बिना अर्थ जाने मंत्रोच्चार करना कितना लाभकारी

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बिना अर्थ जाने मंत्रोच्चार करना कितना लाभकारी।सनातन धर्म में ईश्वर साधना आराधना के कई तरीके बताए गए है जिसमें एक तरीका होता है देवी देवताओं की चालीसा, स्तोत्र और मंत्रों का जाप मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति नियमित रूप से इनका पाठ व जाप करता है तो भगवान प्रसन्न होते हैं आज के समय में कोई भी मनुष्य कार्यों को करने से पहले विचार विर्मश नहीं करता है।


बस सब कर देते हैं लोग यह तक विचार नहीं करते हैं कि कार्य सही है या गलत। किसी ने कह दिया कि मंत्र या ग्रंथो का पाठ करने व उन्हें सुनने से लाभ होता तो लोग लग जाते हैं मंत्रों का जाप या श्रवण करने। मंत्रों का क्या अर्थ है यह भी लोग जानने और समझने का प्रयास तक नहीं करते हैं तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा बता रहे हैं कि हिंदू धर्म में बिना अर्थ जाने मंत्रोच्चारा करना कितना लाभकारी है, तो आइए जानते हैं।

हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ श्रीरामचरित्र मानस या गीता का अर्थ जाने बिना इसका पाठ करना कोई लाभ नहीं देता है ऐसे में इनके श्लोक को पढ़ा और इन्हें समझना लाभकारी होता है कहते हैं कि अर्थ जाने बिना कुछ भी पढ़ना व्यर्थ होता है बहुत से लोग अर्थ जाने बिना संस्कृत के मंत्रों का पाठ या जाप करते हैं वह केवल पशु की पीठ पर लदे बोझ के समान माने जाते हैं इस विषय पर महर्षि यास्क ने निरुक्त में एक श्लोक लिखा है जो इस प्रकार है।

स्थाणुरयं भारहार: किलाभूदधीत्य वेदं न विजानाति अर्थम् ।

जानिए इस श्लोक का अर्थ- जो भी मनुष्य वेद आदि ग्रंथों का अर्थ जाने बिना पढ़ता है वह ऐसा ही है जैसा डाली, पत्ते, फल, पुष्प से लदा हुआ पेड़ और पीठ पर धान्य आदि का बोझ उठाए हुए एक पशु। न फल पुष्प का लाभ पेड़ को मिलता है न ही पीठ पर लदे अनाज का लाभ उस पशु को प्राप्त होता है जिसने इसे अपने उपर लाद रखा है वे केवल भार बढ़ाने वाले हैं अत: जो भी पढ़ें या जपें उसका अर्थ जरूर जान लेना चाहिए तभी लाभ मिलेगा।

शास्त्रों में बताया गया है कि पवित्र धर्म ग्रंथों को पुण्य अर्जन के लिए नहीं अपितु ज्ञान वर्धन के लिए पढ़ना चाहिए इनकी शिक्षाओं को आचरण में लाने के लिए इसका पाठ करें और यह तभी संभव हो पाएगा जब आप इनका सही अर्थ जान पाएंगे। इन सभी बातों का यह अर्थ निकलता है कि बिना मंत्रों का अर्थ जाने उनका कोई लाभ व फल प्राप्त नहीं होता है। इसलिए अर्थ जानने के बाद ही मंत्रों व ग्रंथा का पाठ करना उत्तम रहता है इससे भक्तों को पूर्ण फलों की प्राप्ति होती है और ईश्वर की कृपा भी बनी रहती है।

Source : “समाचार नामा”

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