शिमला 16 जून – जिला शिमला के सभी स्कूलों में बच्चों को शोषण व शरीरिक दंड बारे जागरूक करने के लिए एक विशेष अभियान चलाया जाएगा।
यह जानकारी जिला कार्यक्रम अधिकारी शिमला ममता पॉल ने जिला कल्याण समिति व चाइन्ड लाइन शिमला के साथ आयोजित बैठक की अध्य़क्षता करते हुए दी, जिसमें बाल श्रम, बाल यौन उत्पीडन, कार्पोरेल पनिश्मेंट (शारिरिक दंड), चाइल्ड हेल्प लाइन 1098 व र्दुव्यवहार जैसे मामलों पर चर्चा की गई।
उन्होंने कहा कि चाइल्ड हेल्पलाइन शिमला से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार चाईल्ड हेल्प लाइन 1098 पर बाल श्रम, बाल यौन उत्पीडन, कार्पोरेल पनिश्मेंट (शारिरिक दंड) व र्दुव्यवहार जैसे मामले आ रहे हैं जोकि सीधे तौर पर बच्चों की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं व बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि शारीरिक दंड बच्चों के खिलाफ हिंसा का एक व्यापक रूप है।
उन्होंने कहा कि निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम 2009, धारा 17(1) के तहत शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न प्रतिबंधित है और धारा 17(2) के तहत एक दंडनीय अपराध है। किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धारा 23 के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो एक किशोर का संरक्षक है, बालक का अनावश्यक मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न करता है या उसकी उपेक्षा करता है, तो उसे कारावास व जुर्माना हो सकता है। साथ ही किशोर न्याय अधिनियम की धारा 75 बच्चों के साथ क्रूरता के लिए सजा निर्धारित करती है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), के दिशानिर्देशों अनुसार प्रत्येक स्कूल में शारीरिक दंड निगरानी प्रकोष्ठ का गठन करना अनिवार्य है जो स्कूल में शारीरिक दंड की शिकायतों की जांच करता है।
बाल कल्याण समिति शिमला की अध्यक्ष अमिता भारद्वाज ने बताया कि कानूनी प्रावधानों के बावजूद बच्चों के शोषण व शारीरिक दंड की घटनाएं अगर अभी भी हो रही हैं और यह चिंता का विषय है। इसके लिए शिक्षा विभाग से समन्वय स्थापित कर हर विद्यालय में एक विशेष जागरूकता अभियान चलाया जाएगा, ताकि बच्चों में आत्मसम्मान के साथ जीने की भावना विकसित की जा सके और वह सुरक्षित महसूस कर तनाव मुक्त जीवन जी सकें।
चाइल्ड हेल्पलाइन शिमला की संयोजक ललिता ने बताया कि चाइल्ड हेल्पलाइन 1098 को हर विद्यालय व बाल गृह में प्रमुख स्थानों पर प्रदर्शित करना अनिवार्य है।
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