जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अफ़ज़ल गुरु की फांसी पर कड़ा ऐतराज जताया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर उनकी सरकार उस समय सत्ता में होती, तो वे इस फैसले को मंजूरी नहीं देते।
हाल ही में दिए एक बयान में, अब्दुल्ला ने कहा, “हम अफ़ज़ल गुरु की फांसी को मंजूरी नहीं देते।” उन्होंने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता कि उसे फांसी देने से कोई उद्देश्य पूरा हुआ।”
2009 से 2015 तक जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे अब्दुल्ला ने इस विवादित फैसले से अपनी सरकार को दूर रखते हुए कहा, “J&K सरकार का अफ़ज़ल गुरु की फांसी में कोई रोल नहीं था।” यह बयान उस वक्त आया है जब राज्य की राजनीति में यह मुद्दा अभी भी संवेदनशील बना हुआ है।
फ़रवरी 2013 में संसद हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु को फांसी दी गई थी, जिसके बाद कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। गुरु, जिन्हें 2001 के भारतीय संसद पर हमले में दोषी ठहराया गया था, ने लगातार आरोपों से इनकार किया था। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उनकी सजा बरकरार रखने के बाद उनकी फांसी दी गई, लेकिन समय और परिवार को पहले से सूचना न देने के कारण यह फांसी और विवादास्पद हो गई।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, अब्दुल्ला ने मृत्युदंड की प्रक्रिया पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “इतिहास ने बार-बार दिखाया है, शायद भारत में कम लेकिन अन्य देशों में ज़्यादा, कि फांसी दिए जाने के बाद गलत साबित हो सकते हैं।” उनका इशारा इस ओर था कि मृत्यु दंड जैसी अपरिवर्तनीय सजा में त्रुटियाँ हो सकती हैं।
अफ़ज़ल गुरु की फांसी जम्मू और कश्मीर में अभी भी एक विभाजनकारी मुद्दा है, जहाँ कई लोग उन्हें राजनीतिक साजिश का शिकार मानते हैं। अब्दुल्ला की टिप्पणियों ने फांसी की सज़ा और इसके क्रियान्वयन की प्रक्रियाओं पर नए सिरे से बहस छेड़ दी है।
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