ओल्ड पेंशन की नोटिफिकेशन के इंतजार में हिमाचल प्रदेश, वित्त विभाग पंजाब सरकार के संपर्क में। ओल्ड पेंशन पर एक तरफ चुनाव में दावों प्रतिदावों का दौर चल रहा है, वहीं दूसरी और पंजाब सरकार की नोटिफिकेशन पर सबकी नजर है।
हिमाचल के विधानसभा चुनाव के दबाव में पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपनी कैबिनेट में इसे लागू करने का फैसला तो ले लिया है, लेकिन लागू कैसे होगी। यह नोटिफिकेशन अभी जारी नहीं हुई है। इधर हिमाचल सरकार का वित्त विभाग पंजाब के साथ लगातार संपर्क में है, ताकि किस मॉडल पर पंजाब ओल्ड पेंशन को बहाल करेगा, इस बारे में चिंतन किया जा सके। हिमाचल में 116000 कर्मचारी अभी न्यू पेंशन स्कीम के तहत हैं और हर साल 720 करोड़ के आसपास एनपीएस कंट्रीब्यूशन जमा हो रहा है। ऐसे में जब चुनाव में लगभग सभी दलों की ओर से ओल्ड पेंशन देने का वादा किया जा रहा हो, तो वित्त विभाग में भी कैलकुलेशन का क्रम चला हुआ है।
दरअसल इससे पहले राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड ने अपने अपने यहां ओल्ड पेंशन को लागू करने के लिए प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन एनपीएस के तहत जमा धन वापस कैसे आएगा और यदि वापस नहीं आया तो कर्मचारियों को भुगतान कैसे होगा? यह व्यवस्था कोई राज्य नहीं बना पाया है। इन राज्यों से भी ज्यादा पंजाब से हिमाचल प्रभावित रहता है, क्योंकि हिमाचल पे कमीशन के मामले में पंजाब को फॉलो करता है। अब जबकि पंजाब में भी ओल्ड पेंशन को लागू करने का फैसला ले लिया है, ऐसे में इनकी नोटिफिकेशन पर बहुत कुछ निर्भर कर रहा है। अभी तक मिल रही सूचनाओं के अनुसार पंजाब सरकार आंध्रप्रदेश मॉडल की तरफ जा रही है, जिसमें एनपीएस के साथ साथ टॉप अप की सुविधा राज्य सरकार की ओर से दी जाती है। इसमें कर्मचारी को रिटायरमेंट पर आखिरी सैलरी का 50 फ़ीसदी पेंशन मिल जाता है। लेकिन जब तक नोटिफिकेशन नहीं हो जाती, तब तक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। वर्तमान भाजपा सरकार इस मामले में शुरू से कहती रही है कि भारत सरकार की सहमति के बिना ओल्ड पेंशन को पूर्व की भांति बहाल करना संभव नहीं है।
जबकि कांग्रेस शासित राज्यों ने इसे बहाल करने की नोटिफिकेशन कर दी है और एनपीएस कंट्रीब्यूशन बंद कर जीपीएफ अकाउंट भी शुरू कर दिए हैं, लेकिन सबसे पेचीदा मसला उन कर्मचारियों को लेकर है जिनका पैसा एनपीएस में चला गया है और अभी मार्केट में लगा हुआ है। भारत सरकार राजस्थान को इस पैसे को वापस करने से इनकार कर चुकी है। नई बात यह है कि वर्तमान में जितने भी मॉडल सभी राज्यों में चल रहे हैं, उन सभी पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनाई हाई पावर कमेटी में चर्चा हुई थी, लेकिन सरकार कोई फैसला नहीं ले पाई थी।
http://dhunt.in/EHpnA?s=a&uu=0x5f088b84e733753e&ss=pd Source : “Divya Himachal”
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