ऐसे ही नहीं बन जाता कोई मेसी या एम्बाप्पे

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ऐसे ही नहीं बन जाता कोई मेसी या एम्बाप्पे। खेल का मैदान किस तरह से देश की सीमाओं से लेकर वर्गभेद मिटा देता है, यह सारी दुनिया ने बीते रविवार को देखा । फीफा विश्व कप के फाइनल को देखने का भारत से लेकर दुनिया के कोने-कोने में रहने वाले खेल प्रेमी इंतजार कर रहे थे।

जाहिर है कि जो फाइनल मैच को देख रहे थे, उनमें से अधिकतर का संबंध न तो फ्रांस से था और न ही अर्जेंटीना से। पर इन दोनों देशों के खिलाड़ियों ने अपने श्रेष्ठ खेल और खेल भावना से सबका दिल जीता। ये सबके हो गए और सब इनके हो गए। यही तो खेल की सच्ची भावना है। फ्रांस और अर्जेंटीना के खिलाड़ियों को देखकर लगा ही नहीं कि ये हमारे नहीं हैं। इनमें हम भी अपने खेल के नायकों जैसे सचिन तेंदुलकर, नीरज चोपड़ा या लिएंडर पेस को ही देख रहे थे।


खेल देशों-दुनिया को जोड़ता है। एक सूत्र में पिरोता है। हमने कब मोहम्मद अली, पेले, माराडोना, लारा, रोजर फेडरर या उसेन बोल्ट को अपना नहीं माना। इसी तरह से हमारे सफल खिलाड़ियों जैसे दादा ध्यानचंद, मिल्खा सिंह, विश्वनाथन आनंद को देश और देश से बाहर खेल प्रेमियों का भरपूर प्यार मिलता रहा। कुछ समय पहले महान टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर ने टेनिस की दुनिया से संन्यास लिया था। तब सारी दुनिया के खेल प्रेमी उनके चमत्कारी करियर को याद कर रहे थे। उनमें भारतीय भी तो कोई कम नहीं थे।

कोई खिलाड़ी मेसी, एम्बाप्पे, रोजर फेडरर, डिएगो माराडोना, मोहम्मद अली या कपिल देव कैसे बन जाता है? इस सवाल का उत्तर तलाश करने के लिए बहुत मेहनत करने की जरूरत नहीं है। सभी खिलाड़ी मेहनत करते हैं। पर अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी सब महान नहीं कहे जाते। वे ही महान माने जाते हैं जो बिग मैच प्लेयर होते थे। वे बड़े और अहम मैचों में छा जाते थे। तब उनका जलवा देखते ही बनता था। बड़े खिलाड़ी का यही सबसे बड़ा गुण होता है कि वे खास मैचों या विपरीत हालात में छा जाते हैं। मेसी तथा किलियन एम्बाप्पे ने फीफा कप के फाइनल मैच में लाजवाब खेल का प्रदर्शन किया। मेसी और एम्बाप्पे ने कुल जमा तीन और चार गोल किए। ये गुण होता है कि किसी बड़े खिलाड़ी में जो उसे महान बनाता है। मतलब जब टीम को आपकी सर्वाधिक जरूरत होती है तब ही आप अपने जौहर दिखाते हैं। कई बेहतरीन खिलाड़ी कमजोर प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अपने जौहर नहीं दिखा पाते थे। लेकिन, ये फाइनल या अन्य खास मैचों के समय अपने जलवे बिखरते हैं।

मेसी और एम्बाप्पे जैसे खिलाड़ी विश्व नागरिक बन चुके हैं। उन्हें सारी दुनिया प्यार करती थी। बड़े प्लेयर के साथ यही होता है। वह सबका होता है और सब उसके होते हैं। अब धावक उसेन बोल्ट को लें। उन्हें भारत में उतना ही अपना माना जाता है जितना किसी अन्य देश में। वैसे वे हैं तो जमैका से । रोजर फेडरर दिसंबर, 2015 में दिल्ली में कुछ प्रदर्शनी मैच खेलने आए थे। भारत के टेनिस के शैदाइयों को लीजैंड बन चुके रोजर फेडरर को साक्षात देखने का मौका मिल रहा था। रोजर फेडरर को खेलते हुए देखकर दर्शक झूम रहे थे। फेडरर बार-बार दर्शकों का अभिवादन स्वीकार करते हुए हाथ हिला रहे थे। हार्ड, क्ले और ग्रास तीनों कोर्ट में एक जैसा शानदार प्रदर्शन करने वाले फेडरर जब कोर्ट में उतरे तो फिटनेस का चरम लग रहे थे। उनके चेहरे पर एक सुपर स्टार वाली गरिमा को देखा जा सकता था।

