धर्मशाला, 10 अक्तूबर। निदेशक पशुपालन विभाग डॉ. प्रदीप शर्मा ने आज पालमपुर में विभागीय अधिकारियों की एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता करते हुए प्रवासी भेड़-बकरियों के झुंडों में फुट रॉट रोग (पैरों की सड़न) के संदर्भ में स्थिति की समीक्षा की। उन्होंने बताया कि विभाग के पशु चिकित्सकों द्वारा प्रवासी भेड़-बकरियों में फुट रॉट रोग के प्रकोप पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, कांगड़ा जिले में प्रवासी गद्दी चरवाहों के कम से कम 60 झुंडों में फुट रॉट रोग की व्यापकता की जांच की गई है। उन्होंने बताया कि पशु चिकित्सकों और फार्मासिस्टों सहित विभाग की 10 त्वरित प्रतिक्रिया टीमों का गठन किया गया है, जो ऐसे झुंडों में किसी भी बीमारी की घटना को देखेंगे।
बकौल डॉ. प्रदीप, इन टीमों द्वारा 15 अक्टूबर, 2024 तक कुल 6000 प्रवासी पशुओं की जांच की गई है और इस तरह की सक्रिय निगरानी प्रवास के मौसम के अंत तक जारी रहेगी। उन्होंने बताया कि रोग जांच प्रयोगशाला मंडी के वैज्ञानिकों ने बरोट क्षेत्र के लोहारडी गांव में तैनात झुंडों से नमूने भी एकत्र किए हैं। उन्होंने बताया कि विभागीय मशीनरी हमेशा सतर्क रहती है और अब तक फुट रॉट रोग के कारण किसी पशु की मृत्यु की कोई सूचना नहीं है। उनके अनुसार, इस उद्देश्य के लिए तैनात पशु चिकित्सकों 60 झुंडों में से 749 पशुओं का लंगड़ापन और संबंधित स्थितियों के लिए चिकित्सकीय उपचार करने में सक्षम रहे।
उन्होंने बताया कि कांगड़ा क्षेत्र में इस उद्देश्य के लिए तैनात पशु चिकित्सकों द्वारा लंगड़ेपन की किसी भी घटना पर बारीकी से नजर रखी जा रही है और आवश्यक उपचार किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रवासी भेड़ और बकरी पशुओं में फुट रॉट रोग से उत्पन्न किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए क्षेत्र के सभी पशु चिकित्सालयों में पशु चिकित्सा दवाओं का पर्याप्त भंडार है।
सहायता केंद्रों के माध्यम से हो रहा उपचार: संयुक्त निदेशक
इस दौरान संयुक्त निदेशक पशुपालन पालमपुर डॉ. विशाल शर्मा ने बताया कि प्रवासी चरवाहों के लिए जिया, बंदला, कंडवारी, उत्तराला, देओल और बीड़ में कम से कम छः डिपिंग/टीकाकरण/ड्रेंचिंग केंद्र वर्तमान में चालू हैं, जिन्हें पशुपालन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा 24 घंटे संचालित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इन केंद्रों में गद्दी चरवाहों के प्रवासी पशुओं की जांच की जा रही है और साथ ही साथ एफएमडी और पीपीआर जैसी संक्रामक बीमारी के लिए टीकाकरण भी किया जा रहा है। इसके अलावा, इन चरवाहों को उनकी प्रवासी भेड़ और बकरियों के लिए दवा के साथ-साथ हर तरह की चिकित्सीय सहायता भी उपलब्ध करवाई जा रही है।
उन्होंने कहा कि ये पशु चिकित्सा सहायता केंद्र तब तक चालू रहेंगे जब तक कि अंतिम झुंड मैदानी इलाकों में सर्दियों के चरागाहों की ओर नहीं चला जाता। उन्होंने बताया कि विभाग द्वारा चंबा, हमीरपुर, बिलासपुर और ऊना जिला के उप निदेशकों को भी इन जिलों से गुजरने वाले प्रवासी चरवाहों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए कहा गया है। इसके अलावा उन्हें अपने क्षेत्रों में त्वरित प्रतिक्रिया टीमों को भी तैनात करने के लिए सतर्क किया गया है ताकि बीमार जानवरों को मौके पर पशु चिकित्सा सहायता सुनिश्चित की जा सके।
आईवीएफ के माध्यम से पशुओं में गर्भाधान पर हो रहा विचार
इससे पूर्व निदेशक पशुपालन डॉ. प्रदीप शर्मा ने बनूरी में स्थापित पशुपालन विभाग की आईवीएफ/ईटीटी प्रयोगशाला का भी निरीक्षण किया। उन्होंने बताया कि पशुपालन विभाग आईवीएफ तकनीक के माध्यम से पशुओं को गर्भधारण करने की दिशा में विचार कर रहा है। इस तकनीक से वीर्य के बजाय योग्य गायों में उच्च उपज देने वाले भ्रूण का गर्भाधान किया जाएगा। विभागीय अधिकारियों ने बताया कि यह एक सटीक गर्भाधान तकनीक है, जिसे यदि क्षेत्र स्तर पर निर्धारित एसओपी के साथ क्रियान्वित किया जाए तो गर्भधारण सुनिश्चित होता है।
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