Corona को लेकर भारतीय वैज्ञानिकों के रिसर्च से खलबली, बच्चों पर मडरा रहा ये बड़ा खतरा

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Corona को लेकर भारतीय वैज्ञानिकों के रिसर्च से खलबली, बच्चों पर मडरा रहा ये बड़ा खतरा।भारत में कोविड-19 के मामलों में हालिया वृद्धि के बीच ओमिक्रॉन एक्सबीबी.1.16 के सबवैरिएंट के प्रभाव से एक वर्ष से कम आयु के बच्चों में नेत्रश्लेष्मला शोथ (कंजंक्टिवाइटिस) के जोखिम में वृद्धि हुई है.

डब्ल्यूएचओ के वैक्सीन सेफ्टी नेट के सदस्य विपिन एम. वशिष्ठ के नेतृत्व में किया गया यह शोध 4-16 अप्रैल के बीच उत्तर प्रदेश के एक बाल चिकित्सा अस्पताल की ओपीडी में इलाज के लिए लाए गए 25 बच्चों पर आधारित है.

वशिष्ठ यूपी के बिजनौर स्थित मंगला अस्पताल और अनुसंधान केंद्र में सलाहकार बाल रोग विशेषज्ञ भी हैं, उन्होंने शोधपत्र में लिखा है, “हमारे प्रारंभिक निष्कर्ष बड़े बच्चों की तुलना में छोटे शिशुओं की अधिक भागीदारी दिखाते हैं और इसमें सांस की बीमारी व अन्य प्रस्तुतियों को प्राथमिकता दी गई है.”

उन्होंने कहा, “एक दिलचस्प खोज सकारात्मक शिशुओं के 42.8 प्रतिशत में म्यूकोइड डिस्चार्ज और पलकों की चिपचिपाहट के साथ खुजली, गैर-प्यूरुलेंट नेत्रश्लेष्मलाशोथ की उपस्थिति थी.” महत्वपूर्ण रूप से किसी भी बच्चे को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं थी. प्रीप्रिंट साइट मेड्रिक्सिव पर प्रकाशित शाधपत्र में उन्होंने कहा, सभी बच्चे उपचार से ठीक हो गए.

वशिष्ठ ने ट्विटर पर मामलों के बारे में बताते हुए कहा कि मौजूदा कोविड प्रकोप केवल 1-3 दिनों तक चलने वाली हल्के बुखार की बीमारी पैदा कर रहा है. उन्होंने कहा कि बड़े बच्चों में श्वसन संबंधी लक्षण प्रबल होते हैं और सबसे कम उम्र में रोगग्रस्त होने का मामला 13 दिन के एक नवजात शिशु का था.

उन्होंने ट्विटर पर लिखा, “छोटे बच्चे बड़े बच्चों की तुलना में अधिक प्रभावित होते हैं. सबसे छोटा शिशु 13 दिन का नवजात था.” उन्होंने कहा, “एक वर्ष से कम उम्र के शिशुओं में बड़े बच्चों की तुलना में काफी अधिक सकारात्मकता दर (40.38 प्रतिशत बनाम 10.5 प्रतिशत) थी.”

By Zee News

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