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भारत के पूर्व प्रधान मंत्री श्री राजीव गाँधी हिमाचल प्रदेश में वूलेन खादी को बड़े पैमाने पर बढ़ाबा देकर हिमाचल को वूलेन खादी उत्पादों का हब बनाना चाहते थे ताकि हिमाचली विशुद्ध ऊनी उत्पादों को एक ब्रांड के रूप में उभारा जा सके और इन उत्पादों को अंतर्राष्ट्रीय मार्किट में उतारा जा सके । इसके लिए उन्होंने खादी और ग्रामोद्योग आयोग को बिस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के लिए कहा था ।
इस बात का खुलासा खादी और ग्रामोद्योग आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री लक्ष्मी दास ने अपनी आत्मकथा पर लिखित पुस्तक ” संघर्ष की आपबीती “में किया है ।
प्रसिद्ध समाज सेवी एवं गांधीवादी विचारक श्री लक्ष्मी दास की आत्मकथा का बिमोचन पिछले हफ्ते पद्म विभूषण एवं पूर्व केन्द्रीय मन्त्री डॉ. कर्ण सिंह ने कोंस्टीटूशनल क्लब नई दिल्ली में किया जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. एच.के. पाटिल, कर्नाटक सरकार के कानून और न्याय तथा संसदीय मामलों के मंत्री ने की।
श्री लक्ष्मी दास काँगड़ा जिला के गांव उझे , बाथू टिप्परी से सम्बन्ध रखते हैं और बर्तमान में हिमाचल खादी ग्रामोद्योग फेडरेशन के अध्यक्ष हैं
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है की श्री राजीव गाँधी के निर्देश के अनुरूप हिमाचल प्रदेश में खादी और ग्रामोद्योग आयोग से सम्ब्द्ध संस्थाओं ने बड़े पैमाने पर ऊनी स्वेटरों , जैकटों , मफलरों , कोट आदि का उत्पादन शुरू किया था जिसको राष्ट्रीय बाजार ने उतारा गया जिसके रहते हिमाचल प्रदेश को महानगरों में सेव के इलाबा ऊनी राज्य के रूप में एक नई पहचान मिली और हिमाचली टोपी ,मफलर को मुम्बई के फैशन शो में पहना जाने लगा । उन्होंने लिखा है उन्होंने काँगड़ा चम्बा के गद्दियों के पट्टू को कुल्लू टोपी की तरह लोकप्रिय बनाने के लिए अनेक पर्यतन किये थे जिसके परिणाम स्वरुप गद्दियों के पट्टू महाराष्ट्र , मध्य प्रदेश , राजस्थान , दिल्ली और मुम्बई में बिकने शुरू हुए / गद्दियों के पास काफी ऊन होती है लेकिन काँगड़ा चम्बा में कार्यरत खादी संस्थाएं लिक्विडिटी की कमी से पट्टुओं का अधिकतम आर्थिक दोहन नहीं कर पाती हैं ।
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है की राजीव गाँधी जी के निर्देश के अनुसार हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा और चम्बा जिलों में रहने बाले गद्दियों से कच्ची ऊन खरीदने का बड़े पैमाने पर कार्य शुरू किया गया था ताकि गद्दियों के इस परम्परागत पेशे को प्रोत्साहित किया जा सके और गद्दियों की ऊन से बने उत्पादों की अलग ब्रांडिंग की जा सके /उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है की गद्दियों की ऊन के उत्पादों को महानगरों में काफी सपोर्ट मिली थी और इन उत्पादों को धनाढ्य लोगों ने हाथों हाथ लिया था ।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है की खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने पहाड़ी बुनकरों को रोजगार के अबसर बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रेलिया से मैरिनो ऊन का आयात किया ताकि स्थानीय बुनकरों को कताई और बुनाई के अबसर प्रदान किये जा सकें । उन्होंने बताया की उस समय राज्य में कताई और बुनाई से जुड़े दस्तकार काम के आभाव में जूझ रहे थे और परम्परागत पेशे को छोड़ कर सरकारी नौकरी और अन्य व्यबसायों को अपना रहे थे जिससे यह लग रहा था की राज्य में बुनकरों का कार्य पुरानी पीड़ी के लोगों में कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित रह जायेगा । जब यह मुद्दा स्वर्गीय राजीव गाँधी जी की समक्ष लाया गया तो उन्होंने इसका तत्काल समाधान करने के लिए कहा जिसके परिणाम स्वरुप ऑस्ट्रेलिया से मैरिनो ऊन का आयात किया गया था ।
अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष के नाते बह काँगड़ा क्षेत्र में भी कुल्लू की तर्ज पर ऊनी उत्पादों का उत्पादन करना चाहते थे तथा इसके लिए उन्होंने अनेक प्रोत्साहन योजनाएं भी शुरू की थी जिसके उत्साहपूर्व परिणाम सावित आये थें ।
उन्होंने लिखा है की उनके कार्यकाल में हिमाचल ऊनी उत्पादों को महाराष्ट्र , राजस्थान , मध्य प्रदेश , दिल्ली और हरियाणा की मार्किट में उतारा गया तथा उच्च गुणबत्ता की बजह से दिल्ली के चोटी के राजनेता ,नौकरशाह और उद्योगपति सर्दियों में हिमाचली स्वेटर और मफलर बड़ी शान से पहनते थे और टूरिस्ट जाती बार हिमाचली ऊनी उत्पाद खरीद कर ले जाते थे और अपने अपनों को हिमाचली ऊनी उत्पाद गिफ्ट में देते थे । उन्होंने लिखा है की उनके प्रयासों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिमाचली टोपी को नई पहचान मिली तथा श्री राजीव गाँधी जी ने अनेक अबसरों पर अंतर्राष्ट्रीय मेहमानों को हिमाचली टोपी पहनाई तथा हिमाचली ऊनी उत्पाद भेंट किये ।
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