क्या हिमाचल के चुनावी दंगल में कांग्रेस या भाजपा का खेल बिगाड़ पाएगी “आप” !हिमाचल में चुनावी माहौल गरमया हुआ है। राज्य में संभवत भाजपा और कांग्रेस की होने जा रही सीधी जंग को लेकर आम आदमी पार्टी “आप” को लेकर भी अटकलों का दौर जारी है, कि वह दोनों पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती है या नहीं !इस बीच शुक्रवार को पंजाब में “आप” सरकार ने ओल्ड पैंशन स्कीम (ओपीएस) की बहाली की घोषणा कर सियासी अखाड़े में एक नई हलचल पैदा कर दी है, चूंकि राज्य के लाखों कर्मचारी इसे बहाल करने की मांग कर रहे हैं। पंजाब की कैबनेट फैसला आते ही “आप” सुप्रीमों ने दावा किया कि हिमाचल और गुजरात में सरकार बनने पर वहां भी ओपीएस लागू की जाएगी। हांलाकि अब यह भी कहा जा रहा है कि हिमाचल में “आप” के प्रति गंभीर नहीं है, बावजूद इसके की उसने राज्य में 68 सीटों पर उम्मीदवार ऐलान दिए हैं। फिर बड़ा सवाल है कि आम आदमी पार्टी हिमाचल में सियासत में क्या रोल अदा करने वाली है?
पिछले तीन दशकों से हिमाचल में सत्ता विरोधी लहर के कारण एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा को चुनते हैं। चुनावी जीत परिणाम बताते हैं कि भाजपा और कांग्रेस के बीच जीत का अंतर बहुत कम रहता है। इसी वजह से यह माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी भाजपा या कांग्रेस किसी एक का खेल भी बिगाड़ सकती है। रिवायत की बात की जाए तो कायदे इस बार सत्ता हासिल करने की बारी कांग्रेस की है और कांग्रेस में भी इस बात को लेकर अति उत्साह है। हालांकि भाजपा का कहना है कि इस बार रिवायत नहीं बदलेगी और वह निश्चित तौर पर सत्ता में कायम रहेगी। दूसरा इस खास बात यह है कि इस बार दिवंगत नेता पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बिना यह चुनाव होगा। इसमें भी कोई दोराय नहीं है उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के जिले की संसदीय सीट मंडी में लोकसभा उपचुनाव जीता है, लेकिन वीरभद्र सिंह की अनुपस्थिति में कांग्रेस की राह थोड़ी कठिन जरुर है।
अब बात करते हैं राज्य में वैकल्पिक तीसरे मोर्चे की जिस पर आम आदमी पार्टी अपना दावा ठोक रही है। जानकारों की माने तो उन्हें यह मोर्चा काल्पनिक लगता है। चूंकि हिमाचल में ऐसी संभावनाएं 1998 में तब उत्पन हुई थीं जब पंडित सुखराम क्षरा खड़ी गई हिमाचल विकास कांग्रेस (एचवीसी) को 9.63 प्रतिशत वोटों के साथ पांच सीटें मिलीं थी, लेकिन यह मोर्चा बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते गायब ही हो चुका है। तब से लेकर आज तक राज्य में कांग्रेस और भाजपा के भीतर वन बाई वन वाली स्थिति बरकरार है। “आप” ने पंजाब में चुनाव जीतने के बाद फोकस करना शुरू किया था और प्रदेश में केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान ने दौरे भी किए, लेकिन अब अचानक उसने अपना फोकस गुजरात पर कर दिया है और पंजाब के अधिकांश नेता भी वहीं बुला लिए हैं।
अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 2017 में भाजपा ने 44 सीटों और 48.79% (18,46,432 वोट) के वोट शेयर के साथ बहुमत हासिल किया था। जबकि कांग्रेस को 41.68% वोट शेयर (15,77,450 वोट) के साथ 21 सीटें मिलीं थी। दोनों पार्टियों के वोटों का अंतर 2.69 लाख था, यानी प्रति सीट हार-जीत औसत अंतर 3,955 वोट था। इसी तरह से 2012 में कांग्रेस ने 42.81% (14,47,319 वोट) के वोट शेयर के साथ 36 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 38.47% वोट शेयर (13,00,756 वोट) के साथ 26 सीटें मिलीं थी। दोनों पार्टियों के वोटों का अंतर 1.47 लाख था जो प्रति सीट 2,155 वोटों के बराबर आता है। 2007 में, कांग्रेस और भाजपा के वोटों के बीच का अंतर 1.61 लाख था जो प्रति सीट 2,362 वोट आता है और 2003 में वोटों के बीच का अंतर 1.72 लाख था जो प्रति सीट 2,522 वोटों का अनुसरण करता है। आंकडे कहते हैं कि हार और जीत में अंतर बहुत कम रहता है। ऐसे में अगर तीसरे मोर्चे का वजूद भी है तो वह परिणामों पर असर डालने की ताकत रखता है।
एक मीडिया रिपोर्ट में पंजाब विश्वविद्यालय (पीयू) प्रोफेसर आशुतोष कुमार के हवाले से कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश चुनावों में सत्ता विरोधी लहर हमेशा एक बड़ा कारक रही है। लोग हर पांच साल में सरकार बदलते रहे हैं। हिमाचल में राज्य स्तर के नेताओं की कोई कमी नहीं है। इसलिए आप के पास शायद ही कोई मौका है। वह कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश ने हमेशा एक छोटे राज्य के रूप में मामूली अंतर से जीत देखी है। आप कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाएगी क्योंकि यह सत्ता विरोधी वोटों को विभाजित करेगा। इसके अलावा आप ने गुजरात पर ध्यान केंद्रित किया है, और यह पहाड़ी राज्य में ज्यादा प्रचार नहीं कर रही है। रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय (एचपीयू) के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रमेश के. चौहान का भी हवाला दिया गया है, उन्होंने कहा है कि आप नेतृत्व हिमाचल में जमीन पर सक्रिय नहीं हुआ है क्योंकि उन्होंने गुजरात पर ध्यान केंद्रित किया है। कहने के लिए आप एक के रूप में उभर रही है। उन्होंने कहा कि तीसरा विकल्प काल्पनिक है क्यों कि वे अब तक भाजपा और कांग्रेस दोनों के बड़े नेताओं को खींचने में कामयाब नहीं हुए हैं।
http://dhunt.in/DUCat?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “पंजाब केसरी”
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