भारत-पाकिस्तान वार्ता की वकालत न करे अमेरिका, Sharif को समझाये की अपील और शर्त एक साथ नहीं

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भारत-पाकिस्तान वार्ता की वकालत न करे अमेरिका, Sharif को समझाये की अपील और शर्त एक साथ नहीं।भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ता कैसा है ये पूरी दुनिया जानती है। भारत हर वक्त पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाया लेकिन, बदले में उसने हमेशा धोखा दिया।

कभी कारगिल वॉर तो कभी, पुलवामा तो कभी उरी अटैक। ऐसे में भारत ने अपने हाथ पीछे खींच लिए। अब भारत का साफ कहना है कि, दोनों देशों के बीच बातचीत तभी संभव है जब आतंकवाद को पाकिस्तान उखाड़ फेंके। पाकिस्तान इस वक्त कंगाल हो चुका है। अब वो भारत संग बातचीत कर रिश्ते सुधारने की बात कह रहा है। लेकिन, असल मुद्दा तो आतंकवाद है। इसपर पाकिस्तान कुछ नहीं बोलता तो फिर बातचीत कैसे संभव है। अब दोनों देशों के बीच वार्ता को लेकर अमेरिका (America on India and Pakistan) ने लंबे समय बाद अपनी चुप्पी तोड़ी है। दरअसल, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत संग बात करने के लिए तड़प रहे थे, वो लगातार अनुरोध कर रहे थे कि पीएम मोदी संग बातचीत कर रिश्ते को फिर से सुधारा जाए। लेकिन, सेना के दबाव के बाद वो अपने बयान से पलट गये (यही तो पाकिस्तान की खासियत है पहले कुछ और फिर बाद में कुछ और। यही वजह है कि, वो आज तक परेशान है)। अमेरिका (America on India and Pakistan) ने अब दोनों देशों की बातचीत को लेकर अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि, भारत-पाकिस्तान (America on India and Pakistan) के बीच किसी वार्ता की हति, दायरे और उसके स्वरूप पर निर्णय लेना दोनों देशों का मामला है। यूएस ने कहा कि, वाशिंगटन ने हमेशा दोनों पड़ोसी देशों के बीच वार्ता का समर्थन किया है ताकि दक्षिण एशिया में शांति सुनिश्चित हो सके।

अमेरिका दोनों के साथ बना कर चलना चाहता है
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने अपने एक बयान में कहा कि, हालांकि अमेरिका दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता देखना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान और भारत के साथ उसके संबंध स्वतंत्र हैं। प्राइस पाकिस्तानी पत्रकारों के उन सवालों का जवाब दे रहे थे जिसमें उनसे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की उस हालिया टिप्पणी के बारे में पूछा गया था जिसमें भारत से शांति वार्ता का अनुरोध किया गया था। प्राइस ने कहा कि हमने लंबे समय से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्थिरता की अपील की है। हम इसे और बढ़ाना चाहते हैं। जब हमारी भागीदारी की बात आती है, तो हमारी पाकिस्तान और भारत दोनों के साथ भागीदारी है, लेकिन ये संबंध हमारे खुद के बूते बने हैं। प्राइस ने कहा कि अमेरिका दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को ‘जीरो-सम’ (एक तरह का संतुलन जिसके तहत माना जाता है कि एक व्यक्ति को होने वाला फायदा दूसरे व्यक्ति को होने वाले नुकसान के बराबर है) के रूप में नहीं देखता।

अपील और शर्त एक साथ नहीं हो सकते शहबाज शरीफ
बता दें कि, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत के साथ बातचीत का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि दोनों देशों को बातचीत कर आपसी मुद्दों को हल करना चाहिए। हालांकि, पाकिस्तानी सेना के दबाव के बाद उन्होंने अपना बयान बदल दिया और कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी के बगैर पाकिस्तान बातचीत नहीं करेगा। पाकिस्तान बातचीत करने के लिए कह रहा है, फिर कह रहा है कि वो बातचीत नहीं करेगा, अरे.. शरीफ जी पहले ये तय कर लें कि बातचीत करना है कि नहीं, और शर्त तब रखी जाती है जब दूसरे पक्ष की ओर से अपील की गई है. यहां तो अपील भी आप ही कर रहे हैं और शर्त भी आप ही रख रहे हैं। रही बात जम्मू-कश्मीर में तो आपके ही दोस्त और इस्लामिक देशों में मजबूत पकड़ रखने वाला UAE वहां पर विकास के लिए अपनी कंपनियों को ला रहा है।

क्या ये हालात जम्मू-कश्मीर के हैं या पाकिस्तान के?
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 क्यों हटे? “क्या कश्मीर में आटे की कमी है, या दाल की, या फिर बिजली नहीं आती, या फिर खाने के तेल के दाम आसमान छू रहे हैं, या फिर गेहूं खत्म हो गया है, ऐसा तो नहीं कि, पेट्रोल के दाम 230 रुपये प्रति लीटर के पार चले गये हैं, या फिर कश्मीरियों को पढ़ाई का मौका नहीं मिल रहा है, उन्हें बेहतर इलाज नहीं मिल रहा, या फिर टिम इंडिया में कश्मीरी खिलाड़ी नहीं हैं, या सरकारी नौकरी नहीं मिलती उन्हें, देश के सर्वोच्च पद IAS-IPS की परिक्षा में नहीं बैठने दिया जाता। अरे शरीफ जी ये सारे हालात आपके खुद के मुल्क में है। कश्मीर बहुत अच्छे से फल-फूल रहा है और विकास की राह पर तेजी से बढ़ रहा है। भारत और पाकिस्तान के बीच बात तभी संभव है जब आतंकवाद का खात्मा होगा. जो पाकिस्तान के बस की है नहीं. ऐसे में शरीफ दिन में सपने देखना छोड़ दें अब। भारत शुरू से कहता आया है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं हो सकते हैं। ऐसे में बातचीत का माहौल बनाना पाकिस्तान की जिम्मेदारी है।

पाकिस्तान पर मेहरबान है अमेरिका
अब बारी अमेरिका की, अमेरिका एक साथ दो नाव पर सवार होकर चलना चाहता है। एक ओर भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने की कोशिश कर रहा तो दूसरी ओर पाकिस्तान को जमकर मदद कर रहा है। अमेरिका इस समय पाकिस्तान का सबसे बड़ा हितैषी बन बैठा है। इमरान खान की विदाई और शहबाज शरीफ की सत्ता में वापसी के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध सुधरे हैं। अमेरिका ने पाकिस्तान को बाढ़ राहत के तौर पर अरबों डॉलर की खैरात दी है। इसके अलावा बाइडेन प्रशासन ने भारत की आपत्ति के बावजूद पाकिस्तानी एफ-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेडेशन को मंजूर किया है।

Source : “इंडिया नैरेटिव ”

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