हिमाचल में उत्तराखंड दोहराएगी भाजपा? राजा वीरभद्र सिंह की कमी से कैसे बिखरा कांग्रेस का कुनबा। प्रदेश में चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है। दूसरे राज्यों की तरह भाजपा यहां भी बेहद ऐक्टिव नजर आ रही है। जेपी नड्डा, अनुराग ठाकुर के लगातार दौरों के साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी भी बीते दो महीनों में कई बार हिमाचल प्रदेश का दौरा कर चुके हैं।कुल्लू का दशहरा मेला, वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाना और मंडी में रैली करने से लेकर कई आयोजनों में पीएम नरेंद्र मोदी शामिल रहे हैं। यही नहीं कुछ महीने पहले धर्मशाला और शिमला में भी पीएम ने रैली की थी। इससे पता चलता है कि 68 सीटों वाले पहाड़ी राज्य को लेकर भाजपा कितनी गंभीर है।
आम आदमी पार्टी ने भी हिमाचल प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास किया है। हालांकि हिमाचल प्रदेश में लंबे वक्त तक शासन करने वाली कांग्रेस इस पहाड़ी राज्य में भी बहुत सक्रिय नहीं दिखी है। कांग्रेस राजा वीरभद्र सिंह की गैरमौजूदगी में पहली बार चुनावी समर में उतरने वाली है, जो 6 बार सीएम रहे थे। सुखविंदर सिंह सुक्खू, प्रतिभा सिंह, सुधीर शर्मा और कौल सिंह ठाकुर समेत कई गुटों में बंटी कांग्रेस के लिए यह गुटबाजी भारी पड़ सकती है। भले ही हिमाचल में कांग्रेस में टकराव पंजाब जैसा नहीं है, लेकिन हालात नहीं संभाले तो चुनावी नतीजा पार्टी के लिए वैसा ही हो सकता है। हालात यह हैं कि प्रतिभा सिंह ने कांग्रेस लीडरशिप पर ही आरोप लगाते हुए कह दिया था कि राहुल और प्रियंका हिमाचल को समय नहीं दे रहे हैं।
भाजपा के पक्ष में हैं ये 4 चीजें, जिससे पहाड़ पर बढ़ा हौसला
हिमाचल प्रदेश में हर 5 साल बाद सरकार बदलने की परंपरा रही है, लेकिन भाजपा इस बार मोदी लहर, कांग्रेस की गुटबाजी और अपने काम के नाम पर मिशन रिपीट के लिए कमर कसे हुए है। भाजपा को लगता है कि वह उत्तराखंड और यूपी की तरह ही हिमाचल में भी सरकार बदलने की परंपरा को तोड़ने में सफल होगी। पीएम नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा जैसे नेताओं के दौरे, कसी हुई स्टेट लीडरशिप और कार्यकर्ताओं की सक्रिय टोली उसके लिए बड़ी ताकत है। लेकिन कांग्रेस को सबक लेना होगा कि वह गुटबाजी बच सके।
सुक्खू और प्रतिभा के गुटों में बंटी दिख रही कांग्रेस
कांग्रेस के आंतरिक सूत्र भी मानते हैं कि वीरभद्र सिंह के बिना यह पहला चुनाव और पार्टी के पास चेहरे का अभाव है। कांग्रेस ने बैलेंस बनाने के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खू को चुनाव समिति का मुखिया बनाया है तो वहीं वीरभद्र के नाम को भुनाने के लिए उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को प्रदेश अध्यक्ष का जिम्मा सौंपा है। हालांकि सुक्खू और प्रतिभा के बीच पार्टी गुटों में बंटी दिखती है। वहीं 2017 में अपने गढ़ द्रंग विधानसभा से हारने वाले कौल सिंह ठाकुर और धर्मशाला के पूर्व विधायक सुधीर शर्मा पर भी गुटबाजी के आरोप लगते रहे हैं। अब देखना होगा कि कांग्रेस पंजाब से कुछ सीखती है या फिर भाजपा को उत्तराखंड दोहराने का यहां मौका मिलता है।
http://dhunt.in/DpzeG?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “Live हिन्दुस्तान”
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