जनजातीय जिला किन्नौर जहां अपनी समृद्ध संस्कृति, वेश-भूषा, पहरावा, खान-पान व सेब की खेती के लिए देश सहित विदेश भर में जाना जाता है तो वहीं किन्नौर जिला की सम-शीतोष्ण जलवायु इसे और अधिक खास बनाती है। जिला के मेहनतकश किसान व बागवान प्रकृति के इस वरदान का यथासंभव दोहन कर रहे हैं तथा सेब के साथ-साथ अन्य फसलों की खेती कर अच्छी आमदानी प्राप्त कर रहे हैं।
इसी दिशा में जिला किन्नौर में विश्व की सबसे महंगी फसल केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार निरंतर प्रयासरत है तथा समय-समय पर विभिन्न प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से जिला के किसानों व बागवानों को केसर की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
जिला कृषि अधिकारी किन्नौर डॉ ओ.पी बंसल बताते हैं कि केसर समुद्र तल से 1500 से 1800 मीटर की ऊंचाई पर शुष्क और सम-सितोषण जलवायु में उगाया जाता है तथा भोगौलिक दृष्टि से किन्नौर की जलवायु केसर की खेती के लिए अनुकूल है तथा जिला का सांगला क्षेत्र केसर की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। जिला में केसर की खेती होने से जहां किसानों व बागवानों को अच्छी आमदनी प्राप्त होगी वहीं प्रदेश की आर्थिकी में भी वृद्धि होगी।
केसर की उपयोगिता व आर्थिक महत्व के बारे में बात करते हुए डाॅ. ओ.पी. बंसल बताते हैं कि केसर में औषधीय गुण होते हैं जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने, आंखों की रोशनी बढ़ाने इत्यादि जैसी कई बीमारियों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने बताया कि देश में केसर की माँग लगभग 100 टन है बल्कि पैदावार लगभग 6 से 8 टन ही हो रही है। वर्तमान में केसर की पैदावार केवल जम्मू-कश्मीर के पुलवामा व किश्तवाड़ जिला में हो रही है तथा शेष आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए केसर का विदेशों से आयात किया जाता है। इसके दृष्टिगत भारत में केसर की खेती को बढ़ावा देना आवश्यक है।
केसर की खेती को जिला किन्नौर में बढ़ावा देने के लिए कृषि विभाग तथा सी.एस.आई.आर-आई.एच.बी.टी पालमपुर के संयुक्त तत्वाधान में जिला में विभिन्न प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया जा रहा है जहां जिला के किसानों व बागवानों को केसर उगाने बारे सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की जा रही है।
इसी प्रकार के एक प्रशिक्षण शिविर में सी.एस.आई.आर-आई.एच.बी.टी पालमपुर के वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक राकेश कुमार ने जिला के किसानों को जानकारी देते हुए बताया कि केसर की बिजाई से एक माह पहले खेत को तैयार करना होता है और इसमें देसी खाद का उपयोग करने से अच्छी पैदावार होती है।
उन्होंने बताया कि केसर के पौधों में लगभग 15 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिये और गहराई भी 12 से 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। सितम्बर माह के पहले सप्ताह में इसकी बिजाई होती है और अक्तूबर माह में फूल खिलने शुरू हो जाते हैं। जैसे ही फूल खिल जाये उसे तोड़कर सुखाना होता है और डब्बी में बंद करके रखना होता है ताकि उसकी नमी खराब न हो। उन्होंने बताया कि केसर का बीज उत्पादन भी एक अच्छा विकल्प है और यह बाजार में 400-500 रुपए प्रति किलो बिकता है। केसर का अच्छा उत्पादन देश में होने से अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों पर भारत को केसर की आपूर्ति के लिए निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
सांगला तहसील के किल्बा गांव की निवासी गंगा बिष्ट बताती हैं कि उन्होंने प्रदेश सरकार द्वारा जिला में केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए जा रहे प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया जहां से उन्हें केसर की खेती करने का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ। वर्तमान में वह अपने खेतों में केसरी की खेती कर रही हैं, जिसके उन्हें अच्छे परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने जिला में केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार की सराहना करते हुए कहा कि आने वाले समय में सरकार के इस कदम से जिला के किसानों की आर्थिकी को और अधिक गति प्राप्त होगी।
सांगला के मेहनतकश किसान नितिश कुमार केसर की खेती पर अपने अनुभव सांझा करते हुए कहते हैं कि उन्होंने भी प्रदेश सरकार द्वारा जिला में केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए जा रहे विभिन्न प्रशिक्षण शिविरों में भाग लिया जहां उन्हें केसर की खेती करने की प्रेरणा मिली तथा अब वह केसर की खेती कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिला के किसानों व बागवानों के लिए सेब के साथ-साथ केसर की खेती आय का एक अच्छा स्त्रोत है तथा वह जिला के अन्य किसानों को भी केसर की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
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