जंतर मंतर पर धरना दे रही देश की जानी मानी महिला पहलवानों की याचिका का सुप्रीम कोर्ट ने आज निपटारा कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने आखिर क्यों भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृज भूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी के बारे में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से नहीं पूछा?
जबकि लगातार मांग की जा रही है तो फिर ऐसा क्यों? आइये जानते हैं इस बारे में, क्योंकि ये कानून की किताबों से जुड़ा सवाल है जिसमें लोग अपनी राय तो कायम कर रहे हैं. लेकिन वो कानून और प्रक्रिया पर गौर नहीं कर रहे हैं. आइये जानते हैं क्या हैं गिरफ्तारी पर मौजूदा व्यवस्था.
पहला पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 के मुताबिक
सीरीयस सेक्सुअल असॉल्ट-अगर कोई नाबालिग पर यौन हमला करता है तो उसे कम से कम 5 साल सश्रम कारावास की सजा से दंडित किया जाएगा. इस सजा को सात साल की अवधि तक बढ़ाया जा सकता है. इतना ही नहीं कोर्ट उस पर जुर्माना भी लगा सकती है. यह गैर-जमानती अपराध है.
क्यों नहीं जरूरी आरोपी की गिरफ्तारी?
गैर जमानती और गंभीर होने के कारण गिरफ्तारी की मांग लगातार हो रही है. लेकिन भारतीय दंड संहिता की धारा 41अ और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसले में दी गई व्यवस्था में कहा गया है कि यदि अपराध के लिए निर्धारित सजा अधिकतम 7 साल से कम है तो आरोपी की गिरफ्तारी जरूरी नहीं होती है. इस पर अ़र्नेष कुमार, सत्येंद्र अंतिम समेत अन्य फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संज्ञेय अपराध के लिए भी अभियुक्त की गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है. ऐसे में अधिकारी की गिरफ्तारी तभी जरूरी होती है जब कि जांच अधिकारी को लगे की गिरफ्तारी होनी चाहिए.
याद रहे कि नाबालिग की शिकायत पर पहली एफआईआर पॉक्सो अधिनियम के तहत बृजभूषण के खिलाफ दर्ज हुई है. बृजभूषण पर दूसरी FIR में धारा 345, दारा 345अ, धारा 354द और धारा 34 लगाई गई हैं. बता दें कि बृजभूषण का केस दिल्ली पुलिस की सात महिला अधिकारियों के पास हैं और वह इसकी जांच कर रही हैं.
भारतीय दंड संहिता के मुताबिक धारा 354 में अगर कोई महिला की मर्यादा और सम्मान को नुकसान पहुंचाने के मकसद से हमला करता है, इसके अलावा कोई आपराधिक बल का प्रयोग करके उसके साथ गलत भावना के साथ जबरदस्ती करे.
सजा क्या होगी- इस धारा के तहत आरोपी पर दोष सिद्ध हो जाने पर उसे कम से कम एक साल की सजा और अधिकतम 5 साल की कैद या आर्थिक जुर्माना लगाया जा सकता है. कोर्ट चाहे तो दोनों सजा भी सुना सकता है. यह संज्ञेय अपराध है और गैर-जमानती होता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 354द
यदि कोई पुरुष किसी महिला का पीछा करता है और संपर्क करता है या फिर महिला की इच्छा के खिलाफ या साफ मना करने के बावजूद लगातार बातचीत बढ़ाने का प्रयास करता है. यदि वह इंटरनेट, ईमेल या इलेक्ट्रॉनिक संचार के किसी जरिए का उपयोग कर महिला की निगरानी करता है. ऐसी स्थिति में यह स्टॉकिंग के तहत दोषी माना जाएगा.
सजा का प्रावधान
यदि आरोपी पहली बार दोषी पाया जाता है तो उसे निर्धारित अवधि तक कारावास की सजा हो सकती है, जिसे 3 साल तक बढ़ाया जा सकता है. उस पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है. दूसरी या उससे अधिक बार दोषी पाए जाने पर सजा अधिकतम पांच साल तक बढ़ायी सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है. पहली बार इसके तहत आरोपित को जमानत मिल सकती है. जबकि दूसरी या ज्यादा बार आरोपित होने पर यह अपराध गैर जमानती हो जाता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा-354 अ के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी महिला या बालिग लड़की को शारीरिक संपर्क या अवांछित और स्पष्ट यौन संबंध बनाने का प्रस्ताव देता है या अनुरोध करता है. इसके अलावा महिला की इच्छा के बिना उसे अश्लील दिखाता या यौन संबंधी टिप्पणियां करता है, तो ऐसे में वो यौन उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा.
कितनी हो सकती है सजा
यदि कोई उप-धारा (1) के खंड (1) या खंड (2) या खंड (3) के तहत दोषी पाया जाता है तो उसे सश्रम कारावास की सजा सुनाई जा सकती है. इसमें अधिकतम 3 साल तक सजा बढ़ाई जा सकती है. या फिर कोर्ट की ओर से जुर्माना लगाया जा सकता है. कोर्ट सजा और जुर्माना एक साथ भी सुना सकती है.
यदि कोई उप-धारा (1) के खंड (4) में दोषी पाया जाता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है, जिसे एक साल तक बढ़ाया जा सकता है या आर्थिक जुर्माना या दोनों की सजा मिल सकती है. यह एक संज्ञेय अपराध है पर जमानती अपराध है. इसका मतलब ये है कि शिकायत मिलने पर पुलिस को शिकायत दर्ज करनी होगी, लेकिन आरोपी को पुलिस स्टेशन से ही जमानत मिल सकती है.
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