कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों की आर्थिकी में बहतरीन सुधार के लिए हिमाचल प्रदेश वानिकी परियोजना ने हैंडलूम सेक्टर में स्वरोजगार की उड़ान भर दी। यानी हिमाचल की पारंपरिक परिधानों को अच्छी-खासी कीमत मिल रही है। हिमाचल प्रदेश वानिकी परियोजना से जुड़े कुल्लू के विभिन्न स्वयं सहायता समूह आज कुल्लवी शॉल, स्टाल, पट्टी, टोपी समेत अन्य पारंपरिक परिधान तैयार कर रहे हैं। इसके मद्देनजर परियोजना के मुख्य परियोजना निदेशक समीर रस्तोगी ने मंगलवार को वन मंडल कुल्लू के अंतर्गत ग्राम वन विकास समिति जाणा एक और जाणा दो का दौरा किया। उन्होंने यहां पांच स्वयं सहायता समूहों के हरेक सदस्यों से संवाद कर उनकी समस्याएं पूछी। रिगन स्वयं सहायता समूह और वीरभूमि स्वयं सहायता समूह जाणा हैंडलूम सेक्टर में काम कर रहे हैं, जबकि लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह बुनाई और ठाकुर स्वयं सहायता समूह जाणा मधुमक्खी पालन कर रहा है। उन्होंने कहा कि हैंडलूम के साथ-साथ मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में भी बहतर काम कर रहे हैं। मुख्य परियोजना निदेशक ने कहा कि वानिकी परियोजना से जुड़े विभिन्न स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से तैयार हो रहे हथकरघा एवं बुनकर उत्पादों को नई पहचान मिल रही है। उल्लेखनीय है कि कुल्लू जिले में 106 स्वयं सहायता समूह हैंडलूम सेक्टर से जुडे़ हैं, जिनमें 72 ग्रुप एक्टिव तरीके से काम कर रहे हैं। यह परियोजना विभिन्न स्वयं सहायता समूहों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए भी कार्य कर रही है। हिम ट्रेडिशन नामक ब्रांड से उत्पादों की ब्रिकी की जाती है। इसके लिए आने वाले दिनों में कुल्लू के जाणा में भी मार्केटिंग आउटलैट खोला जाएगा। मुख्य परियोजना निदेशक समीर रस्तोगी ने वन विभाग और वानिकी परियोजना के अधिकारियों के साथ जैव विविधता प्रबंधन उप समिति फार्मी का भी दौरा किया। इस अवसर पर परियोजना निदेशक श्रेष्ठा नंद शर्मा, वन मंडलाधिकारी कुल्लू एंजल चौहान, अतिरिक्त परियोजना निदेशक हेमराज भारद्वाज समेत अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी मौजूद रहे।
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