*सरकार कर रही आपदा प्रबंधन तंत्र को सुदृढ़ व सशक्त*

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हिमाचल प्रदेश राज्य पर्वतीय क्षेत्र होने के चलते विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिए अति संवेदनशील क्षेत्र है। जिसके चलते यहां  के आपदा प्रबंधन तंत्र को और अधिक सुदृढ़ व सशक्त होना अति आवश्यक है, वर्तमान में जलवायु परिवर्तन जैसी विकट परिस्थितियों के चलते इसे आधुनिक तकनीकी, संचार व क्षमता निर्माण के क्षेत्र में सुदृढ़ होना पड़ेगा। वैसे तो आपदा प्रबंधन अधिनियम- 2005 के गठन के साथ ही राज्य में हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन हो गया था परंतु इसका धरातल पर संचालन व क्रियान्वयन वर्ष 2016 से आरंभ हुआ था। जिसमें की हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों का गठन हुआ तथा इसी के अंतर्गत राज्य में राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र तथा समस्त जिलों में जिला आपातकालीन परिचालन केन्द्रों का गठन व क्रियान्वयन आरंभ किया गया। इसका एकमात्र उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में चिन्हित एवं सूचीबद्ध की गई 17 विभिन्न प्रकार की आपदाओं से बचाव एवं उनका योजनाबद्ध प्रबंधन सुनिश्चित करना था।

इसी के अनुरूप हिमाचल सरकार द्वारा फ्रांस विकास एजेंसी (AFD) के साथ लगभग 890 करोड़ रुपए की परियोजना पर ज्ञापन हस्ताक्षर किया गया। इस परियोजना के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश में आपदा प्रबंधन व जलवायु जोखिम न्यूनीकरण परियोजनाओं को एक दिशा एवं प्रबंधन व गति प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में लगभग 48 स्वचालित मौसम केंद्रो की स्थापना करना है, जो की प्रदेश में विभिन्न प्रकार की आपदाओं जैसे कि भूस्खलन, तीव्र बाढ़, बादल फटना, जलवायु परिवर्तन, हीट वेव, अति वर्षा जैसी गतिविधियों पर पूर्व चेतावनी प्रदान करना व इसके साथ ही हिमाचल में कृषि, बागवानी के लिए वास्तविक मौसम भविष्यवाणी प्रदान करना भी प्राथमिकता होगी। सरकार का यह मानना भी है कि यदि यह परियोजना प्रथम चरण पर सफल होती है तो इसे बाद में खंड स्तर पर भी शीघ्र ही स्थापित किया जाएगा। इसी के संदर्भ में इस परियोजना में फ्रांस विकास एजेंसी द्वारा राज्य के सभी जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों एवं जिला आपातकालीन परिचालन केन्द्रों को और अधिक मजबूती प्रदान करने एवं सुदृढ़ बनाने के क्षेत्र में भी सहयोग प्रदान करने की सहमति जताई है।

