CM मान ने किया साफ- पंजाब विश्वविद्यालय से संबद्ध नहीं होंगे हरियाणा के कॉलेज।पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सोमवार को हरियाणा के महाविद्यालयों को पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) से संबद्ध करने के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा कि चंडीगढ़ स्थित यह विश्वविद्यालय पंजाब का है और उसी का रहेगा।
मान ने हरियाणा द्वारा पंजाब यूनिवर्सिटी में उसकी हिस्सेदारी बहाल करने के एवज में कोष मुहैया कराने के प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति जताते हुए हरियाणा के अपने समकक्ष मनोहर लाल खट्टर से कहा कि वह उनके राज्य में कहीं भी विश्वविद्यालय स्थापित कर सकते हैं।
उन्होंने खट्टर के साथ बैठक के बाद यह बात कही। बैठक में पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित और पंजाब यूनिवर्सिटी की कुलपति रेणु विज भी मौजूद रहीं। खट्टर ने हालांकि, मान को इस मुद्दे पर ‘अडियल’ रुख अपनाने को लेकर आड़े हाथ लिया और कहा कि यह कदम (हरियाणा के महाविद्यालयों की संबद्धता) विद्यार्थियों के हित में है। मान ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, ”चंडीगढ़ स्थित पंजाब यूनिवर्सिटी हमेशा से पंजाब की विरासत, धरोहर, भावना, संस्कृति और साहित्य से जुड़ी रही है।”
उन्होंने पड़ोसी राज्य पर ‘अप्रत्यक्ष’ रूप से विश्वविद्यालय पर नियंत्रण हासिल करने के प्रयास करने का आरोप लगाया। मान ने कहा, ”वे अप्रत्यक्ष रूप से विश्वविद्यालय पर नियंत्रण प्राप्त करना चाहते हैं जो पंजाब की भावना, साहित्य और संस्कृति से जुड़ा है। हमने आज स्पष्ट रूप से कह दिया कि हमारी ओर से ना है। हम हरियाणा के महाविद्यालयों को सबद्धता नहीं देंगे।” पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा, ”पीयू पंजाब की है और यह उसी की रहेगी।” वहीं, हरियाणा सरकार द्वारा जारी बयान के मुताबिक खट्टर ने बैठक में कहा कि यह कदम विद्यार्थियों के हित में है और उनके राज्य के महाविद्यालयों को भी पीयू से संबद्ध होने का विकल्प दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों राज्य इस पर मित्र की तरह आगे बढ़ सकते हैं।
खट्टर ने कहा कि हरियाणा के तीन जिलों पंचकूला, अंबाला और यमुनानगर के साथ ही पंजाब के मोहाली और रूपनगर जिलों के महाविद्यालयों को भी पीयू से संबद्धता दी जानी चाहिए। गौरतलब है कि इस मुद्दे पर एक जून को हुई पहली बैठक में पंजाब के राज्यपाल पुरोहित ने हरियाणा के महाविद्यालयों को चंडीगढ़ से संचालित पीयू से संबद्ध करने की संभावना की बात की थी जिस पर मान ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। मान ने कहा था कि पहले पीयू के लिए आवश्यक अनुदान में जो कमी होती थी उसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ को क्रमश: 20:20:20:40के अनुपात में साझा कर भुगतान करते थे।
उन्होंने कहा कि लेकिन हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने स्वेच्छा से पीयू में राज्य की हिस्सेदारी छोड़ने का फैसला किया जिसके बाद उनके राज्य में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने भी पीयू से अपनी हिस्सेदारी वापस ले ली। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में पीयू में पंजाब की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है जबकि शेष 60 प्रतिशत हिस्सेदारी केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ की है। मान ने तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की भी वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर पीयू को केंद्रीय दर्जा देने पर अनापत्ति प्रमाण देने को लेकर भी आलोचना की।
मान ने कहा कि उनकी सरकार ने दो पत्र केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान को लिखे जिसमें पीयू का ‘अंतर राज्यीय संस्था’का दर्जा बहाल करने की मांग की गई, जैसा कि पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 में परिकल्पना की गई थी। उन्होंने कहा कि पिछले साल पंजाब विधानसभा ने भी प्रस्ताव पारित कर पीयू के दर्जें में बदलाव नहीं करने की मांग की थी। मान ने कहा कि हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस विधायक अगस्त 2022 में प्रस्ताव लेकर आए जिसमें पीयू से हरियाणा के महाविद्यालयों को संबद्ध करने की मांग की गई थी। मान ने सोमवार को हुई बैठक में कहा कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय अच्छा विश्वविद्यालय है और पूछा कि क्या वहां शिक्षकों की कमी है या वहां की पढ़ाई अच्छी नहीं है। हरियाणा द्वारा हिस्सेदारी बहाल करने के एवज में कोष मुहैया कराने की पेशकश पर मान ने कहा, ” मैंने उनसे कहा कि कल आप कहेंगे कि पंजाब की कीमत क्या है? मैं हैरान हूं कि क्या यह संवैधानिक है कि कोई पैसे के एवज में हिस्सेदारी बहाल करने की बात करे।”
मान ने 28 मई को हरियाणा सरकार द्वारा राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को कथित तौर पर लिखा पत्र दिखाया जिसमें उनसे अपने लिए धन की व्यवस्था खुद करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि एक ओर उनके पास अपने विश्वविद्यालयों के लिए कोष नहीं है और दूसरी ओर वे पीयू में हिस्सेदारी बहाल करने के लिए पैसों की पेशकश कर रहे हैं। मान ने कहा कि पीयू के अनुदान में हिस्सेदारी करने का हरियाणा का प्रस्ताव पूरी तरह से अस्वीकार्य और अवांछित भी है। मान ने कहा कि उन्हें बताया गया कि हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल ने पीयू से हिस्सेदारी खत्म करने का फैसला एक कार्यक्रम में उनके बैठने के लिए कुर्सी नहीं रखने पर ‘अपमानित’ महसूस करने के बाद लिया था।
इस कार्यक्रम में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। मान ने बताया कि इस मुद्दे पर अगली बैठक तीन जुलाई को बुलाई गई है लेकिल हमारा रुख यही रहेगा। उन्होंने इस मुद्दे पर पंजाब के राज्यपाल द्वारा ‘बहुत रुचि’ दिखाने पर भी आपत्ति जतायी। पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा कि राजभवन के बाहर केवल ” मुख्य कार्यालय, भाजपा” नहीं लिखा है। हरियाणा सरकार ने एक बयान में कहा कि बैठक में उसे बताया गया कि विश्वविद्यालय गत कई सालों से वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। हरियाणा सरकार ने कहा कि विश्वविद्यालय में चंडीगढ़ की 60 प्रतिशत और पंजाब की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है और गत 10 साल में विश्वविद्यालय को केंद्र से हर साल औसतन 200 से 300 करोड़ रुपये का अनुदान मिला। बयान में कहा गया, ”वहीं गत 10 साल में पंजाब सरकार से हर साल औसतन 20-21 करोड़ रुपये का अनुदान मिला है। वर्ष 2020-21 में पंजाब द्वारा 39 करोड़ रुपये जारी किए गए। कुल मिलाकर विश्वविद्यालय को पंजाब के 40 प्रतिशत हिस्से में से केवल सात से 14 प्रतिशत अनुदान मिल रहा है।
By नवोदय टाइम्स
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