धर्म के आधार पर आरक्षण को लेकर क्यों मचा है घमासान, धार्मिक आरक्षण देना कितना सही? पढ़िए ये विश्लेषण

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धर्म के आधार पर आरक्षण को लेकर क्यों मचा है घमासान, धार्मिक आरक्षण देना कितना सही? पढ़िए ये विश्लेषण। देश में आरक्षण देने के नाम पर सियासी पार्टियां अपनी रोटी सेंकती हैं. चुनाव आते ही आरक्षण का मुद्दा जोर-शोर से उठने लगता है. आने वाले समय में देश के कई राज्यों में चुनाव होने हैं, इसके अलावा 2024 में लोकसभा चुनाव भी होना है.

राजनीतिक पार्टियों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. हम एक विश्लेषण के तहत आपको भारत के कई राज्यों में धर्म के आधार पर आरक्षण और मुस्लिम आरक्षण को लेकर क्या स्थिति है इस बारे में बता रहे हैं.

4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करने की बात
गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में कहा है कि तेलंगाना में उनकी सरकार बनती है तो वो वहां 4 प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण को समाप्त कर देंगे. और ये बयान उन्होंने ऐसे समय में दिया है जब तेलंगाना में इसी साल विधान सभा के चुनाव होने हैं. और कर्नाटक में भी चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है. तो क्या किसी राज्य में मुसलमानों को आरक्षण देना वाकई में भारत के संविधान के ख़िलाफ़ है?

इन पांच राज्यों में मुसलमानों के लिए आरक्षण
मालूम हो कि हमारे देश में कुल पांच राज्य ऐसे हैं, जहां सभी मुसलमानों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है. और ये पांचों राज्य दक्षिण भारत से हैं. इनमें तेलंगाना है, आन्ध्र प्रदेश है, कर्नाटक है, केरल है और तमिलनाडु है. पूरे दक्षिण भारत में अब तक सभी मुसलमानों के लिए आरक्षण की व्यवस्था थी. लेकिन पिछले दिनों कर्नाटक पहला ऐसा राज्य बना, जहां मुसलमानों को दिया गया चार प्रतिशत आरक्षण समाप्त कर दिया गया और विपक्षी दलों का आरोप है कि कर्नाटक में ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वहां बीजेपी की सरकार है और बीजेपी ये सब चुनावों के लिए कर रही है. लेकिन बीजेपी का कहना है कि उसने राज्य में मुस्लिम आरक्षण को समाप्त करके भारत के संविधान की रक्षा करने का काम किया है.

असल में भारत का संविधान धर्म के आधार पर किसी समुदाय को आरक्षण देने की बात नहीं कहता. बल्कि ये समाज में पिछड़े हुए लोगों के उत्थान के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागू करने की बात कहता है. और इस हिसाब से देखें तो धर्म के आधार पर किसी पूरे समुदाय को आरक्षण देना सही नहीं है और ये भारत के संविधान के भी खिलाफ है.

कहां से शुरू हुआ विवाद
कर्नाटक में अब तक सभी मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था. और बड़ी बात ये कि वहां मुसलमानों को ये आरक्षण OBC की Category में दिया गया था. OBC का मतलब है, Other Backward Class. यानी कर्नाटक में सभी मुसलमानों को पिछड़ा मानते हुए वहां उन्हें चार प्रतिशत आरक्षण दिया गया था. और ये आरक्षण उन्हें OBC की श्रेणी में मिल रहा था. और यहीं से ये सारा विवाद शुरू होता है.

धर्म के सभी लोग पिछड़े वर्ग में कैसे आ सकते हैं?
असल में बहस इस बात को लेकर है कि किसी धर्म के सभी लोग पिछड़े वर्ग में कैसे आ सकते हैं? क्या कर्नाटक की 6 करोड़ की आबादी में जो लगभग 80 लाख मुसलमान हैं, वो सभी पिछड़े हुए होंगे? अब तक की राज्य सरकारें तो ऐसा ही मानती थीं. और इसीलिए उन्होंने राज्य के सभी मुसलमानों को पिछड़ा मानते हुए OBC की श्रेणी में चार प्रतिशत आरक्षण दिया हुआ था, जो भारत के संविधान के अनुरूप नहीं था. कर्नाटक की बीजेपी सरकार ने इसे खत्म कर दिया. और ये चार प्रतिशत आरक्षण वहां के दो बड़े वर्गों में बांट दिया गया.

