
हिमाचल प्रदेश के विख्यात लेखक और हिंदी के उत्थान के लिए अपना विशेष योगदान देने में अग्रणी श्री डॉक्टर धर्म पाल कपूर का विचार और सुझाव डीसी कार्यालय के सामने प्रस्तावित रेस्टुरेंट बनाने को ,सरकार के निर्णय पर।
मैं इस बात का कतई पक्षधर नहीं हूं कि किसी को विस्थापित कर किसी अन्य को स्थापित किया जाए। फिर भी यदि सरकार और प्रशासन के संज्ञान में जिला पुस्तकालय के सामने होटल बनाने का विषय विचाराधीन है तो फिर से एक बार सुझाव देना चाहता हूं कि शिमला की तर्ज पर इस महत्वपूर्ण स्थान पर होटल और वो भी दो दो बनाने की जगह – बुक कैफे निर्मित किया जाए जो कि इस नगरी की सांस्कृतिक साहित्यिक आबोहवा के अनुरूप जान पड़ता है। देश के कई राज्यों में इस तरह का प्रावधान संस्कृतिकर्मियों के लिए रहता है और मंडी तो हिमाचल की सांस्कृतिक राजधानी है ही। हर चीज का निर्धारण राजनेता ही क्युं करते फिरें। उनकी मनपसंद के घरौंदे ही क्युं बनें?
बुककैफे में जलपान काफीपान तो रहता ही है और वह भी सस्ती किफायती दरों पर, साथ में पुस्तक संस्कृति और सांस्कृतिक सामाजिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलता है। यहां लेखकों द्वारा दान की गई किताबें पत्र पत्रिकाओं को जगह मिलती है। इससे पुस्तकालय के साथ इसका अनिवार्य जुड़ाव हो जाता है। माननीय राकेश कंवर जी ने कुल्लू में इस तरह का प्रयोग किया गया था जिसे पूरे देश में सराहा गया। शिमला में भी राज्य पुस्तकालय के समीपस्थ बुककैफे है और इसका ऐतिहासिक महत्व है। मंडी में बुद्धिजीवियों की बात की अनदेखी होती है, यह चिंता का विषय है।
युब्लाक जहां वल्लभ कालेज की स्थापना वर्ष 1948 को हुई थी वहां बनने वाले स्ट्रक्चर में मंडी का दूसरा कालिज खड़ा किया जा सकता है या वीमन कालिज। यदि कोई तकनीकी समस्या है तो जेलरोड स्थित जेल परिसर को परिष्कृत कर कालिज बनाया जा सकता है। जेल तो यहां से शीघ्र शिफ्ट होगी यह तो तय है। कोई दूसरा इस जगह से कुछ कमाए बेहतर है क्युं न कालिज बनाएं। मेरी बात कोई गंभीरता से नहीं लेता, यह बड़ी गंभीर समस्या है। आईए कुछ सकारात्मक सोचने की पहल करें!