India Lockdown Movie Review: लॉकडाउन के दिनों पर आधारित है यह फिल्म

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India Lockdown Movie Review: लॉकडाउन के दिनों पर आधारित है यह फिल्म । सीनेमा एक ऐसी कला है जो अपनी कहानी से खामोशी में भी शोर मचा सकती है या शोर में भी शांति पैदा कर सकती है। मधुर भंडारकर का सिनेमा लंबे समय से इसी दिशा में चल रहा है। यह उनकी साधना है जिसके कारण उन्हें कुछ बेहतरीन फिल्मों के लिए याद किया जाता है।

और ऐसा बनने के लिए यह भी जरूरी है कि उनका मन और सोच दूषित न हो और इसके लिए जरूरी है कि ऐसे लोगों से दूर रहें जिससे उनकी सोच दूषित हो जाए। वह वर्तमान में अपने करियर में एक लंबे संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं। और उनके अच्छे दिन तभी लौट सकते हैं जब दर्शकों को झकझोर देने वाली कहानी को पर्दे पर लाया जा सके।इसके लिए उनके प्रशंसकों को ‘बबली बाउंसर, इंदु सरकार’ या अब ‘इंडिया लॉकडाउन’ देखना चाहिए।

कहानी कोरोना काल की है

फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ की कहानी वहीं से शुरू होती है जब साल 2020 यानी मार्च में आम लोगों के बीच कोरोना महामारी की बात होने लगी थी। लोगों को किसी अनहोनी की आशंका का अहसास होने लगा। अगर किसी के घर खुशखबरी आने वाली है तो वह खुश तो है ही साथ ही इस महामारी का डर भी है। और घरों में काम करने वालों पर लाचारी का पहाड़। उनकी मजबूरी को देखते हुए उन्हें एडवांस सैलरी भी दी जाती है। किसी की मां या बहन को नर्स की नौकरी दिलाने की बात कहकर कोठे पर लड़की ब्लैकमेलिंग का शिकार हो जाती है। उनकी इस कहानी से पता चलता है कि आज भी वह कई साल पुराने सिनेमा की सोच में फंसे हुए हैं।

4 कहानियां एक साथ

इस फिल्म में 4 कहानियां एक साथ चलती हैं लेकिन उनकी कहानी श्वेता बसु प्रसाद पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। लॉकडाउन के देह व्यापार पर पड़ने वाले असर पर इस फिल्म में इतना कुछ बताया गया है कि इस पर एक अलग कहानी बनाई जा सकती है. मधुर भंडारकर कहानी को सही तरीके से पकड़ते हैं और उसके अंदर जाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अब वे बोरिंग डायरेक्टर की तरह नजर आने लगे हैं. एक बात कहानी में ठीक से फिट नहीं बैठती, तब तक वो दूसरी कहानी पर चले जाते हैं। इस फिल्म में एक ऐसे गरीब लोगों की भी कहानी है, जिनके लिए 100 रुपये में एक जोड़ी चप्पल खरीदना भी बहुत मुश्किल काम है. और एक जोड़े की एक और कहानी है जो मंगल ग्रह की यात्रा का रोमांच चाहते थे।

कहानी तो है लेकिन उसमें फीलिंग नहीं है

इस फिल्म में वह मुंबई के उन शहरों को दिखा रहे हैं जिनका आम तौर पर समझे जाने वाले शहर मुंबई से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन इस आबादी में मर्सिडीज कार में बैठकर वो खिड़की से उस दूसरी दुनिया को देख रहा है. और यह कहानी इससे पराजित होती है। इस फिल्म का स्क्रीनप्ले, डायलॉग और कहानी सब कमजोर है।

Source : “Bollywood Remind”

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