यूनिवर्सल कार्टन प्रणाली को लागू करने के मिले सुखद परिणाम, बागवानों को हुआ लाभ

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हिमाचल में सेब की खेती वर्ष 1916 के आसपास शिमला से लगभग 80 किलोमीटर दूर कोटगढ़ में एक अमरीकी व्यक्ति सैमुअल स्टोक्स द्वारा शुरू की गयी। रॉयल सेब की खेती आज वर्तमान हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ बन चुकी है। ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व हिमाचल में सेब नहीं होता था। इससे पहले कुल्लू के बंदरोल में 1870 में एक अंग्रेज अधिकारी कैप्टन आरसी ली ने यूरोप से पौधे मंगवाकर सेब का बगीचा लगवाया था लेकिन उस सेब की किस्म स्वाद और रंग के मामले में उतनी अच्छी गुणवत्ता वाली नहीं थी, जितना कि स्टोक्स द्वारा लगाया गया अमरीकी रॉयल किस्म का सेब ‘रॉयल’ जो अपने नाम के अनुरूप ही उच्च गुणवत्ता वाला सेब है। इस समय हिमाचल के सेब बाहुल क्षेत्र में रॉयल सेब के उत्पादन का हिस्सा लगभग 90 प्रतिशत है और सेब उत्पादन इस समय हिमाचल प्रदेश का बहुत बड़ा और अग्रणी उद्योग बन चुका है।
80 के दशक से पहले सेब की खेती को हिमाचल के पहाड़ी इलाकों में बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता था और बाजार मूल्य भी बहुत अधिक नहीं था किन्तु जैसे-जैसे सेब देश के अन्य भागों तक पहुंचना शुरू हुआ वैसे ही इसकी मांग भी बढ़ने लगी और मंडियों में इसके अच्छे दाम भी मिलने लगे। उसके बाद लोगों ने परम्परागत कृषि को छोड़कर सेब की खेती को व्यवसायिक तौर पर अपनाना शुरू किया। शुरुआत में सेब को लकड़ी की पेटी में मंडियों में भेजा जाता था। सेब की ग्रेडिंग व आकार के आधार पर 10 इंच से 12 इंच की पेटीयों में सेब भरा जाता था, जिसमें 18 किलो से लेकर 20 किलो तक सेब भरा जा सकता था। ये पेटियां रई और सफेदा जैसे पेड़ों की लकड़ी से बनाई जाती थी और मजबूत होती थी लेकिन समय के साथ उत्पादन जैसे बढ़ा वैसे लकड़ी की ज्यादा मांग के कारण जंगलांे पर इसका दबाव बढ़ा। सरकार ने इसे रोकने के लिये बाजार में गत्ते की पेटी को उतारा जिससे कि पर्यावरण पर अधिक दबाव न पड़े। गत्ते की पेटी जिसे टेलीस्कोपिक कार्टन भी कहा जाता है, एक सफल प्रयोग सिद्ध हुई क्योंकि यह हल्की पैकिंग करने में आसान व पर्यावरण के लिये नुकसान दायक भी नहीं थी, किन्तु लकड़ी की पेटी के मुकाबले इसमें सेब को वजन के अनुरूप भरने की कोई सीमा नहीं है यद्यपि यह केवल 20 से 24 किलो सेब भरने की दृष्टि से ही बनाई गयी थी लेकिन कुछ बागवानांे ने इस सीमा से अधिक इसमें 30 से 35 किलो सेब भरना शुरू कर दिया, जिससे कि बाजार में असंतुलन पैदा हुआ। छोटे बागवान इस परम्परा का शिकार होने लगे। बागवानों ने सरकार से इस पर कदम उठाने की मांग की और यूनिवर्सल कार्टन के इस्तेमाल के लिये आवाज बुलंद की।
वर्तमान कांग्रेस सरकार ने बागवानों की बात को समझते हुए वर्ष 2023 में टेलीस्कोपिक कार्टन में अधिकतम 24 किलो की सीमा को तय किया। पूरे विश्व में सेब की पैकिंग के यही मापदंड है इसलिए वर्तमान प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया कि हिमाचल के सेब को भी इसी मापदंड से भरा जाना चाहिए। बागवानों की सुविधा और सेब की खेती के भविष्य के दृष्टिगत सरकार ने वर्ष 2024 में यूनिवर्सल कार्टन लागू किया, जिसमें कि 22 से 24 किलो तक ही सेब को भरा जा सकता है। इस वर्ष यूनिवर्सल कार्टन को लागू करने के सुखद परिणाम भी सामने आ रहे है, जहां पिछले वर्ष तक टेलीस्कोपिक कार्टन में 30 किलो तक की पेटी में बागवानों को 2500 से 3000 रूपये तक के दाम मिल रहे थे। वहीं इस वर्ष 20 से 22 किलो तक वज़न वाले यूनिवर्सल कार्टन में बागवानों को 3000 से 5000 तक के दाम मिल रहे हैं।
बागवानों से बात करने पर उन्होंने बताया कि इस नई वयवस्था से उनकी आमदनी में वृद्धि हुई है क्योंकि पिछले वर्ष तक जहां वे 100 क्रेट में 60 पेटी भर रहे थे। इस वर्ष उन्हीं 100 क्रेट में 75 से 80 पेटी भर रहे हैं। उनकी सेब की फसल के मंडियों में भी बेहतर दाम मिल रहे है, जिससे उनकी आय में काफी बढ़ोतरी हुई है और उनके उत्पाद को बाजार में सम्मान मिला है।
इसके अलावा सेब कारोबार से जुड़े बाहरी राज्यों के व्यापारियों ने भी यूनिवर्सल कार्टन में अपना विश्वास जताया है। मुंबई के सेब कारोबारी कमल कुमार ने बताया कि यूनिवर्सल कार्टन के चलते उन्हें अपने कारोबार में काफी सुविधा हो रही है क्योंकि टेलीस्कोपिक कार्टन में क्षमता से अधिक सेब भरने के कारण उनका ज्यादातर माल खराब हो जाता था लेकिन अब उन्हें इस बात कि चिंता नहीं है। सेब सुरक्षित पहुँचने के कारण उन्हें मंडी में दाम भी अच्छे मिल रहे हैं। इसी बात का समर्थन इलाहबाद के व्यापारी बलवंत सोनकर और बीकानेर के कारोबारी रमेश रामावत ने भी किया है। इस पूरी प्रक्रिया में जो लघु और सीमान्त बागवान है वह सर्वाधिक लाभान्वित होता दिख रहा है क्योंकि उसे अब बड़े बागवान से वज़न के लिये प्रतियोगिता नहीं करनी पड़ रही।
बागवानी विभाग द्वारा यूनिवर्सल कार्टन में सेब की पैकेजिंग कराने हेतु किसानों के लिए जागरुकता शिविर आयोजित किए जा रहे है। अभी तक जिला में लगभग 4500 किसानों को जागरुक किया गया है और क्षेत्रीय बागवानी अधिकारी बागवानांे को विभिन्न माध्यमों से जागरुक करवा रहे हैं।
अमरीका से लाये कुछ रॉयल सेब के पौधे आज एक बहुत बड़ा उद्योग बन चुके है और इस उद्योग से लाखों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार कमा रहे है और यह उद्योग प्रदेश की आर्थिकी में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा लिया गया यूनिवर्सल कार्टन का निर्णय निश्चित रूप से हिमाचल की सेब बागवानी को नयी दिशा प्रदान करेगा और इस कारोबार का भविष्य सुरक्षित करेगा।

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