भारत में फंसे तो लगा लिया दिल, जानिए संस्कृत का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले पहले अमेरिकन की कहानी।मेरिका के बोस्टन से कोलकाता के बंदरगाह के लिए 1846 में एक जहाज निकलता है, लेकिन बंदरगाह तक नहीं पहुंचता, हुगली नदी के तट पर टकराने की वजह से जहाज का एक्सीडेंट होता है और हादसे में कई लोगों की जान चली जाती है, जो जान बचाने में सफल होते हैं, उनमें एक ऐसा शख्स भी होता है जो अमेरिका से अपने लापता भाई को ढूंढने निकला था.।तुरंत लौटने का कोई साधन नहीं था. ऐसे में इस शख्स ने खुद को भारत में फंसा हुआ महसूस किया, लेकिन कुछ दिन बिताने के बाद यहां दिल लग गया. दिल लगा तो ऐसा लगा कि अगले 16 साल भारत में ही बिता दिए. इस शख्स का नाम था फिट्जवर्ड हॉल, वही हॉल जो बाद में संस्कृत का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले पहले अमेरिकन बने. आइए अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के मौके पर जानते हैं उन फिट्जवर्ड हॉल की कहानी जिन्होंने भारत के कई शहरों में संस्कृत को पढ़ाया और बाद में ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी प्रोजेक्ट का हिस्सा बने.
…जब लिया खोए भाई को ढूंढने का फैसला
फिट्जवर्ड हॉल का जन्म 1825 में न्यूयॉर्क शहर में हुआ था, उनके पिता का नाम डेनियल हॉल था, जो कि वकील थे और माता का एंजिनेट फिंच, छह बड़े भाई-बहनों में हॉल सबसे बड़े थे, इसलिए जिम्मेदारी भी ज्यादा थी, उन्होंने न्यूयॉर्क से ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एडमिशन की प्रक्रिया पूरी कर ही रहे थे कि इसी बीच उनका एक भाई लापता हो गया, और हॉल ने उसे ढूंढने का निर्णय लिया और भारत की यात्रा की. बाद में लिखे आर्टिकल्स में उन्होंने ‘अप्रिय समुद्री यात्रा’ के रूप में इसका वर्णन किया. 1870 में उन्होंने लिपिनकोर्ट और द सेंचुरी मैगजीन में लेख के माध्यम से भारत में बिताए गए अपने समय के बारे में विस्तार से लिखा था.
साथियों को बुलाते थे ‘पंडित’
कोलकाता में फंसने के बाद हॉल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के सदस्य बने. वह तीन साल तक यहां रहे और संस्कृत और पर्शियन भाषा की पढ़ाई की. वह अपने साथियों को पंडित बुलाया करते थे. उन्हें संस्कृत पढ़ाने वाले पहले टीचर समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर थे. 1849 में वह बीमार पड़े और डॉक्टर की सलाह पर उन्हें कोलकाता छोड़ना पड़ा और अवध रियासत के शहर गाजीपुर आ गए. यहां कुछ महीने गुजारने के बाद वे बनारस पहुंचे.
बनारस में किया संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद
बनारस में फिट्जवर्ड हॉल ने संस्कृत विद्यालय में अध्यापन कार्य शुरू किया, यहीं उन्होंने ग्रंथ सांक्य प्रवचन के कुछ हिस्सों का संस्कृत से हिंदी और इंग्लिश में अनुवाद करना शुरू किया. इस काम में उनकी सहायता की विट्ठल शास्त्री ने जो बाल विद्वान के रूप में प्रख्यात थे. उन्होंने ब्रज भाषा में लल्लू लाल द्वारा लिखित ‘राजनीति, ए कलेक्शन ऑफ हिंदी अपॉलॉजी’ का संपादन किया. इसके बाद उन्होंने बापू देव शास्त्री के सहयोग से आर्यभट्ट की संस्कृत में लिखी पुस्तक ‘सूर्यसिद्धांत’ पर काम किया, फिर दास रूपा के साथ नाट्यशास्त्र और ‘वासवदत्त’ और नीलकंता निहेमिया गोरेह की पुस्तक ‘हिंदुस्तानी, ए मिरर ऑफ हिंदू फिलॉसॉफिकल सिस्टम्स’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया.
1853 में बने प्रोफेसर, 1854 में की शादी
फिट्जवर्ड हॉल 1853 में बनारस के ही एक एंग्लो- संस्कृत विद्यालय में प्रोफेसर बने. वेबसाइट स्क्रॉल.इन में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक अगले साल ही वह अजमेर चले गए. यहां दो साल तक रहने के बाद वह मध्य प्रदेश (उस समय सेंट्रल प्रोविंस) के सागर जिले में पहुंचे और यहां स्कूलों के निरीक्षक का दायित्व निभाया, हालांकि वे संस्कृत और हिंदी के प्रति अपने अगाध प्रेम को कम नहीं कर सके और इन भाषाओं की सेवा करते रहे. भारत में अपनी यात्राओं के दौरान फिट्जवर्ड हॉल पांडुलिपियों को संग्रह करते थे और उनका अनुवाद करते थे. 1854 में उन्होंने कर्नल आर्थर शुल्डमैन की बेटी अमेलिया से दिल्ली की सेंट जेम्स चर्च में शादी की थी.
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में फंसे
1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हॉल सागर में थे, जब रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ तो उन्हें और उनके तमाम साथियों को सागर किले में छिपना पड़ा. बाद में ह्यूज रोज के वहां पहुंचने के बाद सभी बाहर निकले. बाद में लिखे आर्टिकल्स में फिट्जवर्ड हॉल ने 1857 के विद्रोह, उसकी भयावहता और उसे दबाए जाने का जिक्र किया था, उनके सामने ही अंग्रेजों ने गोंड वंश के एक उत्तराधिकारी का सिर तोप से उड़ा दिया था.
ऑक्सफॉर्ड डिक्शनरी के लिए किया काम
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1862 में फिट्जवर्ड हॉल अपने परिवार के साथ लंदन चले गए और वहां किंग कॉलेज में संस्कृत पढ़ाई, बाद में वे इंडिया ऑफिस में लाइब्रेरियन बने, 1880 में वे ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी प्रोजेक्ट में शामिल हुए. तकरीबन 20 साल तक, उन्होंने शब्दों और उनकी उत्पत्ति के रिकॉर्ड संकलित किए, प्रश्नों के उत्तर दिए, सलाह दी और डिक्शनरी के सबसे बड़े सहयोगी बने. इस बीच उन्होंने विष्णु पुराण का अध्ययन किया, उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया.
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पास है उनका संग्रह
फिट्जवर्ड हॉल ने शब्दों के उपयोग और उनके मूल को लेकर पूरे अटलांटिक में आलोचकों के साथ तीखी बहस की, और ख्याति अर्जित की. 1880 के दशक के अंत में, उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को पांडुलिपियों का अपना समृद्ध संग्रह दान कर दिया. 1895 में, विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया. 1 फरवरी 1901 को उनका निधन हो गया.
http://dhunt.in/Cojx3?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “TV9 Bharatvarsh”
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