मुझे याद आ रही है 1976 की गणतंत्र दिवस की वह परेड। तब वहां पर महानतम मुक्केबाज मोहम्मद अली आए थे। उस समय इमरजेंसी का दौर चल रहा था। परेड शुरू होने में कुछ पल शेष थे। तब ही लाउड स्पीकर से घोषणा हुई कि विश्व हैवीवेट मुक्केबाज चैंपियन मोहम्मद अली राजपथ पर पधार रहे हैं। यह जानकार राजपथ पर मौजूद हजारों लोग प्रसन्न हो गए थे। मोहम्मद अली तब अपने करियर के शिखर पर थे। वे विश्व नायक थे। वे परेड शुरू होने से पहले राजपथ पर आ गए थे। उनके चाहने वाले उनका नाम लेकर उनका अभिवादन कर रहे थे। लंबे-ऊंचे कद के मोहम्मद अली जवाब में अपने मुक्के को हवा में घुमा रहे थे। मोहम्मद अली देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ बैठे थे। दुर्भाग्य से वह दौर सेल्फी का नहीं था।

बहरहाल, लियोनेल मेसी का विश्व विजेता बनने का सपना आखिरकार पूरा हो गया। 2014 में खिताब चूकने वाले मेसी की टीम ने फीफा वर्ल्ड कप इतिहास के सबसे रोमांचक फाइनल में फ्रांस को फुल टाइम में 3-3 से स्कोर बराबर रहने के बाद पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हरा दिया। यह अर्जेंटीना का तीसरा खिताब है। इससे पहले उसने 1978 और 1986 में ट्रॉफी अपने नाम की थी। पेनल्टी शूटआउट में अर्जेंटीना के गोलकीपर मार्टिनेज ने कमाल कर दिया। उन्होंने दो मौके बचाए और मेसी का सपना पूरा कर दिया। इसके साथ ही मेसी का नाम माराडोना के साथ सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है।

भारत को भी मेसी, एम्बाप्पे, फेडरर और नीरज चोपड़ा जैसे सैकड़ों विश्वास से लबरेज खिलाड़ियों की दरकार है। अभी तो बस शुरुआत है। किसी भी देश का विकास इस बात से साबित होता है कि उधर खेलों की दुनिया में किस तरह की उपलब्धियां अर्जित की जा रही हैं। भारत की पुरुष बैडमिंटन टीम का भी इस साल इतिहास रचना। आप जानते हैं कि भारत ने थामस कप के फाइनल में 14 बार के चैंपियन इंडोनेशिया को 3-0 के अंतर से हराकर ये उपलब्धि हासिल की। लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, सात्विक साईराज और चिराग शेट्टी ने भारत को थामस कप जितवाया। इसे बैडमिंटन की विश्व चैंपियनशिप माना जाता है। थामस कप में विजय से पहले भारत के बैडमिंटन सेंसेशन लक्ष्य सेन ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियनशिप के फ़ाइनल में पहुंच गए थे। और बात भारतीय मुक्केबाज निखत जरीन की भी। वह इस्तांबुल में महिला विश्व चैंपियनशिप के फ्लाइवेट (52 किग्रा) वर्ग के एकतरफा फाइनल में थाईलैंड की जिटपोंग जुटामस को 5-0 से हराकर विश्व चैंपियन बनीं। तेलंगाना की मुक्केबाज जरीन ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान प्रतिद्वंद्वियों पर दबदबा बनाए रखा और फाइनल में थाईलैंड की खिलाड़ी को सर्वसम्मत फैसले से हराया।

छह बार की चैंपियन एमसी मैरीकोम (2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018), सरिता देवी (2006), जेनी आरएल (2006) और लेखा केसी इससे पहले विश्व खिताब जीत चुकी हैं। तो हमें यह भी याद रखना होगा कि हम भले ही फीफा कप में बहुत आगे नहीं जा पा रहे हैं, पर हमारे खिलाड़ी भी कई अन्य खेलों में बेहतरीन उपलब्धियां दर्ज कर रहे हैं। इसलिए हमें अपने खिलाड़ियों और टीमों को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हां, हमें भी खेल के मैदान में लगातार श्रेष्ठ प्रदर्शन तो करते ही रहना है।

Source : “Newz Fatafat”

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