हिमाचल लोक प्रशासन संस्थान (हिपा) एवं हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में आपदा जोखिम में कमी तथा भविष्य के बुनियादी ढांचे पर आधारित दो दिवसीय वार्तालाप एवं मंथन श्रृंखला का आयोजन आज हिपा शिमला में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सदस्य, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण कृष्ण स्वरूप वत्स ने किया।
उन्होंने आपदा के बाद मूल्यांकन की आवश्यकताओं पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि आपदा के उपरांत भौतिक क्षति, आर्थिक नुकसान और पुनर्प्राप्ति आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पीडीएनए (पोस्ट डिजास्टर नीड असेसमेंट) आवश्यक है। पीडीएनए पुनर्प्राप्ति एवं पुनर्वास में जहां मदद करता है वही बेहतर निर्माण को भी प्रोत्साहित करता है।
कृष्ण स्वरूप वत्स ने कहा कि यहां के पहाड़ बड़े कमजोर हैं तथा हमें उन्हें बचाने की भी आवश्यकता है ताकि जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम किया जा सके। ग्लेशियर कम होते जा रहे हैं तथा झीलों में पानी में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जिस कारण इनसे भी खतरा बना हुआ है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश भूकंप की दृष्टि से सिस्मिक जोन-5 में है जिससे यहां भूकंप का खतरा भी ज्यादा है। इस दृष्टि से हमें यहां पर निर्माण कार्य भी वैज्ञानिक दृष्टि से करना होगा।
उन्होंने कहा कि आपदा के समय मानवीय संसाधन का महत्वपूर्ण योगदान रहता है जिसका उद्देश्य आपदा से संबंधित सभी प्रकार की तैयारी को मजबूत करना है ताकि आपदा के समय उसका सही उपयोग हो सके। इस अवसर पर उन्होंने आपदा के लिए केंद्रीय सहायता के बारे में भी अवगत करवाया।
कोलोकियम श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य वर्तमान बुनियादी ढांचे और आपदा तैयारी में पहचान करना – निशा सिंह
महानिदेशक, हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासन संस्थान निशा सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि कोलोकियम श्रृंखला का मुख्य उद्देश्य वर्तमान बुनियादी ढांचे और आपदा तैयारी में पहचान करना है। वही मानसून 2023 के दौरान राज्य में आपदाओं को ध्यान में रखते हुए आपदा जोखिम में कमी लाना और भविष्य में बुनियादी ढांचे के लिए प्रभावी रणनीतियों की पहचान करना है।
उन्होंने कहा कि आपदा के दृष्टिगत हमें किसी भी प्रदेश एवं जिला में मानवीय संसाधन का विकास करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त जल निकासी भी एक महत्वपूर्ण बिंदु है ताकि भूस्खलन की स्थिति उत्पन्न न हो।
उन्होंने कहा कि विकास एवं निर्माण कार्य के लिए भी सही तरीके अपनाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि कार्यशाला के अंत में हम नीति अनुशंसा सरकार को भेजेंगे ताकि आगामी भविष्य में इस तरह की त्रासदी देखने को न मिले।
कोलोकियम में किया जायेगा आपदा से हुए नुकसान की वजह एवं आगामी भविष्य की नीतियों और बुनियादी ढांचे पर विस्तृत विचार विमर्श – महापौर
उन्होंने कहा कि आज का यह कार्यक्रम अत्यंत आवश्यक है जिसमे आपदा से हुए नुकसान की वजह एवं आगामी भविष्य की नीतियों और बुनियादी ढांचे पर विस्तृत विचार विमर्श किया जा रहा है।
कार्यक्रम के दौरान निदेशक हिपा शुभ कारण सिंह ने मुख्य अतिथि, अन्य अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया तथा दो दिवसीय मंथन शिविर की रूपरेखा रखी।
कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों ने विभिन्न विषयों पर प्रेजेंटेशन के माध्यम से अपनी बात रखी।
वरिष्ठ वैज्ञानिक, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली डॉ मनोज कुमार शुक्ला ने पर्वतीय सड़क निर्माण में वैश्विक प्रथाओं पर अपने विचार रखें।
मुख्य वन संरक्षक कुल्लू वासु कौशल ने वानिकी एवं आपदा पर अपनी बात रखी। वहीं जिला पर्यटन विकास अधिकारी कुल्लू सुनैना शर्मा ने पर्यटन एवं आपदा पर अपने विचार व्यक्त किए।
दूसरे पैनल डिस्कशन में पारिस्थितिकी एवं विकास के विषय पर विस्तृत चर्चा की गई, जिसके वैज्ञानिक, एचएफआरआई डॉ वनीत जिष्टु ने मुख्य पैनलिस्ट एवं मध्यस्थ के रूप में भूमिका निभाई तथा विषय पर अपने विचार रखे।
वहीं तीसरे एवं अंतिम पैनल डिस्कशन में आपदा प्रतिरोधी में समुदाय की भूमिका पर विचार विमर्श किया गया, जिसमें कुणाल सत्यार्थी, सचिव राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने मुख्य पैनलिस्ट एवं मध्यस्थ के रूप में भूमिका निभाई तथा विषय पर अपने विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम में प्रतिभागियों से विभिन्न विषयों पर प्रश्न एवं सुझाव आमंत्रित किए, जिसमे प्रतिभागियों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया।
कार्यक्रम में यह भी रहे उपस्थित
दो दिवसीय मंथन शिविर के प्रथम दिवस में नगर निगम उपमहापौर उमा कौशल, पार्षदगण, अतिरिक्त निदेशक हिपा प्रशांत सिरकेक, प्रशासनिक अधिकारी, संबंधित विभागों के अधिकारी, योजनाकार, शोधकर्ता,पंचायती राज संस्थाओं एवं शहरी स्थानीय निकाय के सदस्य, पर्यटन, अधिवक्ता, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं गैर सरकारी संगठनों से लगभग 100 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
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