स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. (कर्नल) धनी राम शांडिल से आज यहां विभिन्न चिकित्सा संघ के प्रतिनिधियों ने हिमाचल मेडिकल ऑफिसर एसोशिएसन के अध्यक्ष डॉ. राजेश राणा के नेतृत्व में भेंट की।
इस अवसर पर उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री को अपनी विभिन्न मांगों के अतिरिक्त नॉन प्रेक्टिस अलाउंस (एनपीए) संबंधी मामले से भी अवगत करवाया। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार चिकित्सकों की हितैषी सरकार है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के साथ नॉन प्रेक्टिस अलाउंस (एनपीए) के मामले पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
उन्होंने चिकित्सकों के हितों की रक्षा का आश्वासन दिया। मरीजों को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो इसलिए उन्होंने डॉक्टरों से सुचारू रूप से कार्य करने के लिए कहा।
बैठक में सचिव स्वास्थ्य एम. सुधा देवी तथा एसोशिएसन के पदाधिकारी भी उपस्थित थे।
उधर चिकित्सक संग ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि जब तक लिखित रूप से नहीं आएगा हम अपनी माँगों को ले के अपना विरोध परिदर्शन जारी रखते हुए सोमवार से दो घंटे के लिए रूटीन सर्विसेज़ नहीं दे पायेंगे। जनता की ज़रूरतों को ध्यान रखते हुए इमरजेंसी सर्विसेज़ जारी रहेंगी। मेडिकल कॉलेज भी इस हड़ताल का समर्थन करेंगे तो जो जनता अपने दुख और पीड़ा के निदान के लिए सोमवार को त्यारी करे के बैठी थी हॉस्पिटल जाने के लिए वह ध्यान में रखे कि सुबह 11.30 बजे तक डॉ को आप दिखा नहीं पायेंगे। जिन के रूटीन में ऑपरेशन होने थे वह स्थगित होने की पूरी संभावना है , अल्ट्रासाउंड सीटी स्कैन में सेवाएँ पप्रभावित होंगी और लंबी लंबी क़तारें और लंबी हो जायेंगी।
जिन के पास पैसे हैं वह प्राइवेट का रुख़ करेंगे और 80% प्रतिशत जनता जो सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली पे जीवत है वह घंटों लाइन में इंतज़ार करे या पर्ची काउंटर में घंटों खड़े होने के बाद डॉ के इंतज़ार में हताश हो के घर इस आस में चली जाये कि कल देखते हैं और शायद कल कल करते कुछ दिन हो जायें।
अगर सभी विभागों के डॉक्टर्स से बात करें तो उनका कहना कि उन्हें प्राइवेट प्रैक्टिस ना करने का पैसा मिल रहा है परन्तु उनकी लड़ाई उन परिवारों के लिए है जो अभी भी सरकारी स्वास्थ सुविधाओं के लिए आते हैं। यह लड़ाई उन डॉक्टरों के लिए है जो अपनी जवानी के खूबसूरत लम्हों की क़ुर्बानी दे के 6 साल की पड़ाई करने के बाद इस आस में थे कि जो क़ुर्बानियों इन के माता पिता ने दी हैं जिन की भरपाई तो पैसे से नहीं की जा सकती परंतु उनकी कुछ लमहों को ख़ुशी ख़ुशी यादगार बननाने में मदतगार हो सकें।
देखा जाये तो सही भी है क्योंकि जब दसवीं क्लास का परिणाम आता है अगर गावों के सरकारी स्कूलों को छोड़ दिया जाये तो 80 % तो साइंस ले नहीं पाते और जो 20 % लेते हैं उस में से भी 1 % ही यहाँ तक अपनी केटेगरी में एमबीबीएस की सब से कठिन पड़ाई करने के सक्षम होते हैं। जब जायदाकर बचे खेल कूद कर रहे होते वह डॉक्टर की पड़ाई के चक्कर में किताबों से जूझ रहे होते । जब इंजीनियर 21 22 साल की उम्र में कमाना लगते हैं क्योंकि कम्पनीज़ उनको लेने के लिये उनके द्वार ख़ुद आ जाती हैं डॉ अभी इसी दुविधा में होते हैं कि किसी तरह फाइनल में पास हो जायें। अख़बारों में बड़े बड़े अकसरों में पड़ने को मिलता है फ़लाना कंपनी ने फ़लाना इंजीनियर या फ़लाना सीईओ को इतने करोड़ या लाख का पैकेज मिला। कभी आप ने पड़ा की फलाने डॉ को इतना पैकेज मिला। जो मिलता उस को भी कटौती करो। एक दिल का डॉ या दिमाग़ का डॉ बनने के लिए 12 साल लगते हैं । उस के बाद नौकरी लगने के लिये टेस्ट दो, नौकरी लग जाये तो जब तक सांस है तब तक कोई ना कोई पड़ाई करते रहो ताकि मरीज़ को क्या नया इलाज दे सकते हो ।
पुलिस और स्वास्थ विभाग दो ऐसे विभाग हैं जो अपने परिवार वालों को कभी भी पूरा समय नहीं दे पाते। प्राइवेट में इलाज करवाते करवाते लोग क़र्ज़दार हो जाते हैं तो सोच लीजिये अगर सरकारी संस्थानों के डॉ भी प्राइवेट प्रैक्टिस करने लग पड़े तो सरकार का स्वास्थ्य सुधरें या नहीं उसका पता नहीं जनता को तो बिगड़ ही जाएगा।
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