हमीरपुर 14 सितम्बर। किशोरावस्था मानव जीवन का सर्वाधिक ऊर्जावान, उत्पादक एवं प्रतिस्पर्धी कालखंड होता है। यह अत्यधिक ऊर्जा एवं प्रतिस्पर्धा किशोरों से अपने व्यवहार में कुशलता और धैर्य की भी अपेक्षा रखती है क्योंकि अपने आसपास के बदलते परिवेश से सामंजस्य स्थापित करते हुए हमारा शरीर तनाव के रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। तनाव वास्तव में हमारी वह शारीरिक और मानसिक दशा है जो हमें किसी परिस्थिति विशेष का सामना करने के लिए क्रियाशील बनाती है। यह क्रियाशीलता यदि हमें समस्याओं का सकारात्मकता से सामना करने के लिए प्रेरित करती है, हमें रचनात्मक बनाती है या हमें कुशलताओं का उपयोग करने का अवसर प्रदान करती है, तो यह जीवन में प्रगति के नए मार्ग प्रशस्त करने में सहायक होती है। उक्त विचार बाल विकास परियोजना अधिकारी कुलदीप सिंह चौहान ने राजकीय उच्च विद्यालय भटेरा और राजकीय उच्च विद्यालय चमियाना में किशोरियों के लिए आयोजित एक दिवसीय तनाव प्रबंधन कार्यशाला में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सकारात्मक तनाव हमें ऊर्जा से परिपूर्ण कर सामान्य स्थिति में असंभव दिखने वाले कार्य को संभव करने में मदद करता है क्योंकि तनाव की स्थिति में हमारी समझ- बूझ, कार्यक्षमता वह कार्य निष्पादन की गति बढ़ जाती है। नकारात्मकता की स्थिति में यह क्रियाशीलता शारीरिक और मानसिक स्थिति का ह्रास कर विकास को अवरुद्ध कर देती है। इस अवसर पर कार्यशाला को संबोधित करते हुए मनोविज्ञानी शीतल वर्मा ने कहा कि तनाव प्रबंधन कार्यशालाओं का उद्देश्य तनाव की इस अति क्रियाशीलता को उचित प्रबंधन के द्वारा सकारात्मकता में बदल कर युवाओं की ऊर्जा का सदुपयोग करना है। समय प्रबंधन, कार्य प्राथमिकता, प्रभावी संचार, सकारात्मक सोच जैसे कौशलों का विकास कर किशोरों को उनकी ऊर्जा का सदुपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उन्होंने योग, ध्यान, श्वास प्रबंधन, स्व-सम्मोहन जैसी तकनीकों के माध्यम से किशोरियों को तनाव मुक्ति के उपाय सिखाते हुए इन उपायों को दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाने का आह्वान किया। उन्होंने किशोरियों को खेलकूद, संगीत एवं सामाजिक रुप से उत्पादक कार्यों में भी अपनी अभिरुचि बढ़ाने के लिए उन्हें प्रेरित किया। कार्यक्रम में लगभग 160 किशोर किशोरियों ने भाग लिया ।
Read Time:3 Minute, 33 Second
Average Rating