इनमें एक वर्ग है, लिंगायत समुदाय का, जिसे OBC की श्रेणी में अब तक पांच प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था, जो अब बढ़कर सात प्रतिशत हो गया है.

दूसरा वर्ग है, वोक्कालिगा समुदाय का, जिसे OBC की श्रेणी में अब तक चार प्रतिशत आरक्षण मिल रहा था, लेकिन मुस्लिम आरक्षण खत्म होने के बाद ये कोटा चार प्रतिशत से 6 प्रतिशत हो गया है.

बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप
अब कर्नाटक के मुस्लिम समुदाय और वहां के तमाम विपक्षी दलों का ये कहना है कि पूर्व की सरकारों ने इस पर जो आयोग बनाए थे, उन्होंने ही राज्य में सर्वे कराने के बाद मुसलमानों को OBC की श्रेणी में आरक्षण देने की सिफारिश की थी. इसलिए इसे असंवैधानिक कहना गलता है और बीजेपी इसे समाप्त करके वोटों के लिए साम्प्रदायिक राजनीति कर रही है.

हालांकि विपक्षी दलों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि आखिर सभी मुसलमानों को पिछड़ा मानते हुए उन्हें आरक्षण कैसे दिया जा सकता है और अगर ये हो रहा है तो फिर बाकी धर्मों के लोगों को ऐसा कोई लाभ क्यों नहीं मिल रहा?

कर्नाटक में OBC श्रेणी की पहली लिस्ट के जिन समुदायों को चार प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, उनमें मुस्लिम समुदाय की सात अति पिछड़ी उप-जातियां भी शामिल हैं. इसके अलावा केन्द्र सरकार ने आर्थिक रूप में कमज़ोर वर्ग के लिए जो 10 प्रतिशत आरक्षण दिया था, उसमें भी गरीब मुसलमानों को अब आरक्षण मिल सकता है.

कहां क्या है स्थिति
जिस तरह 6 करोड़ की आबादी वाले कर्नाटक में लगभग 80 लाख मुस्लिम आबादी है, ठीक उसी तरह साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले तेलंगाना में 45 लाख मुसलमान रहते हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश की कुल आबादी 4 करोड़ 90 लाख है. जिनमें 36 लाख मुसलमान हैं. और केरल की आबादी 3 करोड़ 30 लाख है, जिनमें 90 लाख मुसलमान हैं. और तमिलनाडु की कुल आबादी 7 करोड़ 20 लाख है, जिनमें 42 लाख मुसलमान हैं.

इन राज्यों में मुस्लिम आरक्षण की व्यवस्था है. और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव लगातार अपने राज्य में मुसलमानों को मिलने वाले 4 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 12 प्रतिशत करना चाहते हैं. और इसके लिए वो तेलंगाना की विधान सभा में एक प्रस्ताव भी पास करा चुके हैं. लेकिन केन्द्र सरकार ने इस प्रस्ताव को अपनी मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया है.

तेलंगाना में आरक्षण बड़ा मुद्दा
तेलंगाना में ये मुद्दा इसलिए भी बड़ा हो गया है, क्योंकि वहां इसी साल विधान सभा के चुनाव होने हैं और पिछले कुछ चुनावों में मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति से परेशान होकर वहां के हिन्दू वोटर्स ने बीजेपी को अपना वोट दिया है.
2019 के लोक सभा चुनाव में तेलंगाना में कुल 1 करोड़ 85 लाख लोगों ने वोट डाला था. जिनमें लगभग 20 प्रतिशत यानी 36 लाख वोट बीजेपी को मिले थे. और बीजेपी ने तेलंगाना की 17 में से 4 लोक सभा सीटें जीती थीं.

तेलंगाना में अब एक तरफ़ के. चंद्रशेखर राव की पार्टी है, जो राज्य के लगभग सभी मुसलमानों को OBC की श्रेणी में चार प्रतिशत आरक्षण दे रही है. और वो इसे 4 प्रतिशत से बढ़ा कर अब 12 प्रतिशत करना चाहते है. और इसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी भी उनके साथ है. और दूसरी तरफ बीजेपी है, जो मुस्लिम आरक्षण को पूरी तरह समाप्त करने की बात कह रही है. हमारे देश में ये दो तरह की राजनीति अभी हो रही है. एक राजनीति मुस्लिम आरक्षण के ख़िलाफ़ है. और एक मुसलमानों को आरक्षण देकर उनके वोट हासिल करना चाहती है. और दक्षिण भारत के सभी पांचों राज्यों में अभी यही हो रहा है.

By आज तक

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