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जैसा कि हिमाचल प्रदेश राज्य विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं के लिए अति संवेदनशील क्षेत्र है। यहां लगभग हर वर्ष प्रत्येक ऋतु में अलग-अलग तरह की आपदाओं से जान-माल का नुकसान रिकॉर्ड होता आया है।
हिमाचल प्रदेश का लगभग 80% क्षेत्र बर्फबारी व पर्वतीय होने के कारण यहां पर घरों की बनावट व सामग्री में भी अंतर आता है, जिसमें कि अधिक पर्वतीय क्षेत्रों में काठ कुंनी शैली, पेगोड़ा शैली, स्लेट, टिन शेड आदि में घरों का निर्माण किया जाता है। इस शैली में बनाए गए अधिकतर घर अच्छी किस्म के पेड़ों की लकड़ी से तैयार किए जाते हैं, जो कि ज्वलनशील स्वभाव व आग के प्रति भी अति संवेदनशील होते हैं।
इसके अतिरिक्त लंबी सर्दियों व बर्फबारी के मौसम में इन क्षेत्रों में आगजनी की घटनाएं होने की संभावनाएं अन्य ऋतुओं के मुकाबले अत्यधिक बढ़ जाती है। यदि हम पिछले चार-पांच वर्षों की बात करें तो उनके आंकड़ों से पता चलता है कि इस तरह की आपदाएं व घटनाएं दिन प्रतिदिन व प्रतिवर्ष बढ़ती ही जा रही है: हाल ही में यदि हम नववर्ष की बात करें तो 2 जनवरी 2025 को जिला कुल्लू के बंजार उपमंडल के अंतर्गत टांडी गांव में लगी भीष्ण घरेलू आग से लगभग 17 घर व 6 गौशालाएं जलकर पूरी तरह से राख हो गई। यह भयानक आग लगभग 20 घंटे तक सुलगती रही व इससे लगभग 136 लोग बेघर हुए तथा 10 करोड़ के नुकसान का आंकलन किया गया है। वहीं दूसरी और यदि हम 2 फरवरी 2024 की घटना को याद करें जिसमें की जिला सोलन के नालागढ़ स्थित एक परफ्यूम फैक्ट्री में भयानक आग लग जाने से 1 व्यक्ति की मृत्यु व 30 लोग बुरी तरह से घायल हो गए थे। वहीं दूसरी ओर 24 नवंबर 2024 को जिला कुल्लू के तियुन गांव में भयानक आग लग जाने से कई घरों को आग ने अपने आगोश में ले लिया, फलस्वरुप जिससे कि लगभग 80 लाख के नुकसान का आंकलन हुआ था। एक और घटना की यदि हम चर्चा करें तो 3 सितंबर 2023 को जिला शिमला के रोहडू उपमंडल के गांव दरोटी में लगी भीष्ण आग से 9 घर बुरी तरह से जल गए जिसमें की 21 परिवारों के लगभग 74 लोग बेघर व प्रभावित हुए थे। इसके अतिरिक्त एक और घटना 28 अक्टूबर 2021 को जिला कुल्लू के मलाणा गांव में घटित हुई, जिसमें की गांव के कई घरों में एकाएक आग लग जाने से लगभग 16 घर पूरी तरह से जल गए जिसमें की 150 लोग बेघर हो गए थे।
इतना ही नहीं, इसके अतिरिक्त यह कहना उचित होगा कि इस प्रकार की घरेलू आगजनी की घटनाओं में न केवल मनुष्य बल्कि पशुधन भी बुरी तरह से प्रभावित होता है व इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण में भी वृद्धि दर्ज की जाती है। इन भयंकर कड़ाके की सर्दियों में पहाड़ी क्षेत्रों को बर्फ व घने कोहरे व शीतलहर वाले मैदानी क्षेत्रों में भी दम घुटने जैसी घटनाओं में वृद्धि होती है। इसका मुख्य कारण अंगीठी व हिटरों का सोते समय पूरी रात प्रयोग करना पाया गया है। जिससे कि बंद कमरे में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने पर इनके द्वारा उत्सर्जित कार्बन- मोनोऑक्साइड गैस की अत्यधिक वृद्धि होने से मृत्यु व अन्य तरह की बीमारियां लग जाने का खतरा भी शामिल है। अतः संबंधित विभागों द्वारा इस संबंध में समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम व चेतावनी संदेश आमजन के हितों के लिए जारी किए जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए केवल जागरूकता एवं समय-समय पर सरकार द्वारा जारी निर्देशों का पालन करके ही हम भविष्य में हिमाचल प्रदेश में होने वाली इस तरह की घरेलू आगजनी इत्यादि घटनाओं पर नियंत्रण पाने में सक्षम व सफल हो पाएंगे।
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