने वाली नदियों पर संकट उठ खड़ा हुआ है। हिमालयी इलाकों में मौजूद ग्लेशियर पिघल रहे हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि हिमालयी क्षेत्र में जिन ग्लेशियर का अध्ययन किया गया है, उनमें से अधिकतर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग गति से पिघल रहे हैं। सरकार ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी ग्लेशियर के पिघलने का न सिर्फ हिमालयी नदी प्रणाली के बहाव पर गंभीर असर पड़ेगा, बल्कि इससे प्राकृतिक आपदाओं में भी इजाफा होगा।
बाढ़
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, केरल, असम, बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब ज्यादा प्रभावित होते हैं। इनमें से हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल वो राज्य है जिनसे गुजरने वाली नदियों का स्रोत हिमालय के ग्लेशियर हैं। आमतौर पर अभी तक इन इलाकों में बाढ़ के लिए मानसूनी बारिश को जिम्मेदार बताया जाता है। लेकिन आने वाले समय में अगर ग्लेशियर तेजी से पिघलन लगे तो बाढ़ की दिक्कत ठंड और गर्मी के महीनों में भी दिखाई दे सकता है।
सूखा
महाराष्ट्र, ओडिशा, तेलंगाना, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ ये देश के वो इलाके हैं जहां से सूखे की खबरें सामने आती रहती हैं। सरकारों की तरफ से तरह तरह के कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए जाते हैं। लेकिन उसका असर सरकारी खजाने पर पड़ता है। इसके साथ साथ प्रभावित इलाकों में कानून व्यवस्था की भी परेशानी सामने आती है।
पीने के पानी और सिंचाई के लिए होगी दिक्कत
भारत के सभी हिस्सों में पीने और सिंचाई की पानी का स्रोत भूगर्भीय और नदियां हैं। अगर आप महानगरों की बात करें खासतौर से दिल्ली और मुंबई की यहां की पूरी आबादी नदियों के पानी पर निर्भर है। फर्ज करें कि हिमालय से आने वाली नदियां जैसे यमुना और गंगा सूखने लगे तो ना सिर्फ पीने वाले पानी की समस्या बल्कि सिंचाई के लिए दिक्कत होगी। ऐसी सूरत में खेती की समस्या होगी और उसका असर भूखमरी में दिखाई देता है।
क्या कहते हैं जानकार
रिपोर्ट में जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग ने हिमालय में ग्लेशियर के लगातार पिघलने, पीछे खिसकने और साल के दौरान ग्लेशियर के क्षेत्र में अनुमानित कमी की समस्या के बारे में बताते हुए कहा कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने नौ ग्लेशियर के द्रव्यमान संतुलन का अध्ययन किया है और 76 ग्लेशियर के सिकुड़ने या खिसकने की प्रक्रिया के बारे में बताया गया है। हिमालय के अधिकांश ग्लेशियर विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग गति से पिघलते या अपने स्थान से खिसकते दिखाई दिए हैं। विभाग ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के किसी भी प्रभाव के कारण ग्लेशियर पिघलने से न केवल हिमालयी नदी प्रणाली का प्रवाह गंभीर रूप से प्रभावित होगा, बल्कि यह ग्लेशियर झील के फटने की घटना ग्लेशियर हिमस्खलन, भूस्खलन आदि जैसी आपदाओं को भी जन्म देगा।
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