इसके अतिरिक्त यदि हम आपदा के क्षेत्र में विकास की बात करें तो वर्ष 2018 में राज्य के समस्त जिला मुख्यालयों व  राज्य के जनजातीय उपमंडल केंद्रो जिस्म कि मुख्यतः काजा, भरमौर, किन्नौर व पांगी में सैटेलाइट आधारित फोन प्रदान किए गए थे, तत्पश्चात हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट को भी इसी वर्ष लॉन्च कर दिया गया था। जैसा की सेटेलाइट आधारित फोन के माध्यम से हम विभिन्न प्रकार की आपदाओं में संचार व्यवस्था व पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वतारोहियों के भटक जाने की स्थिति में इसका अत्यधिक प्रयोग किया जा सकता है, इसी के अनुरूप वर्ष 2024 में सरकार द्वारा इसकी उपयोगिता को देखते हुए लगभग 73 अतिरिक्त सेटेलाइट फोन अन्य संवेदनशील उपमंडलीय स्तर पर भी स्थापित करने का निर्णय लिया है जो कि आगामी एक माह के अंदर स्थापित कर दिए जाएंगे। सेटेलाइट फोन की अगर विशेषताओं की बात करें तो यह आपातकाल प्रतिक्रिया, मौसम पूर्वानुमान जानकारी, लॉजिस्टिक व्यवस्था बनाए रखने में अधिक कारगर साबित होती है। हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा जिला स्तरों पर आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र को और अधिक सुदृढ़ करने के उद्देश्य से आपातकालीन प्रबंधन एवं प्रतिक्रिया तंत्र विकसित किया है जो की निशुल्क 112 दूरभाष नंबर के साथ संयोजित रूप से कार्य करेगा एवं आपदा संबंधी मामलों पर तुरंत कार्यवाही कर विभिन्न मामलों का निष्पादन करने में सक्षम हो पाएगा। इससे प्रदेश में आपदा प्रबंधन से संबंधित मामलों का निपटारा तुरंत करने में अति शीघ्रता आएगी। यदि वर्तमान समय की बात करें तो आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की परियोजनाएं व क्षमता वृद्धि प्रोजेक्ट्स पर क्रियान्वन सक्रिय रूप से किया जा रहा है जिसमें की एक उपलब्धि राज्य में हैम रेडियो (HAM Radio) या शौकिया रेडियो में लगभग 21 ऑपरेटरों को लाइसेंस व प्रशिक्षण प्रदान करना है, तथा ड्रोन ऑपरेटर व पायलटों (Drone Pilot) को प्रशिक्षण एवं लाइसेंस प्रदान करना भी है, इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा राज्य में आपदा शमन निधि के अंतर्गत एक परियोजना प्रबंधन यूनिट (PMU) का गठन किया गया है व इसके अतिरिक्त राज्य के विभिन्न प्रकार के परियोजनाओं की समीक्षा करना एवं बजट उपलब्ध करवाना भी इस यूनिट का मुख्य कार्य है। राज्य सरकार द्वारा गत वर्ष NIC Shimla के सहयोग से स्कूलों की सुरक्षा के निहित स्कूल सुरक्षा प्रबंधन सूचना तंत्र (MIS) की शुरुआत करना है जिसमें कि राज्य के प्रत्येक स्कूलों के स्कूल आपदा प्रबंधन परियोजनाओं को मोबाइल ऐप आधारित सॉफ्टवेयर में निर्मित करना है जिसके अंतर्गत वर्तमान समय में 18,383 स्कूलों में से 9,910 स्कूलों ने अपने स्कूलों के आपदा प्रबंधन योजनाएं इस ऐप में तैयार कर ली है तथा बाकी कार्य भी प्रगति पर चल रहा है। हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, शिमला राज्य में आपदाओं के उचित प्रबंधन एवं शमन के अंतर्गत राज्य एवं जिला स्तरों पर आपातकालीन नियंत्रण कक्षों के माध्यम से एक निशुल्क नंबर 1077 व 1070 कि स्थापना भी की है जिसमें की आम-जन अपने क्षेत्र की आपदाओं से संबंधित जानकारी/शिकायत निशुल्क इस दूरभाष नंबर पर दर्ज करवा कर संबंधित निवारण तुरंत पा सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार कोविड काल में हिमाचल प्रदेश में उपरोक्त निशुल्क दूरभाष नंबरों के माध्यम से लगभग 50,000 से अधिक आपदा संबंधी शिकायतों का तुरंत निवारण किया गया था जो कि अपने आप में एक कीर्तिमान है। यही नहीं ग़ौरतलब रहे की भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी की कंप्यूटिंग साइंस एवं संगणक अभियांत्रिकी विभाग की टीम द्वारा हिमाचल प्रदेश के चार जिलों सिरमौर, कांगड़ा, मंडी और किन्नौर जिलों में वर्ष 2023 में कम लागत के भूस्खलन चेतावनी तंत्र पर आधारित लगभग 30 सेंसर स्थापित किए गए हैं, इसके अतिरिक्त प्रदेश के अन्य भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में भी इस तरह के कम लागत के सेंसर भविष्य में लगाए जाने की परियोजना चल रही है। इसका एकमात्र उद्देश्य हिमाचल प्रदेश में भू-स्खलन से होने वाले नुकसान, सड़क दुर्घटनाओं एवं अन्य तरह के जान-माल के नुकसान व आवृत्ति को कम करना है।

अंत में यह कहना उचित होगा कि हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण निरंतर प्रतिवर्ष विकास की एक गाथा लिख रहा है और आपदाओं को न्यून करने हेतु लगातार सक्रिय और प्रतिबद्ध है, अतः इसके लिए राज्य में आपदा प्रबंधन से संबंधित अधिकारी एवं कर्मचारी बधाई के पात्र हैं। यहां न केवल आपदा प्रतिक्रिया तंत्र को सुदृढ़ करना है बल्कि तकनीकी, पूर्व चेतावनी तंत्र का विकास, व नई वैज्ञानिक विधियों का समावेश भी शामिल हो जिससे कि हिमाचल प्रदेश में आने वाले समय में इन विभिन्न प्रकार की आपदाओं से आम जन एवं बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा व निजी संपदाओं की रक्षा की जा सके, जिससे कि प्रदेश की आर्थिक वृद्धि, प्रगति, पर्यावरण संरक्षण व सतत् विकास भविष्य में सुनिश्चित हो सके।

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