
BJP की पहली लिस्ट में दिखी परिवारवाद की झलक, एक मंत्री-दो पूर्व मंत्री के बेटों को दिया टिकट। परिवारवाद के मुद्दे पर अन्य विपक्षी पार्टियों को घरने वाली बीजेपीअब खुद ही परिवादवाद को बढ़ावा देने में लगी हुई है. इसका जीता-जागता उदाहरण आज जारी हुई हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की पहली लिस्ट में देखने को मिला।बीजेपी ने आज कुल 62 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की. बीजेपी ने वतर्मान मंत्री का टिकट काटकर उनकी जगह बेटे को टिकट दिया. वहीं दो पूर्व मंत्रियों के बेटों को भी टिकट मिला. बीजेपी का ये फैसला उसकी विचारधारा से बिलकुल विपरीत दिखाई पड़ रहा है.
बीजेपी ने जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह के बेटे रजत ठाकुर को धर्मपुर से, पूर्व मंत्री नरिंदर ब्रगटा के बेटे चेतन ब्रगटा को जुब्बल और कोटखाई सीट से और पूर्व मंत्री आईडी धीमान के बेटे अनिल धीमान भोरंज सीट से चुनावी मैदान में उतारा है. वहीं अनिल शर्मा भी कांग्रेस के पूर्व संचार मंत्री सुखराम के बेटे हैं. अनिल शर्मा को बीजेपी ने मंडी से टिकट दिया है.
विधायक कर्नल इंदर सिंह का भी टिकट कटा
बता दें, बीजेपी ने मंगलवार देर रात विचार-विमर्श के बाद 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 62 सीटों के लिए पहली सूची जारी की. सरकाघाट के मौजूदा विधायक कर्नल इंदर सिंह को उनकी अधिक उम्र के कारण टिकट नहीं दिया गया. दो सिटिंग विधायक सुरेश भारद्वाज और राकेश पठनीया, जो जयराम ठाकुर सरकार में मंत्री हैं, उनका विधानसभा क्षेत्र चेंज किया गया है. मंत्री राकेश पठानिया का विधानसभा क्षेत्र इस बार नूरपुर की बजाय फतेहपुर रहेगा. वह फतेहपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे. वहीं मंत्री सुरेश भारद्वाज को इस बार कुसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया गया है.
पार्टी में सक्रिय थे चेतन ब्रगटा, फिर भी की गई थी अनदेखी
दिलचस्प बात यह है कि चेतन ब्रगटा को 2021 में जुब्बल और कोटखाई विधानसभा उपचुनाव में उनके पिता नरिंदर ब्रगटा के निधन के बाद टिकट से नहीं दिया गया था. नरिंदर ब्रगटा उस समय बागवानी मंत्री थे. जुझारू नेता होने के बावजूद भी चेतन को वंशवाद की राजनीति के आधार पर टिकट से वंचित कर दिया गया था. उस समय चेतन ब्रगटा बीजेपी की युवा शाखा और आईटी सेल के साथ सक्रिय रूप से काम कर रहे थे. पार्टी द्वारा अनदेखी किए जाने से वह नाराज हो गए थे.
पूर्व मंत्री के बेटे को टिकट न देना पड़ा था भारी
आक्रोशित चेतन निर्दलीय के रूप में मैदान में कूद पड़े थे. इस वजह से बीजेपी प्रत्याशी नीलम न केवल तीसरे स्थान पर रहीं, बल्कि अपनी जमानत भी जब्त करा ली. इसने बीजेपी को वंशवाद की राजनीति पर अपने रुख के बारे में पुनर्विचार करना पड़ा. वहीं मंत्री महेंद्र सिंह अपने बेटे रजत की चुनावी शुरुआत सुनिश्चित करने के इच्छुक थे और पार्टी ने उनकी मांग को मान लिया है. प्रारंभ में, उनके बेटे रजत और बेटी वंदना गुलेरिया दोनों अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालने के इच्छुक थे, लेकिन अंत में पिता ने बेटे को अपना उत्तराधिकारी चुना.
क्या हिमाचल में बदलेगी परंपरा?
पहाड़ी राज्य में किसी भी पार्टी द्वारा अपनी सरकार नहीं दोहराने की परंपरा को बदलने के लिए सत्तारूढ़ बीजेपी ने वंशवाद की राजनीति पर अपने रुख को कमजोर कर दिया है, जहां बीजेपी वंशवादी राजनीति को बढ़ावा देने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधती रही है तो वहीं लगता है कि भगवा पार्टी ने परिवारवाद के मुद्दे पर खुद ही अपनी रणनीति बदल ली है.
http://dhunt.in/DISgC?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “TV9 Bharatvarsh”