फीफा की गेंद में हवा नहीं भरते, चार्ज करते हैं…VAR और DRS में क्या बेहतर?

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फीफा की गेंद में हवा नहीं भरते, चार्ज करते हैं…VAR और DRS में क्या बेहतर?। फिफा विश्व कप 2022 (FIFA World Cup) में फुटबॉल का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है।

उलटफेर का सिलसिला जारी है और कई नायक कहे जाने वाले खिलाड़ियों के इर्द-गिर्द के तिलिस्म टूट रहे हैं. फुटबॉल जबर्दस्त दम खम व कौशल का खेल है. युवा ऊर्जा से ओतप्रोत खिलाड़ी तकनीकी कौशल के समन्वय से नाम चमकाने में लगे हैं.

अब केवल मेस्सी, रोनाल्डो, ग्रीजमैन, एम्बाप्पे या हैरी केन व रैशफोर्ड की बातें नहीं हो रहीं. अब दीवार की तरह ठोस रक्षा-प्रणाली अपनाने वाले मोरक्को व उसके अद्भुत गोलकीपर की चर्चा भी हो रही है, पर इससे भी ज्यादा चर्चा हो रही है, विज्ञान व टेक्नोलॉजी से लैस वीएआर प्रणाली (VAR System) की.

क्रिकेट में हम भारतीय डिसीजन रिव्यू सिस्टम (DRS) से परिचित हैं. पर फुटबॉल के वीएआर ने चकित कर रखा है. वीएआर का पूरा रूप है ‘वीडियो असिस्टेंट रेफरी’.

क्रिकेट में डीआरएस में एक तीसरे अंपायर की भूमिका रहती है. वीएआर में तीन रेफरी होते हैं, जो अलग-अलग एंगल से फोटो को इकट्ठा कर के सही फोटो मेन रेफरी के सामने रख देते हैं.
फुटबॉल में मुख्य रेफरी ही मैदान पर इन संपादित वीडियो को देख कर पेनल्टी स्ट्रोक (Penalty stroke) ऑफसाइड रेड कार्ड या बॉल मैदान के बाहर निकल गई थी अथवा नहीं- इनका निर्णय कर देते हैं.


फीफा विश्व कप 2022 में VAR रूम

क्रिकेट में तीसरा अंपायर दूध का दूध व पानी का पानी करता है, और ग्राउंड अंपायर के सही या गलत निर्णय की सूचना देता है. निर्णय गलत होने पर अंपायर शर्मिंदा होकर अपना निर्णय पलटता है, लेकिन फुटबॉल में ग्राउंड रेफरी किसी और के बताने पर नहीं बल्कि खुद आकलन कर के सही निर्णय बताता है, लेकिन इसका नुकसान ये है कि मानवीय गलतियों को ढूंढ निकालने के चक्कर में खेल की लय में व्यवधान पड़ जाता है. इसका खामियाजा लय में चल रही टीम को भुगतना पड़ता है, क्योंकि वीडियो देखने व निर्णय लेने में काफी समय व्यतीत हो जाता है.

यहां ये तो मानना होगा कि वीएआर व डीआरएस दोनों के कारण फुटबॉल और क्रिकेट का रोमांच बढ़ जाता है.

फुटबॉल वर्ल्ड कप की बॉल हाई टेक्नोलॉजी से लैस

बहुत कम लोगों को पता है कि कतर में चल रहे फुटबॉल वर्ल्ड कप में उपयोग में आ रही बॉल इतनी हाई टेक्नोलॉजी वाली है कि पंप से हवा भरने के बजाय उसे मोबाइल की तरह चार्ज करना पड़ता है. ‘अल-रिहला’ बॉल का अर्थ है – यात्रा. इस तरह के बॉल में सेंसर फिट किया जाता है, जो रफ्तार, दिशा व बॉल- ट्रैकिंग बताने के साथ-साथ ऑफ साइड के निर्णय की समीक्षा में काम आता है.

सेंसर में एक छोटी बैटरी लगी रहती है, जो लगातार उपयोग करते वक्त 6 घंटे तक चलती है. सेंसर का वजन महज 14 ग्राम होता है. मैदान में कई जगह लगे कैमरों की मदद से रियल टाइम में बॉल ट्रेकिंग कर रेफरी के लिए ऑफ साइड और कई कठिन सवालों को सुलझाने में मदद देता है.

जब बॉल मैदान के बाहर जाता है और नया फुटबॉल आता है तब नये बॉल के डाटा इनपुट में अपने आप ही सारी सूचनाएं चली जाती हैं, जिसमें किनेक्सॉन बैकएंड सिस्टम मदद करता है.
सवाल ये उठता है कि क्या क्रिकेट के डीआरएस में भी ऐसी संभावनाओं को तलाशा जा सकता है, विज्ञान व तकनीक जिस तेजी से कदम बढ़ा रही है, उससे इस तरह की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता. फिलहाल तो इतना किया जा सकता है कि मुख्य अंपायर ही मैदान की बाउंडरी के पास जाकर टेलीविजन पर देख कर अपने निर्णय की खुद समीक्षा करें.

(सुशील दोषी पद्म श्री से सम्मानित हिंदी के पहले टीवी कमेंटेटर हैं. वे 500 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैचों के साथ ही 12 विश्व कप में कमेंट्री करने का अनुभव रखते हैं. उनके 500 से ज्यादा लेख अलग-अलग अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. वे क्रिकेट का महाभारत और खेल पत्रकारिता जैसी किताबें भी लिख चुके हैं. उनसे ट्विटर हैंडल @RealSushilDoshi है. आर्टिकल में लिखे विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है.)

Source : “क्विंट हिंदी”

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